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श्रद्धालुओं की जरूरत बनी पटेर की चटाइयां

कार्तिक पूर्णिमा गंगा मेले की जो रौनक नजर आ रही है, उसमें गढ़ के परिवारों द्वारा बनाई गई पटेर नामक घास की चटाईयों का अहम योगदान है। मेले में रेतीली सड़कों को समतल करने से लेकर तंबुओं में बिछौने के रूप में इनका जमकर प्रयोग किया जा रहा है। अगर ये चटाई न हों तो मेले की रेतीली व गीली जमीन पर सो पाना संभव नहीं है। मेले में लोगों ने तंबु तो गाड़ लिए, लेकिन इन तंबुओं में बिछाने के लिए पटेर की पत्तियों से बनी चटाई का प्रयोग किया जा रहा है। यह चटाई गढ़मुक्तेश्वर के ही सैकड़ों परिवारों द्वारा बनाई जा

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 06:18 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 06:18 PM (IST)
श्रद्धालुओं की जरूरत बनी पटेर की चटाइयां
श्रद्धालुओं की जरूरत बनी पटेर की चटाइयां

संवाद सहयोगी, गढ़मुक्तेश्वर

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कार्तिक पूर्णिमा गंगा मेले में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्थानीय परिवारों द्वारा बनाई गई पटेर की चटाइयों का अहम योगदान है। मेले में रेतीली सड़कों को समतल करने से लेकर तंबुओं में बिछौने के रूप में इनका जमकर प्रयोग किया जा रहा है। मेले में यदि ये चटाई नहीं मिलें तो रेतीली और गीली जमीन पर सो पाना संभव नहीं हो पाता। 

मेले में रहने के लिए लगाए गए शिविरों में बिछाने के लिए पटेर की पत्तियों से बनी चटाई का प्रयोग किया जा रहा है। यह चटाई स्थानीय परिवारों द्वारा बनाई जाती हैं। गंगा मंदिर के आसपास कई परिवार दिन रात इन चटाइयों को बनाने में जुटे रहते हैं। चटाई बनाने वाली सावित्री ने बताया कि पूरा दिन मेहनत करने के बाद उनके परिवार की पांच महिलाएं लगभग आठ चटाइयां तैयार कर पाती हैं। काफी मेहनत का काम होने के बावजूद उनके परिवार के पालन-पोषण करने का बस यही एकमात्र सहारा है। पटेर की पत्तियां देहरादून, गाजियाबाद और उत्तराखंड के अन्य स्थानों से आती हैं। दस फीट लंबी एक चटाई की लागत लगभग 25 रुपये आती है। ठेकेदार उसकी कीमत 40 रुपये देता है और बाजार में यह चटाई 60 रुपये में बेची जाती है। सभी परिवार पूरे वर्ष इन चटाइयों को तैयार करने में जुटे रहते हैं। उन्हें कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले का इंतजार रहता है। 

रेतीली और गीली जमीन पर इन चटाइयों को बिछाना आवश्यक हो जाता है। चटाई बिछाए बिना यदि बिस्तर बिछा लिया गया तो थोड़ी ही देर में बिस्तर गीला हो जाता है। रात में चलने वाली सर्द हवा और गीला बिस्तर मनुष्य को सारी रात जाग कर काटने पर मजबूर कर सकता है। यह चटाई उन मेले के उन रास्तों पर भी बिछाई जाती है जिनमें दलदल अथवा रेत की अधिकता होती है। इन चटाइयों को भूमि पर बिछाकर उनके ऊपर रेत की पतली परत बिछा दी जाती है। इसके बाद वाहन इन रास्तों पर सुगमता से आ जा सकते हैं। सर्द हवा को रोकना हो या अस्थाई शौचालय बनाना हो, इन चटाइयों का ही प्रयोग किया जाता है। घाट पर महिलाओं के वस्त्र बदलने के लिए इन चटाइयों की चारदीवारी कर दी जाती है। मेले में इन चटाइयों की बेहद आवश्यकता रहती है।


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