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कहानी एक इकलौती बेटी की.जो पिता के सपनों को कर रही पूरा

पिता को मुखाग्नि दे पितृऋण तो चुकाया ही, अब उनके अधूरे सपनों को पूरा करने में जुटी अंजलि।

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Jul 2018 03:19 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jul 2018 03:34 PM (IST)
कहानी एक इकलौती बेटी की.जो पिता के सपनों को कर रही पूरा
कहानी एक इकलौती बेटी की.जो पिता के सपनों को कर रही पूरा

हरदोई[पंकज मिश्र]। ग्रामीण समाज में अब इकलौती बेटी भी अपने परिवार को बेटे की कमी महसूस न होने दे, ऐसे बेमिसाल उदाहरण सामने आने लगे हैं। केंद्र-राज्य सरकारों द्वारा लागू 'इकलौती बेटी योजना' का निहितार्थ भी इस पृष्ठभूमि पर समझा जा सकता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी इकलौती बेटी स्कॉलरशिप योजना शुरू की। इस स्कॉलरशिप के तहत पीजी कोर्स में दाखिला लेने वाली उन लड़कियों को आर्थिक मदद दी जाती है, जो अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। छोटे परिवार की संकल्पना को इस स्कॉलरशिप में महत्व दिया गया है। इस योजना के तहत छात्रा को हर माह 31 सौ रुपए प्रदान किए जाते हैं। आइये अब चलते हैं हरदोई के रैंगाई गाव। पिता प्रेमभूषण सिंह पिहानी ने इकलौती बिटिया अंजलि को इस हसरत के साथ पाला-पोसा था कि बिटिया उन्हें बेटे की कमी कभी महसूस नहीं होने देगी। जीते जी भी नहीं और मरने के बाद भी नहीं। अंजलि ने पिता को मुखाग्नि दे पितृऋण तो चुकाया ही, अब उनके अधूरे सपनों को पूरा करने में जुटी है।

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अंजलि हरदोई में दूसरों के लिए मिसाल बन गई है। चार साल पहले पिता का साया सिर से उठा तो बिना विचलित हुए अंजलि ने खुद उन्हें मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाया और अब खेती-गोशाला के बूते आत्मनिर्भर हो आगे बढ़ रही हैं। अंजलि के पिता प्रेमभूषण सिंह विकास खंड के रैंगाई गाव में किसानी करते थे। अंजली उनकी इकलौती बेटी है। बेटी को पढ़ाने के लिए शहर में मकान बनवाया और स्नातक तक शिक्षा दिलाई। समाज जरूर बेटे का दबाव बनाता रहा लेकिन पिता को बेटी पर पूरा भरोसा था। चार साल पहले अप्रैल में उनका देहावसान हो गया। रिश्तेदार पाच लोगों से प्रेमभूषण की चिता को मुखाग्नि दिलाना चाहते थे, तो अंजलि विरोध पर उतर आईं। बिना विचलित हुए स्वयं पिता को मुखाग्नि देकर मिसाल कायम की।

ससुराल की बंदिशों का सामना:

रिश्तेदारों ने शादी तो करा दी, लेकिन बेटे की भूमिका निभा रही बेटी को ससुराल वालों की रूढ़ीवादी मानसिकता का कड़ा सामना करना पड़ा। अंजलि को एक बेटा भी हुआ, लेकिन ससुराल की बंदिशें बढ़ती गईं। नतीजा, हालात ने अंजलि को बागी बना दिया। अब वह पिता के घर लौट कर पुन: गोवंश संभाल रही हैं। प्रेमभूषण गोसेवा बड़े मनोयोग से करते थे। पिता की चौथी पुण्य तिथि पर यानी इस साल चार अप्रैल को अंजली ने गाव में गोशाला निर्माण कराया।


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