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भारतीय संस्कृति का संवाहक बना मेला

हर-हर गंगे-गंगे मैया की जय के जयकारे लगाने वाले और पतित पावनी गंगा में स्नान करने वाले श्रद्धालु आस्था व श्रद्धा का अनूठा संगम पेश करते हैं। गढ़ कार्तिक पूर्णिमा मेला संस्कृति का वाहक बना हुआ है। गंगा मैया की तलहटी में सपरिवार रहकर पुण्य कमाने आने वाले श्रद्धालु खाली पड़े रहने वाले गंगा क्षेत्र की रौनक भी बढ़ाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 07:33 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 07:33 PM (IST)
भारतीय संस्कृति का संवाहक बना मेला
भारतीय संस्कृति का संवाहक बना मेला

संवाद सहयोगी, गढ़मुक्तेश्वर

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ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान मेले में करीब आठ दिन तक रेत पर बसने वाले तंबू के शहर में अलग-अलग संस्कृतियों का अनूठा संगम भी देखने को मिलता है। सभी जातियों और मान्यताओं को मानने वाले लोग सारे भेदभाव को दूर कर एक साथ गंगा नदी में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ कमाते हैं। मेला क्षेत्र में चारों ओर हर-हर गंगे के जयघोष सुनाई पड़ते हैं।

श्रद्धालु लगभग एक सप्ताह तक गंगा की गोद में ही रहकर पूजा-अर्चना और मनोरंजन करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। सभी श्रद्धालु एक-दूसरे की जाति और धार्मिक मान्यताएं पूछे बिना गंगा में साथ-साथ स्नान करते हैं। यह सामाजिक समरसता का जीता जागता स्वरूप है। मेला परिसर में विभिन्न धार्मिक संगठन सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए श्रद्धालुओं को जागरूक करते हैं। मेले में ब्राह्मण सभा, जाट सभा, कश्यप सभा, भारतीय किसान यूनियन, किसान मजदूर संगठन समेत दर्जनों संगठन अपना प्रचार करने और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करते है।


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