ध्रुवीकरण की धारा में बहता रहा बिलग्राम-मल्लावां का चुनाव
-कभी मल्लावां और बिलग्राम दो अलग-अलग नाम से थे विधानसभा क्षेत्र -स्वर्गीय राम आसरे वर्मा ने निर्दलीय ही लगाई थी हैट्रिक
हरदोई : 159 बिलग्राम-मल्लावां एक ऐसी विधानसभा सीट है, जो 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में बिलग्राम और मल्लावां दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के नाम से जानी जाती थी, लेकिन 2012 के परिसीमन में इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों का अस्तित्व समाप्त करके बिलग्राम- मल्लावा के नाम से एक नया विधानसभा क्षेत्र बनाया गया। इस विधानसभा क्षेत्र में मल्लावां नगर पालिका, मल्लावां ग्रामीण,बिलग्राम कस्बा, माधौगंज ़कस्बा और माधोगंज विकास खंड की 45 ग्राम पंचायतें शामिल हैं। मल्लावां के विधायक स्वर्गीय राम आसरे वर्मा उप्र विधानसभा में उपाध्यक्ष के पद पर तो बिलग्राम के विधायक रहे स्वर्गीय शारदा भक्त सिंह नेता प्रतिपक्ष की भी जिम्मेदारी निभा चुके हैं। 2012 में हुए नए परिसीमन के बाद कुर्मी बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में कुर्मी बिरादरी के लोगों का ही दबदबा रहा है। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा की आशीष कुमार सिंह ने कमल खिलाकर पहली बार विधान सभा में कदम रखा। अब 2022 में भी वह दावेदार हैं, तो सपा भी मजबूत प्रत्याशी उतराने की तैयारी में है। कांग्रेस और बसपा ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। इस सीट पर रोचक मुकाबला होने के आसार हैं।
इस सीट के इतिहास को उठाकर देखें तो यहां के मतदाताओं का अलग ही मिजाज रहा। चुनाव धुव्रीकरण की धारा में बहता रहा। हर दल अजीज मतदाताओं ने निर्दलीयों को भी दिल दिया। मल्लावां में कांग्रेस का पंजा मजबूत रहा, साइकिल भी चली और हाथी भी दौड़ा। निर्दलीय रामासरे वर्मा ने इतिहास रचा और निर्दलीय हैट्रिक लगाई। दूसरी तरफ देखें तो मल्लावां क्षेत्र में ही दो विशेष जातियों के बीच चुनाव हुए। कुर्मी और ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में अधिकांश दो ही जातियों के विधायक भी बने। विधान सभा चुनावों को देंखे तो 1962 में कांग्रेस के जेपी मिश्रा 18,289 वोट पाकर जनसंघ से सुरेन्द्र विक्रम से जीते थे। तो 1967 में निर्दलीय लालन शर्मा 25,439 वोट पाकर कांग्रेस के विधायक जेपी मिश्रा को हराया था। फिर 1969 में बीकेडी के मोहनलाल विधायक चुने गए। 1974 में लालन शर्मा फिर मैदान में आए कांग्रेस से 25,984 वोट पाकर विजयी हासिल की। 1977 में रामआसरे वर्मा निर्दलीय चुनाव मैदान में आए और 23,974 वोट लेकर जीते। कांग्रेस के विधायक लालन शर्मा दूसरे स्थान पर रहे थे। 1980 में रामआसरे वर्मा फिर निर्दलीय उतरे और 37,616 वोट हासिल कर फिर विधायक बने। इस बार भी कांग्रेस के लालन शर्मा दूसरे स्थान पर रहे थे। 1985 में रामआसरे वर्मा ने निर्दलीय ही 45,593 वोट पाकर हैट्रिक लगाई। इस चुनाव में कांग्रेस के लालन शर्मा के छोटे भाई धर्मज्ञ मिश्रा को टिकट नहीं मिला तो वह निर्दलीय उतरे और 23,693 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे। 1989 में कांग्रेस ने धर्मज्ञ मिश्रा को उतारा और वह 49,134 वोट पाकर विधान सभा पहुंचा। चौथी बार निर्दल उतरे रामआसरे वर्मा 45,593 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। 1991 में रामआसरे वर्मा जनता दल का चक्र लेकर मैदान में आए और 38,672 वोट हासिल कर चुनावी महाभारत जीता। इस चुनाव में रामलहर के बाद भी भाजपा प्रत्याशी रामकांती को महज 5,130 वोट हासिल हुए। 1993 में जनता दल के रामआसरे वर्मा ने 37,127 वोट लेकर पांचवीं जीत दर्ज की। इसी चुनाव में नवगठित सपा से रामकुमार वर्मा 35,105 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। 1996 में कांग्रेस ने सीट समझौते के तहत बसपा के लिए छोड़ी तो धर्मज्ञ मिश्रा कांग्रेस छोड़कर सपा से उतरे और 41,036 वोट हासिल कर दूसरी बार विधायक चुने गए। 2002 में इस सीट पर भाजपा और समता पार्टी गठजोड़ के बाद भी बसपा के कृष्ण कुमार उर्फ सतीश वर्मा 37,220 वोट पाकर निर्वाचित हुए। इस चुनाव में कांग्रेस से लड़े बृजेश पाठक को हार का मुंह देखना पड़ा। 2007 में बसपा से सतीश वर्मा 47566 वोट हासिल कर दूसरी बार विधायक बने। परिसीमन के बाद 2012 में इस सीट पर रोचक मुकाबला हुआ। बसपा ने सीटिंग विधायक सतीश वर्मा की जगह उनके रिश्ते के भाई और प्रतिनिधि रहे बृजेश वर्मा को उतारा तो सतीश वर्मा सपा में चले गए। बृजेश वर्मा ने 64,768 वोट हासिल कर चुनाव जीता तो सपा के सतीश वर्मा 57,440 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। अब 2017 के चुनाव में आशीष कुमार सिंह ने पहली बार जीत हासिल कर क्षेत्र में कमल खिलाया था। इस बार भी वह भाजपा से दावेदार हैं। 2022 में भी मतदाता ध्रुवीकरण की धारा में बहते हैं या फिर कुछ और होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
विधान सभा क्षेत्र के मतदाताओं पर एक नजर
कुल मतदाता-3,80,967
पुरुष मतदाता---2,04,437
महिला मतदाता--1,76,519
थर्ड जेंडर--11