ड्रैगन ने निगली मूंगा-मोती की चमक
फोटो- 23 से 29 सुनिए वित्त मंत्री जी नंबर गेम 50 भट्ठियों में रह गई हैं 15 30 लाख रुपये सालाना रह गया टर्न ओवर 6 हजार लोगों का रोजगार घट कर रह गया 200 सब हेड -सरकारी प्रोत्साहन न मिलने से सिमटा विख्यात मूंगा-मोती उद्योग
संवाद सूत्र, पुरदिलनगर (हाथरस) : कस्बे के विख्यात मूंगा-मोती कारोबार को चीन के कारण झटका लगा है। चीनी वस्तुओं की चमक के आगे यहां पर कांच से बनी वस्तुएं धीरे-धीरे बाजार में अपनी पकड़ खोती गईं। इसके ऊपर जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन की अनदेखी। हाथों के हुनर को वो तवज्जो ही नहीं मिली, जिसके बल पर वे आगे बढ़ सकते थे। इनके प्रोत्साहन के लिए न कोई खास योजना आई और न ही हुनर को प्रदर्शित करने के लिए कोई मंच मिला। इसी वजह से यह उद्योग पिछले दो दशक में काफी सिमट गया है। मूंगा-मोती उद्योग
मूंगा-मोती के नाम से ही पुरदिलनगर कस्बे की पहचान है। इस कस्बे का यह मुख्य धंधा है। कस्बे से सौ किलोमीटर की परिधि में यह कारोबार फैला था। मूंगा-मोती उद्योग से एटा, मैनपुरी, फीरोजाबाद, कासगंज, अलीगढ़ आगरा आदि जिले के हजारों लोग सीधे तौर पर जुड़े थे। दिल्ली से यहां का माल निर्यात होता था। करोड़ों रुपये का राजस्व इन उद्योगों से प्राप्त होता था। कस्बे में लगभग 50 भट्ठियां थीं, जो कि अब 15 रह गई हैं। इन पर कांच गला कर रोड बनाई जाती थीं। इनसे मशीन पर मूंगा मोती बनाए जाते थे। यह मशीनें घर-घर लगी हुई थीं। छोटी-बड़ी मिलाकर पांच हजार इकाईयां थीं, जो कि अब 35 के लगभग रह गई हैं। करोड़ों रुपये का टर्नओवर गिरकर अब 30 लाख रुपये सालाना रह गया है। मतलब इस कारोबार से जुड़े लोग बस खाने-कमाने लायक ही रह गए हैं।
दो दशक में आया परिवर्तन
पुरदिलनगर में 90 साल पहले इस काम की शुरुआत हुई थी। पूर्व चेयरमैन सियाराम शर्मा अपने मित्र के साथ बनारस गए थे। वहां से इस काम को यहां तक लाए। उसी तर्ज पर भट्ठी व मशीन बनवाई गई। पुरदिलनगर से तीन किलोमीटर दूर स्थित सिधौली गांव से इस कारोबार की शुरुआत हुई तथा फिर कस्बे में घर-घर मूंगा मोती बनने लगे। पिछले दो दशक में ही यह गिरावट देखने को मिली है, जब से चीन के माल का आयात बढ़ा है। यहां मूंगा मोती हाथ से बनाया जाता है। हस्तकला पर आधारित इस कारोबार में कारीगर मिट्टी के तेल या एलपीजी गैस के जरिए मशीन पर काम करते थे। हाथ की फिनिशिग चीन की विद्युत चलित मशीनों का मुकाबला नहीं कर सकी। साथ ही मिट्टी का तेल महंगा होने तथा गैस की सुलभता न होने के कारण बाजार में प्रतिस्पर्धा भी नहीं कर सके, जिससे यह उद्योग दम तोड़ता गया। बदलना पड़ा काम
इकाइयां बंद होने के कारण मजदूरों को दूसरा काम पकड़ना पड़ा। कोई चिनाई मिस्त्री बन गया तो कोई ढकेल लगाने लगा। कुछ लोग दिल्ली आदि शहरों में चले गए। जिन घरों में इकाइयां लगी थीं, उन्हें भी काम बदलना पड़ा। कोई नौकरी करने चला गया तो किसी ने परचून की दुकान खोल ली। दो दशक पहले तक लगभग छह हजार लोगों को पुरदिलनगर व आस-पास के गांवों में रोजगार मिला था। अब यह संख्या 200 रह गई है।
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यह उद्योग पूर्ण रूप से हस्तकला पर आधारित है। इसलिए जीएसटी से उसे मुक्त करना चाहिए। चीन से आयात होने वाले ग्लास बीड्स (मूंगा मोती) को बंद किया जा। आधुनिक मशीनें उपलब्ध कराई जाएं।
गंगाराम कुशवाहा, पूर्व चेयरमैन व व्यापारी
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इस उद्योग में फिर से जान डालने के लिए सरकार सस्ती दर पर केरोसिन या गैस उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए। कच्चे माल की उपलब्धता सरल व सस्ती की जाए।
हाजी मोहसिन खान, मूंगा मोती व्यापारी
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चीन से आयात होने वाले ग्लास बीड्स पर रोक आवश्यक है। इस उधोग से जुड़े कारीगर व व्यापारियों को सुविधा मुहैया कराई जाएं। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हस्तकला का प्रचार-प्रसार हो। राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच की सुलभता बढ़े।
बंटी आर्य, मूंगा मोती कारोबारी
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विश्व प्रसिद्ध इस उधोग धंधे की बर्बादी के लिए शासन जिम्मेदार है। चीन के माल को तवज्जो नहीं मिलती है तथा केरोसिन व गैस सस्ती दर पर मिलते तो स्थिति अलग होती।
ओमप्रकाश गुप्ता, व्यापार मंडल अध्यक्ष