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आंदोलन में खाई थी लाठियां, अब जलाएंगे घी के दीए

हरदोई आखिरकार बुधवार को वह सुखद पल आ ही गया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 11:04 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 11:04 PM (IST)
आंदोलन में खाई थी लाठियां, अब जलाएंगे घी के दीए
आंदोलन में खाई थी लाठियां, अब जलाएंगे घी के दीए

हरदोई : आखिरकार बुधवार को वह सुखद पल आ ही गया जब जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का शिलान्यास हो जाएगा। पूरे देश ही नहीं विदेशों में तक में रामभक्तों में खुशी का माहौल है। इसके पूर्व दो नवंबर 1990 व 5 दिसंबर 1992 को स्वयं सेवकों ने अपने प्राणों की आहूति देकर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था। इस आंदोलन में शामिल लोगों के चेहरे पर इस समय विजय के भाव नजर आ रहे हैं। सभी का कहना है कि आंदोलन में लाठियां खाईं थी, अब घी के दिए जाएंगे। पचदेवरा क्षेत्र के ग्राम लखनौर कमालपुर थाना पचदेवरा विकास खंड भरखनी निवासी व आरएसएस के नगर,जिला प्रचारक व विहिप के विभाग संगठन मंत्री रहे व गृहस्थ आश्रम त्याग कर सन्यास आश्रम ग्रहण करने वाले महेश उर्फ महेश्वरानंद कहते हैं कि 5 दिसंबर को जब विवादित स्थल ढहाया गया था तो वह प्रत्यक्षदर्शी थे। अब मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन उनके सामने हो रहा है। सह प्रभु कृपा है। बघौली के ग्राम भेलावां निवासी श्याम सुंदर का कहना है कि यदि विवादित स्थल न हटाया गया होता तो वह आज मंदिर निर्माण मुश्किल हो जाता। वह बताते हैं कि वह जिले से उनके साथ करीब 25 लोगों का जत्था ट्रेन के द्वारा 3 दिसंबर को ही अयोध्या के लिए रवाना हो गए थे। 5 दिसंबर को सरयू नदी पर स्नान कर बालू लाकर राम मंदिर पर डालना था। लेकिन पूरे देश से आए स्वयं सेवकों का उत्साह व साध्वी उमा भारती व ऋतुंम्भरा के जोशीले भाषणों से विवादित स्थल कुछ ही समय में साफ हो गया। पारसनाथ बताते हैं कि विवादित स्थल गिरने के बाद जैसे ही मलवा हटाने का आदेश दिया गया। सभी कार्यकर्ताओं ने यादगार के लिए अपने कपड़ों में उसे भर लिया व घर ले गए। कृपाशंकर, पं. विमलेश कुमार, भगवान शरण, रामनाथ अनिल कुमार बताते हैं कि जब कार्यकर्ताओं का जोश उजागर हुआ तो चोटी पर मौजूद सुरक्षा कर्मी स्वयं ही भाग गए। इसके बाद कार्यकर्ताओं ने उसको ढहाने का काम शुरू कर दिया। बताया कि गांव के ही शिवचरन प्रजापति, रामकुमार सिह,शेर बहादुर सिंह, विमलेश कुमार, प्रेम शंकर, सुखवासी, भोलानाथ, कमलाकांत सहित काफी लोग थे। सभी में था परिवार का भाव: संख्या बहुत थी लेकिन सभी में परिवार का भाव था। जनहानि बचाने के लिए सात चरणों में मानव श्रंखला बनाई गई थीं। यदि कोई घायल हो जाता तो आनन-फानन में ही उसे चिकित्सा सेवा दी जाती थी।

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कारसेवकों का भी होना चाहिए सम्मान: जिन कारसेवकों ने राम मंदिर आंदोलन में अपना योगदान दिया उनको भी ऐसे अवसर पर याद किया जाना चाहिए। ऐसे कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जाना चाहिए। जिससे उनका भी उत्साह वर्धन होता रहे। यह मांग कारसेवकों की ओर से की गई। स्थानीय लोगों ने भी जताई थी प्रसन्नता: ढांचा गिराने के बाद जब कारसेवक वापस आ रहे थे तो स्थानीय लोगों द्वारा उनका जोरदार स्वागत किया गया। जगह-जगह उन्हें मिष्ठान, भोजन कराया गया।


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