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बहुओं ने संभाली ससुर और सास की राजनीतिक विरासत

-स्वर्गीय परमाईलाल की बहू राजेश्वरी और ऊषा वर्मा चुनाव मैदान में उतरीं -गोपामऊ से राजेश्वरी तो ऊषा को सपा ने सांडी से बनाया प्रत्याशी

By JagranEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 11:22 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 11:22 PM (IST)
बहुओं ने संभाली ससुर और सास की राजनीतिक विरासत
बहुओं ने संभाली ससुर और सास की राजनीतिक विरासत

हरदोई: राजनीति की बात छिड़ती है, तो स्वर्गीय परमाईलाल का नाम दिग्गज नेताओं में लिया जाता है। अब वह तो दुनिया में नहीं हैं, तो उनकी बहुएं राजनीतिक विरासत संभाले हैं। इस चुनाव में भी गोपामऊ से उनकी बहू राजेश्वरी देवी सपा प्रत्याशी हैं तो छोटी बहू ऊषा वर्मा को सपा ने सांडी से प्रत्याशी बनाया है। जनता किस पर कितना भरोसा करती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा, फिलहाल देवरानी और जेठानी एक साथ विधान सभा पहुंचने के लिए मैदान में हैं।

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स्वर्गीय परमाईलाल की राजनीतिक यात्रा देखें तो अहिरोरी विधान सभा सीट से 1969 में परमाई लाल निर्दलीय विधायक चुने गए थे। फिर 1980 और 85, 89 में भी विधायक चुने गए थे। परमाईलाल 1991 में चुनाव जीतकर मुलायम सिंह यादव की सरकार में लघु सिचाई उपमंत्री बने। परमाई लाल के निधन के बाद नवगठित सपा ने उनकी पत्नी जदुरानी विधायक चुनी गईं थीं। जदुरानी के निधन के बाद उनकी छोटी बहू ऊषा वर्मा ने राजनीति में कदम रखा। 2002 में सपा से चुनाव जीतकर ऊषा वर्मा विधानसभा पहुंची थीं और सरकार में मंत्री भी बनीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में ऊषा वर्मा सपा से ही हरदोई लोक सभा क्षेत्र के सांसद निर्वाचित हुईं और 2009 में भी सांसद चुनी गईं। वहीं दूसरी तरफ स्वर्गीय परमाईलाल की बड़ी बहू राजेश्वरी देवी भी राजनीति में आगे बढीं और 2007 में तत्कालीन बावन-हरियावां से विधायक चुनी गईं। अहिरोरी और बावन हरियावां सीट समाप्त हो जाने के बाद 2012 में उन्होंने सांडी से चुनाव जीता, लेकिन वर्ष 2017 में गोपामऊ से वह चुनाव हार गईं। अब 2022 में उन्हें सपा ने पहले ही गोपामऊ से प्रत्याशी घोषित कर दिया था। पूर्व सांसद ऊषा वर्मा को सांडी से प्रत्याशी बनाया है। ससुर और सास की राजनीतिक विरासत संभालने वाली दोनों बहुएं एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं।

सियासत की न संभाल सके विरासत

हरदोई: पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए पुत्र भी मैदान में आए, लेकिन वह टिक नहीं पाए। शाहाबाद क्षेत्र में ऐसा ही हुआ। दिग्गज कांग्रेसी नेता रामौतार दीक्षित, दिग्गज भाजपा नेता गंगाभक्त सिंह और क्षेत्र के ही दिग्गज नेताओं में शामिल बाबू खां के पुत्र राजनीतिक विरासत संभाल नहीं सके। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव शाहाबाद से स्वर्गीय रामौतार दीक्षित के पुत्र रंजन दीक्षित कांग्रेस और स्वर्गीय गंगा भक्त सिंह के दत्तक पुत्र नरेंद्र पाल सिंह सोनू भाजपा से मैदान में आए, लेकिन सफल नहीं हो सके।


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