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kedarnath Tragedy 2013: आज भी भयानक मंजर को याद कर सिहर उठता है हापुड़ का एक परिवार

kedarnath Tragedy 2013 हापुड़ की रहने वाली स्वाति गर्ग आगे बताती हैं कि आज भी हम उस भयानक मंजर को याद कर सिहर उठते हैं। हमारे चारोंं ओर पानी था लेकिन पी नहीं सकते थे मंदाकिनी में पानी के साथ मलबा बह रहा था।

By Jp YadavEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 12:28 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 12:28 PM (IST)
kedarnath Tragedy 2013: आज भी भयानक मंजर को याद कर सिहर उठता है हापुड़ का एक परिवार
kedarnath Tragedy 2013: आज भी भयानक मंजर को याद कर सिहर उठता है हापुड़ का एक परिवार

हापुड़ [मनोज त्यागी]। 16 जून 2013 की सुबह हम बाबा केदारनाथ के दर्शन कर वापस लौटने लगे, तो तेज बारिश होने लगी। हम लोग केदारनाथ से करीब सात किमी नीचे रामबाड़ा दोपहर दो बजे पहुंच गए। काफी थक गए थे इसलिए विश्राम करने के मन से वहीं एक लाज में रुक गए और खाना खाकर आराम करने लगे। तभी 16 वर्षीय बेटी लिबनी ने कहा की मम्मा कमरा हिल रहा है। पहले तो मुझे नहीं लगा पर मैने दीवार पर हाथ लगाकर देखा तो कंपन हो रही थी।

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पति संजय बाहर से आए और बताया कि मंदाकिनी में पानी तेजी से बढ़ रहा है। यहां से जल्दी बाहर चलो। सभी ने अपने पैसे व मोबाइल लिया बाकी का सभी सामान वहीं छोड़कर बाहर आ गए। लाज में ठहरे 50-60 लोग लाज की तीसरी मंजिल पर पहुंच गए। हमने भी वहां जाने का प्रयास किया पर जगह नहीं थी तो हम वहां से पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगे। करीब 50 फीट की ऊंचाई पर ही गए थे, तो नीचे देखा पानी का बहाव बहुत ही तेज हो गया था। जिस लाज से कुछ देर पहले निकले थे वह हमारे सामने ही पानी के बहाव के साथ बह गया और छत पर चढ़े लोग भी उसमें बह गए। पहाड़ी पर पेड़ नहीं थे कुछ कटीले पौधे थे उन्हें पकड़ते तो हाथों में कांटे लग रहे थे। इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। हाथ लहूलुहान हो चुके थे। फिर भी दर्द सहते हुए ऊपर की ओर जा रहे थे। एक स्थान पर जाकर हम लोग रुके। अंधेरा घिर आया था बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। आसमान में बिजली ऐसे कड़क रही थी जैसे एक साथ हजारों शीशे तोड़े जा रहे हों। रात में एक व्यक्ति बार-बार मेरे ऊपर गिरा जा रहा था। सुबह देखा तो वह एक ओर खाई में गिर पड़ा था वह मर चुका था। बाद में एहसास हुआ कि सारी रात मेरे कंधे पर कोई लाश रुकी हुई थी।

हापुड़ की रहने वाली स्वाति गर्ग आगे बताती हैं कि आज भी हम उस भयानक मंजर को याद कर सिहर उठते हैं। हमारे चारोंं ओर पानी था, लेकिन पी नहीं सकते थे मंदाकिनी में पानी के साथ मलबा बह रहा था। जिन पालीथीन को हम मानव जीवन के लिए खतरा मानते हैं वही पालीथीन उस दिन हमें जीवन देने का काम कर रही थी। छोटी-छोटी पालीथीन में गांठ मारकर उन्हें जोड़ा और बारिश का जो पानी उसमें इकट्ठा हो जाता था वही पीने में काम आ रहा था। 17 जून का कोई हमारी सुध लेने नहीं आया। 18 जून को एक हेलीकाप्टर हमारे ऊपर से गुजरा। पायलट और हम एक दूसरे को देख पा रहे थे, पर वह केदारनाथ की ओर चक्कर लगाकर वापस लौट आया। वहां न तो कोई हमारी मदद कर पा रहा था और न ही हम किसी की मदद कर पा रहे थे।

हम परिवार के पांच लोग साथ थे जिसमें मै, मेरे पति संजय, बेटी लिबनी और ननद सुधा अग्रवाल और ननदोई अशोक अग्रवाल थे। 19 जून को जब दिन निकला तो बारिश बंद हो चुकी थी। धीरे-धीरे धूप फैलने लगी थी। पूरा जोर लगाकर जब आंख खोली तो हेलीकाप्टर से कुछ खाने का सामान फेंका जा रहा था, लेकिन हम तक वह राहत सामग्री नहीं पहुंच सकी। एक डिब्बे में एक चिट्ठी मिली जिसमें लिखा था कि जहां आप लोग हो उसे थोड़ा चौड़ा करो ताकि हेलीकाप्टर उतारा जा सके, लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ कर सके। हम काफी ऊंचाई पर थे, लेकिन नीचे पानी को देखकर उतरने की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि नीचे नदी का रौद्र रूप अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ था। मेरे पति संजय डायबिटिक हैं। डायबिटिक का इतना लंबा उपवास खतरनाक साबित हो रहा था। आसमान में कुछ विशेष प्रकार के पक्षी मंडराने शुरू हो गए। उन्हें देखकर अंतरमन कांप उठता था। आस-पास भूखे कुत्ते एकटक हमें देख रहे थे।

लगता था कि शायद वह आक्रमण की कशमकश में थे। हमने तुरंत वह जगह छोड़ दी। रास्ते में घोड़ों की लीद और पेशाब के साथ बारिश से सब बदबूदार हो चुका था। चलने के दौरान कुछ गंदगी चेहरे तक पहुंच गई। अंदर से उल्टी आ रही थी। लेकिन पेट में कुछ नहीं था। दम घुटने जैसा हो रहा था। हम सब एक दूसरे को पकड़कर एक साथ चल रहे थे। पति को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही थी। वह चल नहीं पा रहे थे और हम लोगों में भी बस प्राण ही बचे थे। जब कुछ दूर आगे चलकर देखा तो वही रामबाड़ा था जहां तीन दिन पहले हमने खाना खाया था और चहल-पहल भी थी। अब वहां सिर्फ मंदाकिनी का उफान और मलबे का पानी था। जीवन का कोई अंश वहां नहीं था। हमसे करीब 300-400 मीटर की दूरी पर हेलीपैड था। पति और ननदोई दोनों की हालत बहुत खराब थी। पति बहुत ज्यादा दिक्कत में थे।

20 जून को जब हम हेलीपैड के कुछ करीब पहुंचे तो पति अचेत हो चुके थे। बामुश्किल मै हेलीपैड तक पहुंची मेरे पास से एक फौजी जिसकी वर्दी पर अशोक लिखा था वह रेस्क्यू कर रहे थे मैने उन्हें अशोक भैया कहकर आवाज दी तो उन्होंने अपने साथियों के संग मिलकर मेरे पति को उठाकर लाए। फाटा में जिस अस्पताल में हमें पहुंचाया गया, वहां कोई सुविधा नहीं थी। जैसे-तैसे मोबाइल में सिग्नल आए, तो एक मैसेज घर पर बेटी ने किया। तब कहीं जाकर हमें रेस्क्यू करके पहले देहरादून और फिर दिल्ली लाया गया। लंबा संघर्ष के बाद दूसरा जीवन मिल पाया।

भ्रम की स्थिति में वही दिखा जो सोचा

मेरी मनोस्थिति भ्रम जैसी हो गई थी। मेरे मन में कोई भी विचार आए, तो वह सीधे आसमान में दिखाई देने लगता था। बेटी के पेट में जलन होने लगी थी तो मुझे लगा कि इसे आइसक्रीम खिला दें तो यह ठीक हो जाएगी। मुझे आसमान में आइसक्रीम की सोफ्टी नजर आने लगीं। ईश्वर को याद करने पर स्वास्तिक, डमरू आदि और जो भी मन सोचती वह मैने स्पष्ट रूप से बादलों में आकृति के रूप में उभर आता था।

रात में चमक रहे थे पौधे

रामबाड़ा के ऊपर पहाड़ी पर जहां रुके हुए थे। वहां रात में एक विशेष प्रकार का पौधा देखा जिसकी पत्तियां रात में चमक रहीं थीं। उसे चमकता देख छूकर देखा, तो उसकी पत्तियां खुरदरी थीं, लेकिन सारी पत्तियां जुगुन की तरह चमक रहीं थीं। एक बहुत ही अद्भूत पौधा था। शायद संजीवनी जैसा ही पौधा होगा।

नए चेहरे करने लगे थे लूटखसोट

18 जून को शाम के समय सात आठ व्यक्ति जो साफ कपड़े पहने हुए बिलकुल तरोताजा एक 15-16 साल की बच्ची को उठाकर ले गए। मैने सोचा कि शायद ये लोग हमारी कुछ मदद कर सकते हैं। मगर तभी एक व्यक्ति ने बताया कि इस बच्ची के माता पिता बेहोश पड़े हैं और ये लुटेरे हैं। एक साथ रहो संगठित रहो। वे लोग जेबों से पैसे और महिलाओं के जेवर गहने उतार रहे थे। नए चेहरों के कारण वहां लूटपाट शुरू हो गई थी।

जब 16 जून के आस-पास का समय आता है, तो परिवार में कुछ अलग सा माहौल बन जाता है। सब कुछ सहज नहीं रहता। जबकि परिवार चाहता है कि हम उस त्रासदी को बिलकुल भी याद न करें, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। इस त्रासदी में हमारा ड्राइवर उमेश शर्मा भी साथ गया था, पर वह कभी नहीं लौटा। जिसका जीवन भर दुख रहेगा।- संजय कृपाल


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