गंगा में पानी बढ़ने से पांच घर कटे, कई गांव पर खतरा
बालू की बोरियां लगा कटान रोकने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि शनिवार को पानी घटने से लोगों ने राहत की सांस ली है।
हरदोई : गंगा में पानी बढ़ने से ग्राम सुनारीपुरवा में पांच घर कट गए है। इनमें रहने वाले लोग सड़क किनारे आ गए हैं। हालांकि शनिवार को पानी घटने से लोगों ने राहत की सांस ली है। कटान रोकने के लिए बालू की बोरियां लगायी जा रही है। फिलहाल बाढ़ जैसे हालात नहीं है।
कटरी छिबरामऊ का ग्राम सुनारीपुरवा गंगा किनारे बसा हुआ है। गांव निवासी रामनरेश, आत्माराम, मनोज, भयन्नू व श्रीराम के घर कट गए है। पानी बढ़ता देख घर गृहस्थी का सामान इन्होंने पहले ही हटा दिया था। इससे वह बच गया, लेकिन उनका आशियाना छिन गया है। ग्रामीणों के अनुसार ग्राम चिरंजूपुरवा, घासीराम पुरवा व सुनारीपुरवा के पास गंगा की धारा सीधे आकर टकराती है। कटान के हिसाब से यह जगह बेहद संवेदनशील मानी जाती है। प्रशासन की ओर से एक किलोमीटर से अधिक दायरे में बालू की बोरियों को जाल में बांधकर डाला जा रहा है। जिससे कटान होना बंद हो गया है। यह काम एक सप्ताह से अधिक समय से चल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि राजघाट पर कटान रोकने के लिए बालू की बोरियां लगाने का काम पहली बार किया गया है। इससे उनको कटान रूकने की उम्मीद है।
डीएम ने भी स्थिति का लिया था जायजा : जिलाधिकारी पुलकित खरे ने दो दिन पहले मौके पर पहुंचकर कटान की जद में आए गांव का निरीक्षण किया था और बालू की बारियां लगाने का शीघ्र कराने को निर्देशित किया था। इसके बाद कार्य में तेजी आ गई है। अब देर रात तक बोरियां डालने का काम किया जा रहा है। इसके लिए जेनरेटर लगाकर लाइट की भी व्यवस्था की गई है।
दर्जनभर गांवों पर कटान का मड़रा रहा खतरा : गांव के बड़े बुजुर्गों की माने तो बीते चालीस वर्षो से गंगा कटरी के वाशिंदे बाढ़ का दंश झेल रहे हैं। सैकड़ों बीघा खेती गंगा में समां चुकी है। कटरी परसोला, कटरी छिबरामऊ के लगभग तीन दर्जन गांव प्रभावित हो चुके हैं। लोग सड़क किनारे झोपड़ी डालकर वर्षो से जीवनयापन कर रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी मक्कूपुरवा, चिरंजूपुरवा, देवी पुरवा, कटरी अजमतपुर व शेखनपुरवा पर कटान का खतरा मड़रा रहा है।
गत वर्ष भी चिरंजूपुरवा हुआ था प्रभावित : गत वर्ष गंगा किनारे बसा गांव चिरंजूपुरवा पानी बढ़ने से प्रभावित हुआ था। गांव के द्वारिका, रईस आदि ने ईंट बचाने के लिए अपने पक्के मकान स्वयं तोड़ डाले थे। इस गांव में बने एक दर्जन से अधिक इंदिरा आवास, शौचालय कटान मे बह गए थे।