गिर रहा जल स्तर, जल संरक्षण की कवायद पर उठ रहे सवाल
जागरण संवाददाता हापुड़ अंधाधुंध दोहन से धरती की कोख सूखती जा रही है। भूगर्भ से जल का भं
जागरण संवाददाता, हापुड़: अंधाधुंध दोहन से धरती की कोख सूखती जा रही है। भूगर्भ से जल का भंडार खत्म हो चला है। आलम यह है कि जिले के भूगर्भ जल स्तर का अधिक दोहन हुआ है। जिले के चार में से तीन ब्लाक डार्कजोन में हैं। यदि अभी भी नहीं चेते तो भावी पीढि़यों को पानी मयस्सर नहीं होगा। हालांकि सरकार जलशक्ति अभियान जलाकर जल संरक्षण की मुहिम तेज कर रही है, लेकिन जिले में यह कामयाब होगा यह वक्त तय करेगा।
विगत वर्षो में काफी भूजल दोहन के चलते सभी ब्लाकों में जलस्तर गिर गया है। बारिश कम होने से भूगर्भ जल की स्थिति का संतुलन बिगड़ गया है। यूं तो पानी का उपयोग साल भर होता है और बरसात बमुश्किल तीन-चार महीनों की ही होती है। इसके बावजूद अच्छी बारिश काफी हद तक भूजल के भंडार को भर देती है। साल 2009 से औसत बारिश आधे पर आकर टिक गई है और जमकर हो रहे भूजल के दोहन ने भूगर्भ जल का हाल बिगाड़ दिया है। भूगर्भ जल विभाग के आंकड़ों की मानें तो जिले में भूगर्भ जल का दोहन अधिक हुआ है। सबसे ज्यादा खराब हालात सिभावली विकास खंड में हैं। यहां जलस्तर वर्ष 2009 के मुकाबले प्री मानसून पांच मीटर तक गिर चुका है। ऐसे में भूगर्भ का गिरता स्तर चिता की बात है। यदि अभी इस बारे में नहीं सोचा गया तो भविष्य में बुरे परिणाम होंगे। जनपद के विकास खंडों में औसत भूजल(मीटर में) विकासखंड 2009(प्री) 2009(पोस्ट) 2019(प्री) 2019(पोस्ट)
धौलाना 5.94 4.97 7.85 8.30 गढ़मुक्तेश्वर 8.73 8.42 11.46 11.97 हापुड़ 10.94 11.10 11.99 13.51 सिभावली 7.08 6.56 12.22 11.79 नोट-यह आंकड़े भूगर्भ जल विभाग से लिए गए हैं। आंकड़े वर्ष में मानसून से पहले और बाद के हैं। इन कारणों से गिरा भूजल स्तर
- बोरिग
- पक्के रास्तों का निर्माण
- पेड़ों का अंधाधुंध कटान
- जल को व्यर्थ बहाना
- बारिश का कम मात्रा में होना
- वर्षा जल का संग्रहण न होना गांवों में भूजल दोहन पिछले दस वर्षो में कई गुना बढ़ा है। भूजल स्तर गिरने से रोकने के लिए किसानों को सिचाई करने के लिए ड्रिप सिस्टम लगाने होंगे। इससे पानी की बचत होगी। प्रशासन को भी गंभीरता से इस समस्या का निस्तारण करने के लिए कार्य करना चाहिए। सभी जलाशयों और तालाबों को पानी से लबालब करें। पानी का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाए, तभी इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है।
-कृष्णकांत हूण, पर्यावरणविद्