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बच्चों की ड्रेस खोल रही सिस्टम की पोल

-किसी की छोटी तो कोई बड़ी पहने घूम रहा -टास्क फोर्स को भी नहीं दिखती है हकीकत

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 11:15 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 11:15 PM (IST)
बच्चों की ड्रेस खोल रही सिस्टम की पोल

हरदोई: परिषदीय विद्यालयों के बच्चों की ड्रेस में हर वर्ष की तरह इस बार खेल ही हुआ। न बच्चों की नाप सही है और न ही कपड़ा।

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2644 विद्यालयों में पढ़ने वाले पांच लाख 32 हजार 472 बच्चों 300-300 रुपये के दो सेट स्कूली ड्रेस के हिसाब से धनराशि जारी की गई थी। इस बार स्वयं सहायता समूहों को काम सौंपा गया था। मंशा थी कि समूहों को रोजगार मिल जाएगा और बच्चों को उनकी नाप के अनुसार ड्रेस मिलेंगी। खंड शिक्षा अधिकारियों को प्रबंध समिति के खातों में भेजी गई धनराशि से कपड़ा खरीदवाकर समूहों को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। व्यवस्था तो बहुत बनाई गई, लेकिन हुआ वही जो हर साल होता है। विभाग का दावा है कि शत प्रतिशत बच्चों को ड्रेस मिल चुकी है, लेकिन अभी भी बहुत से बच्चों तक ड्रेस नहीं पहुंची है। जिन बच्चों को मिली भी उनमें भी अधिकांश में किसी की छोटी और किसी की बड़ी है। एक तो नहीं हर विकास खंड का यही हाल है और तो और कई क्षेत्रों में तो ड्रेस फटने भी लगी है। कहने को तो गुणवत्ता की जांच के लिए टास्क फोर्स गठित किया गया था वह भी खानापूर्ति तक ही सीमित रह गया है। साठगांठ से सिलाई गई ड्रेस

बच्चों की ड्रेस में हर वर्ष बड़े बड़े शामिल होते हैं। अध्यापक का तो नाम ही होता है। आपूर्ति तो हर वर्ष अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के खास ही करते हैं। इस वर्ष बस व्यवस्था बदल गई। शिक्षा से जु़ड़े लोगों का कहना है कि आपूर्ति करने वालों की साठगांठ से ही इस बार ड्रेस सिलवाई गई। -ड्रेस की जांच के लिए टास्क फोर्स गठित है। नियमानुसार जांच कराई भी जा रही है। बच्चों को समूहों से सिलवाकर ही ड्रेस दी गई है। अगर कहीं पर खामी है तो जांच कर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई होगी।----हेमंतराव, बीएसए


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