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गांव की इस लाइब्रेरी ने तैयार किए कई IAS अफसर, न्यायाधीश, इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक

National book week 2019 उत्तर प्रदेश के हरदोई के तेरवा दहिगवां गांव की इस अपार सफलता के पीछे बड़ा योगदान है गांव में मौजूद एक छोटी सी लाइब्रेरी का। कहते हैं भारत गांवों में बसता है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 10:16 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 10:18 AM (IST)
गांव की इस लाइब्रेरी ने तैयार किए कई IAS अफसर, न्यायाधीश, इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक
गांव की इस लाइब्रेरी ने तैयार किए कई IAS अफसर, न्यायाधीश, इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक

पंकज मिश्रा, हरदोई। पढ़ाई की होड़ हो या नौकरी की दौड़, कामयाबी की हर कसौटी खरा यह गांव महानगरों को कहीं पीछे छोड़ चुका है। इसका ऐसा कोई घर नहीं, जिसमें उच्च अधिकारी, इंजीनियर, डॉक्टर न हों। उत्तर प्रदेश के हरदोई के तेरवा दहिगवां गांव की इस अपार सफलता के पीछे बड़ा योगदान है गांव में मौजूद एक छोटी सी लाइब्रेरी का। कहते हैं भारत गांवों में बसता है।

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इस कहावत को यह गांव नए सिरे से गढ़ रहा है। गांव के आधा दर्जन युवक भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में हैं तो कई पीसीएस में। इंजीनियर, चिकित्सक, बैंक अधिकारियों की तो कतार लगी है। एक कुनबा ऐसा भी, जिसके सभी सदस्य प्रथम श्रेणी के अधिकारी। यही नहीं, आइएएस आशीष सिंह भी यहीं की माटी से निकले हैं, जिन्होंने मप्र के इंदौर शहर को स्वच्छता में नंबर एक बनाकर ख्याति बटोरी। देश ही नहीं, विदेश तक गांव की प्रतिभाएं चमक बिखेर रही हैं।

हरदोई जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर स्थित है तेरवा दहिगवां। आम गांवों की तरह ही है। बीती सदी के नौवें दशक तक यहां भी सबकुछ सामान्य था। बदलाव की बयार 1994 में बही, जब ग्रामीण परिवेश में पढ़े-लिखे शिरीष चंद्र वर्मा पीसीएस बने। यह शुरुआत थी। इसके बाद तो गांव में अफसर बनने की होड़ लग गई। शिरीष अब आइएएस अधिकारी हैं और उप्र शासन में बड़े पद पर सेवारत हैं। 1996 में पीसीएस पदोन्नति के बाद आइएएस बने प्रदीप कुमार केंद्रीय सचिवालय में सचिव हैं। लोकप्रिय आइएएस आशीष सिंह के भाई अनुपम सिंह पीसीएस अधिकारी हैं। गांव के कृष्ण कुमार सिंह इंजीनियर हैं। अरुण कुमार सिंह वाणिच्य कर अभिकरण के सदस्य हैं। वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी योगेंद्र कुमार कासगंज में एडीएम तो उनकी पत्नी ज्योत्सना सिंह आइआरएस अधिकारी हैं। आइएसएस (भारतीय सांख्यिकी सेवा) अश्वनी कुमार कनौजिया भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग में डिप्टी डायरेक्टर हैं।

रामयश कनौजिया महाराष्ट्र में असिस्टेंट कमिश्नर कस्टम हैं। पीसीएस विवेक कुमार नोएडा में तैनात हैं। धर्मेश सिंह लखनऊ में कॉमर्शियल टैक्स अधिकारी हैं। विनोद कुमार कनौजिया दिल्ली में एनएसजी के सेकेंड इन कमांडडेंट हैं। अभय सिंह और जयश्री उत्तराखंड में न्यायाधीश हैं। गांव में साधारण परिवार में जन्मे सत्यवीर भाभा परमाणु केंद्र, हैदराबाद में वैज्ञानिक हैं। नरेश कनौजिया अमेरिका में वैज्ञानिक हैं तो सुमित सिंह गूगल में सिस्टम इंजीनियर। रिटायर्ड शिक्षक शिवराज सिंह के तीनों बेटे अफसर हैं। यह सूची बहुत लंबी है।

वैसे गौसगंज कस्बा क्षेत्र, जिसमें तेरवा दहिगवां आता है, हमेशा शिक्षा में अग्रणी रहा। 1952 के दौर में जब शहरों में गिनती के विद्यालय थे, यहां के तिर्वा गौसगंज में पटेल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खुला। 1959 में वह पटेल बतासो राजरानी (पीबीआर) इंटर कॉलेज हो गया। दहिगवां की खास पहचान गांव के मंदिर में संचालित होने वाला ग्राम सुधार पुस्तकालय है। 1938 में शिवदुलारे लाल ने स्थापना की, जो आज भी नई पीढ़ी को दिशा दे रहा है। पुस्तकालय का संचालन कर रहे प्रवक्ता डॉ. विवेक कुमार व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे शानू के अनुसार, यहां आजादी के पहले तक के समाचार पत्र और सैकड़ों पुस्तकें हैं। बीच में यह कुछ दिन के लिए बंद हो गया था। बच्चे अफसर बनने लगे तो इसकी तरफ ध्यान गया।

पीबीआर के सेवानिवृत्त शिक्षक बाबूलाल वर्मा बताते हैं कि उनके साथ इसी कॉलेज से पढ़कर तेरवा दहिगवां के शिवराज सिंह समेत कई अध्यापक निकले। इसके चलते धीरे-धीरे दगिहवां में शिक्षा का स्तर बढ़ता गया। विद्यालय संरक्षक पटेल डॉ. नरेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके विद्यालय से ही करीब आधा दर्जन आइएएस हुए। डॉ. रामभजन 1963-64 में अधिकारी बने। विद्यालय ने समूचे क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाई। तेरवा दहिगवां में एक-दूसरे का उदाहरण देते हुए मेधावी आगे निकले और बढ़ते गए। यह सिलसिला अभी भी जारी है।


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