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धरा का जीवन संवार रहे धरती पुत्र

फोटो-22 (पृथ्वी दिवस) (पर्यावरण संरक्षण) सूक्ष्म जीवों के जरिए जैविक खाद तैयार कर बचा रहे मिट्टी की सेहत फिक्रमंद वर्मी कंपोस्ट की विधि से हाथरस के 655 किसान कर रहे जैविक खेती धरती को बचाने के लिए उन्नतशील किसान महावीर सिंह पर चढ़ा जुनून

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 12:55 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 12:55 AM (IST)
धरा का जीवन संवार रहे धरती पुत्र
धरा का जीवन संवार रहे धरती पुत्र

योगेश शर्मा, हाथरस : हाथरस के तमाम किसान जमीन का जीवन सुधारने में जी-जान से जुटे हैं। इनके जज्बे के कारण ही जनपद में करीब 655 किसान वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल कर धरती की सेहत सुधारने में लगे हैं। ऐसे ही एक उन्नतशील किसान हैं गांव कलवारी के महावीर। वे किसानों को वर्मी कंपोस्ट व गोबर की खाद बनाने की विधि बताते हैं। किसानों को प्रेरित करते हैं कि गोबर की खाद से न केवल मृदा की सेहत सुधरेगी, बल्कि रासायनिक खाद से होने वाले नुकसान से भी बच सकेंगे। रासायनिक खाद धरती के साथ ही पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।

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हरित क्रांति के अगुवा : हरित क्रांति से पंजाब तो संपन्न हो गया मगर देश के बाकी हिस्से खेती के मामले में पिछड़े रह गए। संचार माध्यमों के विस्तार के बाद यहां के किसान भी उन्नत खेती से रूबरू हुए और उसे अपने खेतों के अनुरूप अपनाना शुरू किया। अधिकाधिक खाद्यान्न उत्पादन की होड़ में रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल के बाद जब खेतों की सेहत बिगड़नी शुरू हुई तब किसानों को चिंता हुई। मिट्टंी की जांच की सुविधा बढ़ने से किसानों को काफी सहूलियत मिली है। जब किसानों को पता चला कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से कितना नुकसान हो रहा है तब वे इसका विकल्प तलाशने शुरू किए।

कंपोस्ट और केंचुआ :

किसान महावीर बताते हैं कि भूमि में प्रमुख रूप में जो तीन केंचुए पाए जाते हैं, उनमें एपीजेइक, एनीसिक, इंडोजेइक हैं, जबकि जैविक खाद में फार्म यार्ड खाद, कंपोस्ट, हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट हैं। वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए केंचुए का प्रयोग होता है।

वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि

उन्होंने बताया कि वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए छायादार ऊंचे स्थान पर जमीन की सतह से ऊपर मिट्टी डालकर बेड बनाते हैं, जिससे सूर्य की किरणें, गर्मी और बरसात से बचा सकें। बेड में सबसे नीचे एक दो इंच बालू, रेतीली मिट्टी बिछाते हैं। इसके बाद आठ दस इंच गोबर की परत के बाद एक हजार केंचुए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से छोड़ देते हैं।

सरकार दे रही है अनुदान :

सरकार वर्मी कंमोस्ट की विधि से खाद बनाने पर अनुदान दे रही है। जिले में कुल 655 वर्मी कंपोस्ट के प्लांट हैं। इसको बनाने में करीब आठ हजार रुपये की लागत आती है और कुल लागत में 75 फीसद अनुदान मिलता है। यही वजह है कि महावीर ने अभी कई किसानों को प्रेरित करके वर्मी कंपोस्ट के प्लांट तैयार करा दिए हैं, मगर इसमें सबसे ज्यादा दिक्कत गोबर की आती है, क्योंकि किसानों ने पशु पालन से तौबा कर रखा है। विशेषताएं

-पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहायक होता है।

-मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है।

-वर्मी कंमोस्ट खाद सस्ती होती है।

-भूमि में उपयोगी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करती है।

-वर्मी कंपोस्ट से ऊसर भूमि को सुधारा जा सकता है।

-पौधों की रोग रोधी क्षमता बढ़ जाती है।


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