घास-फूस के छप्पर में ठंडे प्रवासी श्रमिकों के चूल्हे
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हरदोई: गांव लौटे प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। शुरुआत में तो उनकी मदद को परिवार बढ़े, लेकिन भविष्य को देखते अब वह बोझ लगने लगे हैं। घरों में भी उन्हें ताने सुनने पड़ते। वह कहते हैं कि हम खुद अपने परिवार का पेट पालें या तुम्हारी मदद करें। ऐसे एक दो नहीं बहुत से लोग हैं, जिनके सामने रोजी-रोटी का संकट है। घासफूस के छप्पर में चूल्हे ठंडे पड़े हैं।
रूपापुर के सैदापुर निवासी देवेंद्र कुशवाहा रोजी-रोटी की खातिर महाराष्ट्र गए थे। संकट में गांव आए तो उन्हें कोई मदद नहीं मिली। परिवार में पत्नी व एक बच्ची है। देवेंद्र बताते हैं कि उन्हें न मनरेगा में काम मिला और न ही उनका राशन कार्ड है। कहते हैं कि पांच भाई हैं, जोकि खुद परेशान हैं। उनसे मदद मांगी तो वह कहते हैं कि हम अपने परिवार का पेट पालें या फिर तुम्हारी मदद करें। देवेंद्र कहते हैं कि उन्हें जो राशन आदि मिल गया, बस किसी तरह पेट पाल रहे हैं। गांव निवासी अनमोल भी मुंबई के गढ़चिरोली में जूस बेचता था। अब परिवार समेत गांव आ गया। वह बताते हैं कि उनके परिवार में छह भाई हैं। पिता और भाइयों से मदद मांगी तो निराशा हाथ लगी। न मनरेगा में काम मिला और न ही कोई सहारा है। यह दो परिवारों की कहानी मात्र समझाने के लिए है। हर गांव में ऐसे परिवार हैं। जिन्हें मदद की दरकार है। प्रधान मनरेगा में काम देने की बात तो कहते हैं, लेकिन काम नहीं मिल पा रहा है। प्रवासी श्रमिक जिस उम्मीद से गांव आए थे, वह धीरे धीरे टूट रही है।