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यूपी चुनाव 2022: जातीय समीकरण के आगे बौने पड़े मुद्दे, तीनों सीट पर सियासी हलचल तेज

हापुड़ जिला भले अब बना लेकिन वह कभी पहचान का मोहताज नहीं रहा। यहां का गुड़-गल्ला पापड़ पिलखुवा की चादर गढ़ का मूढ़ा और स्टील के बर्तन की देश भर में मांग है। फिर भी हापुड़ को बुनियादी सुविधाएं नहीं हासिल हो सकीं और औद्योगीकरण में भी वह पिछड़ा रहा।

By Pradeep ChauhanEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 01:07 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 01:07 PM (IST)
यूपी चुनाव 2022: जातीय समीकरण के आगे बौने पड़े मुद्दे, तीनों सीट पर सियासी हलचल तेज
हापुड़ की तीनों विधानसभा सीटों के अलग-अलग जातीय समीकरण हैं।

हापुड़, जागरण संवाददाता। हापुड़ जिला भले अब बना लेकिन वह कभी पहचान का मोहताज नहीं रहा। यहां का गुड़-गल्ला, पापड़, पिलखुवा की चादर, गढ़ का मूढ़ा और स्टील के बर्तन की देश भर में मांग है। फिर भी हापुड़ को बुनियादी सुविधाएं नहीं हासिल हो सकीं और औद्योगीकरण में भी वह पिछड़ा रहा। इतना जरूर हुआ कि प्रदेश के मानचित्र पर कार्तिक गंगा मेला आ गया। हापुड़ के राजनीतिक परिदृश्य पर विशाल गोयल की रिपोर्ट: 

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हापुड़ की तीनों विधानसभा सीटों के अलग-अलग जातीय समीकरण हैं। इनके आगे चुनावी मुद्दे भी बौने पड़ जाते हैं। राजनीतिक दलों में छोटी-छोटी जातियों के प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में करने की होड़ रहती है। पिछले चुनाव में गढ़मुक्तेश्वर और हापुड़ विधानसभा सीट पर भाजपा ने कब्जा जमाया था जबकि, धौलाना सीट पर बसपा प्रत्याशी ने बाजी मारी थी।

सभी प्रमुख पार्टियों ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने टिकट बांटे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी प्रत्याशी के पास ऐसा कोई मुद्दा नहीं है, जिसको लेकर वह लोगों के बीच जा सके। केवल जातिगत आधार पर वोट मांगने की जुगत भिड़ाने का प्रयास किया जा रहा है। जातिगत आधार पर देखा जाता है कि किस व्यक्ति का क्षेत्र में कितना असर है। इस बार भाजपा ने सिर्फ हापुड़ सीट पर विधायक विजयपाल आढ़ती को दोबारा टिकट दिया है।

गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीट पर मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है। दशकों पुराने कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले गंगा मेले को प्रदेश के मानचित्र में शामिल किया गया। इस सीट पर 347026 मतदाता हैं। भाजपा ने मौजूदा विधायक डा. कमल मलिक का टिकट काटकर जाट कार्ड खेला है और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह

के रिश्ते के पोते हरेंद्र सिंह तेवतिया को चुनावी मैदान में उतारा है।

सपा ने अपने तीन बार के विधायक मदन चौहान का टिकट काटकर पहले नैना सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया, पर नामांकन के आखिरी दिनों में रविंद्र सिंह को सपा और रालोद गठबंधन से चुनावी रणभूमि में उतारा है। मदन चौहान साइकिल की सवारी छोड़कर हाथी पर बैठ गए हैं। कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी आभा चौधरी को मौका दिया है।

हरिद्वार की तर्ज पर ब्रजघाट का विकास, अंतरराज्यीय बस अड्डा, गन्ना किसानों का भुगतान, रोजगार, आदि मुद्दे हैं। वर्ष 2012 में अस्तित्व में आई धौलाना विधानसभा सीट पर 411332 मतदाता हैं। साठा चौरासी के नाम से मशहूर इस सीट पर भाजपा ने पूर्व विधायक धर्मेश तोमर को मैदान में उतारा है। भाजपा उनके अनुभव का इस सीट पर लाभ लेना चाहती है।

बसपा से इस सीट पर विधायक बने असलम चौधरी इस बार साइकिल पर सवार हो गए हैं। वह सपा रालोद के प्रत्याशी बन चुनाव मैदान में दोबारा अपना भाग्य अजमाने के लिए उतरे हैं। कांग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए अरविंद शर्मा को चुनाव में उतारा है। वहीं, बसपा ने इस सीट पर मुस्लिम व दलित मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए वासिद अली को उतारा है। शिक्षा, उद्योगों को सुविधा, रोजगार, पिलखुवा के हैंडलूम उद्योग को मदद, धौलाना को नगर पंचायत का दर्जा आदि मुद्दे हैं।

हापुड़ विधानसभा सीट पर 365584 मतदाता हैं। भाजपा ने इस सीट पर मौजूदा विधायक विजयपाल आढ़ती पर फिर विश्वास जताया है। कांग्रेस से चार बार के विधायक रहे गजराज सिंह ने इस बार पाला बदलकर रालोद का दामन थामा है और सपा-रालोद गठबंधन से चुनावी मैदान में उतरे हैं। कांग्रेस ने वाल्मीकि कार्ड खेलते हुए जिला पंचायत सदस्य भावना वाल्मीकि को टिकट दिया है। बसपा ने दो बार विधायक रहे स्व. धर्मपाल सिंह के पुत्र मनीष कुमार मोनू को चुनावी रणभूमि में उतारा है। किसानों की समस्या, औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना, रोजगार, विकास का मुद्दा यहां के लोगों में प्रमुख है।


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