ब्रांडेड की कीमत पर बेच रहे जेनेरिक दवाएं
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हरदोई: कमाई के खेल में ब्रांडेड ही नहीं, अब जेनेरिक दवाएं भी मरीजों को दर्द दे रही हैं। प्रिट रेट की आड़ में पांच रुपये की गोली 35 रुपये में बेची जा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि कई जेनेरिक दवाएंतो ब्रांडेड से भी महंगी बेची जा रही हैं। पूरा खेल फार्मेसी कंपनी, दवा विक्रेता व डॉक्टरों की सांठगांठ से चल रहा है।
ब्रांडेड व जेनेरिक दवाएं मल्टीनेशनल कंपनियां बना रही हैं। इनकी एमआरपी में खास अंतर नहीं होता है। देखा जाए तो जिले में 655 दवा की दुकानें हैं। इसमें 300 होल सेलर हैं, बाकी सभी रिटेलर हैं। बाकी अस्पतालों में भी दवाखाना चलते हैं। इनमें से अधिकतर में जेनरिक दवाओं से लाखों रुपये की चपत मरीजों को लग रही है।
ऐसे चल रहा गड़बड़ धंधा
पैरासिटामॉल हो या फिर आयरन या अन्य कोई भी दवा, सभी में खेल हो रहा है। दवाखाना संचालक अखिलेश गुप्ता बताते हैं कि जेनेरिक दवाएं भी कंपनियां अलग-अलग कीमत में बेचती हैं। मूल कीमत से कई गुना अधिक एमआरपी अंकित किया जाता है। ड्रग प्राइज कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीयू) में शामिल दवाओं के रेपर पर मूल कीमत से ज्यादा एमआरपी होती है। आम ग्राहक को नहीं पता होता है कि यह जेनेरिक दवा है। दवा कंपनियां अपनी मर्जी या यूं कहें कि चिकित्सक और केमिस्ट की मर्जी से एमआरपी प्रिट कराती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होता खेल
जेनेरिक दवाओं का कस्बा और ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा खेल होता है। अमूमन जो जागरूक होते हैं वह चिकित्सक की लिखी दवाई ही लेते हैं। कस्बों में चिकित्सक पर्चों में ऐसी जेनेरिक दवाई लिखते हैं कि उनकी भाषा दवाखाना संचालक ही पढ़ पाते हैं। मरीज या तीमारदार समझ ही नहीं पाता कि दवा की कंपनी लिखी है या सॉल्ट, वह बस दवा लेकर चला जाता है। कुछ प्रमुख जेनेरिक दवाएं और उनकी कीमत
दवा- थोक में- --- एमआरपी
कैल्शियम- 10 रुपये की 15 गोली- 45 रुपये की 15 गोली
कफ सिरप- 10 रुपये- 70 से 80 रुपये
मल्टी विटामिन- दो रुपये कैप्सूल- 15 रुपये कैप्सूल
सेफोटेक्सिम इंजेक्शन- 40 रुपये- 250 रुपये
कोट-
-कंपनियां कुछ भी एमआरपी लिख देती हैं। उसी के आधार पर बिक्री होती है। ज्यादातर दुकानदार उसी के आधार पर दवा बेचते हैं। सरकार को एमआरपी तय करनी चाहिए।
- नितीश मुखर्जी, सचिव, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिशएन