संडीला से दो के बाद तीसरा विधायक नहीं लगा सका हैट्रिक
हरदोई लड्डुओं की मिठास वाले संडीला विधान सभा क्षेत्र से हर दल के नेता ने स्वाद चखा। वैसे त
हरदोई: लड्डुओं की मिठास वाले संडीला विधान सभा क्षेत्र से हर दल के नेता ने स्वाद चखा। वैसे तो राजनीतिक समीकरण पलटते रहे और भाग्य विधाताओं का रुझान बदलता रहा, लेकिन कुदेशिया बेगम का रिकार्ड कोई भी तोड़ नहीं सका। हालांकि कुदेशिया बेगम के बाद अब्दुल मन्नान ने भी यहां से हैट्रिक लगाई, उसके बाद कोई तीसरा हैट्रिक नहीं बना सका। इस सीट पर वर्ष 2017 में जहां सिटिग विधायक मैदान से बाहर थे, तो अब 2022 में सिटिग विधायक का टिकट ही कट गया है।
इतिहास उठाकर देखें तो 1951 संडीला को संडीला साउथ ईस्ट कम बिलग्राम नाम से जाना चाहता था। तब एक आरक्षित और एक सामान्य विधायक चुना जाता था। सामान्य सीट से कांग्रेस की लक्ष्मी देवी 28,165 और आरक्षित सीट से तिलकराम 29,211 वोट के साथ निर्वाचित हुए थे। 1957 में मतदाताओं ने नतीजा उलट दिया। सामान्य सीट से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मोहन लाल वर्मा 49,081 और आरक्षित सीट से शंभूदयाल 40054 वोट पाकर निर्वाचित हुए थे।
1962 में संडीला नाम से यह सीट बनी, लेकिन श्रेणी आरक्षित रही और इस चुनाव में निर्दलीय पंचम 7827 वोट पाकर अपना विजय लहराया था। 1967 के चुनाव में जनसंघ का दीपक जला और काशीनाथ 20873 वोट पाकर जीते थे। निर्दलीय अब्दुल जब्बार 17135 मत दूसरे स्थान पर रहे थे। 1969 के चुनाव में बेगम कुदेशिया एजाज रसूल ने सीट पर कांग्रेस का 18 बरसों का वनवास खत्म किया और 32031 वोट पाकर विजय हासिल की तो जनसंघ के काशीनाथ 31955 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। 1974 के चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस को खारिज कर दिया और जनसंघ के काशीनाथ 18976 वोट देकर जीत दिलाई तो कांग्रेस के निहाल अजमत चौधरी 13003 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। 1977 में कुदेशिया बेगम निर्दलीय उतरीं और 22855 वोट पाकर दूसरी बार विधायक चुनी गईं। जनसंघ के सिटिग विधायक काशीनाथ जनता पार्टी से लड़े और 18039 मत दूसरे स्थान पर रहे। 1980 में कांग्रेस की कुदेशिया बेगम 24137 वोट हासिल कर विधायक बनी।
भाजपा के कमल से चुनाव लड़े सुरेंद्र दुबे 19908 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। 1985 में कांग्रेस की कुदेशिया बेगम ने हैट्रिक लगाई 27568 वोट मिले और उन्होंने पहली विजयी हैट्रिक लगाई। भाजपा के सुरेन्द्र दुबे दूसरे स्थान पर रहे। 1989 के चुनाव में सुरेंद्र दुबे जनता दल से मैदान में आए और पहली बार विधान सभा पहुंचे। तो कांग्रेस की कुदेशिया बेगम 35124 दूसरे पायदान पर पहुंच गई।
1991 की रामलहर में कुंवर महावीर सिंह 29175 मत हाकर विधान सभा पहुंचे। कांग्रेस की कुदेशिया बेगम दूसरे स्थान पर रहीं और यहीं से उनके राजनीतिक कैरियर को विराम लग गया। 1993 में भी महावीर सिंह ने सीट भाजपा की झोली में डाली और उन्हें विजयी 34907 वोट हासिल कर जीते। इस चुनाव में सपा मैदान में आई थी और अजीज हसन खान 31601 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस चुनाव में अब्दुल मन्नान निर्दलीय चुनाव मैदान में आए थे और फिर 1996 में बसपा का खाता खोलकर 52221 वोट पाकर विजय श्री हासिल की। भाजपा के सिटिग विधायक महावीर सिंह ने पिछले चुनाव की तुलना में 10 हजार से •ा्यादा मतों का इजाफा कर 44093 वोट पाए। 2002 में बसपा के अब्दुल मन्नान 52852 वोट के साथ लगातार दूसरी बार विधानसभा पहुंचे। 2007 में बसपा के अब्दुल मन्नान को टक्कर कड़ी मिली लेकिन उन्होंने 56115 वोट लेकर विजयी हैट्रिक लगाई। सपा ने इस चुनाव में कुदेशिया बेगम की बहू बेगम इशरत रसूल को उतारा और वह 53060 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। परिसीमन के बाद 2012 के चुनाव में सपा की साइकिल चली।
सपा के महावीर सिंह ने 84644 वोट पाकर जीत दर्ज कराई तो बसपा के अब्दुल मन्नान 65510 मत हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे थे। अब 2017 के विधान सभा चुनाव में सिटिग विधायक कुंवर महावीर सिंह चुनाव मैदान से बाहर रहे थे। जनता ने भाजपा के राजकुमार अग्रवाल को विधायक चुना। अब 2022 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया है। भाजपा ने अलका अर्कवंशी को अपना प्रत्याशी बनाया। कौन कौन मैदान में आएगा, जनता किस पर भरोसा करती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।