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विभागीय लापरवाही छीन रही शिक्षा का अधिकार

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By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 10:25 PM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 06:32 AM (IST)
विभागीय लापरवाही छीन रही शिक्षा का अधिकार
विभागीय लापरवाही छीन रही शिक्षा का अधिकार

हरदोई : विभाग और सिस्टम की लापरवाही का खामियाजा बच्चे भुगत रहे हैं। कहने को तो उनका कान्वेंट स्कूलों में प्रवेश करा दिया गया, लेकिन न तो विद्यालयों की फीस दी गई और न ही उन्हें ड्रेस, किताबों का पैसा। शासन से जो रुपया आया था, वह वापस चला गया। विद्यालय और अभिभावकों का इंतजार करते करते पूरा सत्र बीत गया। अब नए प्रवेश शुरू हो गए, लेकिन शैक्षिक सत्र 2018-19 में प्रवेश लेने वाले 719 बच्चों के लिए कुछ नहीं आया है। धनराशि कब तक आएगी यह भी कोई बताने वाला नहीं है।

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आरटीई के तहत शैक्षिक सत्र 2018-19 में 719 बच्चों का विद्यालयों में प्रवेश करा भी दिया गया, लेकिन उनकी पढ़ाई लिखाई का कोई इंतजाम नहीं किया गया। 52 विद्यालयों में 719 बच्चों के लिए नियमानुसार 450 रुपये प्रति माह फीस और पांच हजार रुपये ड्रेस से लेकर किताबों आदि के लिए शासन से मिलते हैं। सत्र की शुरुआत में दो माह की विद्यालयों की फीस के लिए आठ लाख 42 हजार रुपया आया था, लेकिन मात्र तीन लाख 12 हजार रुपये ही विद्यालयों के खाते में भेजा गया। शेष धनराशि आने वाली धनराशि के साथ भेजने के लिए रोक ली गई, लेकिन धनराशि नहीं आई। 29 मार्च को करीब एक करोड़ रुपये आए। जिन्हें 31 मार्च तक बच्चों के अभिभावकों और विद्यालयों के खातों में भेजा जाना था। 66 लाख 20 हजार के बिल तैयार हुए, लेकिन विभाग ने देरी से रुपये भेजे। रही बची कसर अधिकारियों ने पूरी कर दी। धनराशि खातों में भेजी ही नहीं जा सकी। जिसके चलते 66 लाख 20 हजार और पूर्व के बचे पांच लाख 30 हजार शासन को फिर वापस कर दिए गए। शैक्षिक सत्र 2018-19 में तो बिना फीस और किताबों के इंतजाम के बच्चे पढ़ते रहे। अब अगली कक्षाओं में भी पहुंच गए हैं। धीरे-धीरे सितंबर भी बीतने वाला है। योजना के तहत नए सत्र के प्रवेश की सूची भी जारी हो गई है पर 719 बच्चों की धनराशि कब आएगी इसका किसी को पता नहीं है। जिला समन्वयक सामुदायिक सहभागिता हरिपाल का कहना है कि परियोजना को फिर से मांग पत्र भेजा जा रहा है। जल्द ही धनराशि आने की उम्मीद है।

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विद्यालयों में मांगी जाने लगी फीस

719 बच्चों का 52 विद्यालयों में प्रवेश कराया गया था। ड्रेस और किताबों का तो अभिभावकों ने इंतजाम कर दिया, लेकिन फीस जमा न होने से कई विद्यालयों ने बच्चों को पढ़ाने से मना कर दिया। विभाग के आंकड़ों में तो 719 बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लेकिन हकीकत दावों की पोल खोल रही है।


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