दिल पर पत्थर रख जिगर के टुकड़ों से दूर 'मां'
-बचों से दूर हैं कोविड एल-टू हॉस्पिटल की चिकित्सक और स्टाफ नर्स -जिद करते बचे तो वीडियो काल कर पास होने का कराती हैं एहसास
हरदोई: मम्मी..आप कब आओगी। इतने दिन हो गए। न हमें गोद में लिया न ही हमे प्यार किया। मां अब जल्दी आ जाओ। कोविड एल-टू हॉस्पिटल की चिकित्सकों और स्टाफ नर्स के कानों तक जिगर के टुकड़ों के जब यह शब्द पहुंचते हैं तो वे भावुक हो जाती हैं। मोबाइल पर बात और वीडियो काल कर बस कुछ दिन और मेरा बच्चा कहकर उन्हें समझातीं हैं। चिकित्सक और महिला कर्मी अभी ड्यूटी निभा रहीं हैं, कहती हैं कि मां का फर्ज तो हमेशा निभाती रहीं और आगे भी निभाएंगी, लेकिन इन दिनों वह लोगों की जान बचाने में जुटी हैं।
डॉ. आशा वर्मा का बेटा कबीर तो मात्र आठ माह का ही है। लाड़ले बेटे तो छोड़कर वह कोविड मरीजों की जान बचा रही हैं। कहती हैं कि बस घर पर फोन कर बच्चे का हाल लेकर ड्यूटी करती रहती हैं। आजमगढ़ निवासी स्टाफ नर्स कविता पहले तो अपने डेढ़ साल के बच्चे प्रियांश को साथ रखती थीं, लेकिन एल-टू हॉस्पिटल में ड्यूटी की खातिर वह उनसे दूर है। विजयलक्ष्मी की बेटी छवी वर्मा तो मां से घर आने की जिद करने लगती है। वह बताती हैं कि बेटी को समझाना मुश्किल हो जाता है पर घरवालों से कहती हैं कि उसे समझाएं कि मम्मी जल्दी जाएंगी। सुमनलता के बच्चे माही, इशा बड़े हैं तो बेटा शुभ छोटा है। बेटियों को वीडियो काल कर भाई का ध्यान रखने के लिए समझाती रहती हैं और बच्चों का धैर्य बंधाती। स्वेता का बेटा आशू तो मां से गुस्सा हो जाता हैं। वह बताती हैं कि उन्हें पता है कि उनका लाड़ला दूर है पर ड्यटी भी तो करनी है। यही नहीं अन्य चिकित्सक और स्टाफ नर्स वीडियो काल कर बच्चों से बात करती रहती हैं।
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मां की ममता से हार गया कोरोना
बेटा अभिराज तिवारी कब संक्रमण की चपेट में आ गया शिल्पी तिवारी जान भी नहीं पाईं, लेकिन जैसे ही पता चला कि उनके जिगर का टुकड़ा संक्रमित है तो अपनी चिता छोड़कर संक्रमण से लड़ना शुरू कर दिया। परिवार के अन्य लोग भी संक्रमित हो गए, उनकी सेवा, सभी को समय पर दवा, खाना खिलाकर शिल्पी अपने बेटा अभिराज के लिए अलग समय रख लेती। बिना अपनी चिता किए संक्रमण से लड़ती रहीं और मां की ममता से कोरोना हार गया। अब अभिराज और पूरा परिवार पूरी तरह से स्वस्थ है।