बापू ने देश की आजादी के लिए मांगा था सहयोग
वर्ष 1932 में मुरसान आए गांधीजी का संस्मरण याद करते हुए बोले लाला बाबू सारस्वत
संस, हाथरस : यह बात वर्ष 1932 के करीब की है। तब मैं 12 साल का था और कक्षा आठ में पढ़ता था। मैं स्कूल में था कि तो जानकारी मिली कि मुरसान के सेठ मदनमोहन के यहां बापू आए हैं। मैं स्कूल छोड़कर बापू को देखने के लिए सेठजी के घर पहुंचा। रामलीला मैदान के पास सेठजी का घर था। घर के बरामदे में एक टिनशेड पड़ा था। उसी के नीचे गांधीजी बैठे थे। वह जिस खुली जीप में आए थे, वह बाहर खड़ी थी। बापू की गोद में एक बकरी का बच्चा भी था। सभी लोग उनके इर्द-गिर्द बैठे थे। वह करीब 20 मिनट यहां रुके थे। सैकड़ों की संख्या में लोग उनके आसपास जमा थे। सफेद रंग की धोती उन्होंने लपेट रखी थी। पास में उनकी लाठी रखी थी। गांधी जी अपने साथ एक डिब्बे में मेवा भी लाए थे। गांधी जी ने खुद मेवा खाया और कमरे में मौजूद लोगों को भी खिलाया। गांधी जी ने कमरे में बच्चों और युवाओं से भी संवाद किया। उन्होंने कहा था, 'सभी से प्रेम करो। आप देश के युवा हो, देश का भविष्य आपके ही कंधे पर है।' बापू ने देश की स्वतंत्रता के लिए सभी का सहयोग मांगा था और यह भी कहा था कि अहिसा के रास्ते पर चलकर हम लोग आजादी को जल्द हासिल करेंगे। इसके बाद बापू मथुरा की तरफ गए थे। वह कहां से आए थे, यह मुझे याद नहीं है। जाते वक्त गांधी जी को कस्बे के लोगों ने चांदी के सिक्के देकर उनका सम्मान किया था।
30 जनवरी 1948 को जब गांधी जी की मौत की सूचना मिली तो एक पल को यकीन नहीं हुआ। कस्बे के तमाम लोग एकत्रित हो गए और सभी ने गांधी जी के अंतिम दर्शन का मन बनाया। मैं भी कस्बे के ही सोहनलाल मंदिर वाले, खुशाली राम, पूर्व चेयरमैन ठाकुर प्यारेलाल पुष्कर के साथ बापू को श्रद्धांजलि देने के लिए दिल्ली गया था। पहले मथुरा तक पहुंचे, उसके बाद दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ी। गांधी जी की श्रद्धांजलि सभा में लाखों लोग मौजूद थे। हर कोई रो रहा था। मैं भी अपने आंसू नहीं रोक सका। उनके अंतिम संस्कार के बाद जब हम वापस लौट रहे थे तो रास्ते में भूख लगी। तब हमने एक पैसे में मूली खरीदकर खाई थी।
-पंडित लाला बाबू सारस्वत, मुरसान।