विदेश से महंगी आ रही रद्दी, आसमान छू रहे कागज के दाम
शुभम गोयल हापुड़ कागज संबंधी फैक्ट्रियों पर इन दिनों बड़ा संकट गहरा रहा है क्योंकि
शुभम गोयल, हापुड़ :
कागज संबंधी फैक्ट्रियों पर इन दिनों बड़ा संकट गहरा रहा है, क्योंकि विदेश से आने वाली रद्दी (री-साइकल पेपर) की मात्रा कम होने के कारण यह महंगी हो गई है। इसके पीछे चीन द्वारा कंटेनरों का दाम बढ़ाया जाना भी बताया जा रहा है। इससे जनपद में स्थित कोरोगेटेड बाक्स और कागज से अन्य सामान बनाने वाली फैक्ट्रियां प्रभावित हुईं हैं। यही कारण है कि आने वाली 24 मार्च से लेकर 31 मार्च तक इस प्रकार की फैक्ट्रियों को बंद करने का निर्णय लिया गया है। उत्तर प्रदेश कोरोगेटेड बाक्स उद्योग मैन्युफेक्चर्स एसोसिएशन की बीते दिनों हुई बैठक के बाद इस पर सहमति बनी थी। इससे करीब दस करोड़ का कारोबार प्रभावित हो सकता है।
जनपद में तीन पेपर मिल हैं, जिनमें रद्दी के माध्यम से कागज बनाया जाता है। इन तीनों पेपर मिल के माध्यम से सालभर में करीब साढ़े तीन सौ करोड़ का कारोबार होता है। जबकि, कागज से पैकेजिग, गत्ता, कोन बनाने की धीरखेड़ा सहित पूरे जिले में तकरीबन 44 फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों में करीब 1700 कर्मचारी नौकरी करते हैं। वहीं, करीब 500 करोड़ रुपये का कारोबार इन फैक्ट्रियों के माध्यम से भी बाजार में होता है। ऐसे में अब तेजी से बढ़ रहे रद्दी के दामों से बनने वाले कागज ने इस करोड़ों के कारोबार पर ग्रहण लगाने का काम किया है, क्योंकि एक तरफ जहां पेपर मिल कागज का दाम बढ़ा रही हैं तो कोरोगेटेड बाक्स, पैकेजिग कागज आदि बनाने वाली फैक्ट्रियों ने भी दाम बढ़ा दिए हैं। इससे बाजार में महंगाई का तड़का लगना शुरू हो गया है। चीन के कारण बढ़ रहे दाम -
उद्यमी अशोक छारिया के अनुसार चीन के कंटेनरों में पहले विदेश से सामान आता था, लेकिन चीन ने इन कंटेनरों में सामान लाना बंद किया है, जबकि देश के पास कंटेनरों की संख्या कम है। ऐसे में कंटेनरों के दाम बढ़े हुए हैं, जिससे विदेश से आने वाली रद्दी महंगी हुई है। यहां तक कि यूरोप में अभी लाकडाउन है जबकि, सबसे अधिक रद्दी वहीं से ही आती है। इसके अलावा देश की पेपर मिलें अपने यहां बनने वाले कागज को चीन को बेच रही हैं। इन कारणों से ही देश में कागज का दाम भी बढ़ रहा है। सरकार को इसे तुरंत रोकना चाहिए, जिससे कि देश में हालात सामान्य हो सकें। अन्यथा, होली के बाद कागज का दाम 44 रुपये किलो से भी अधिक पहुंच जाएगा। हालांकि, अब कंटेनरों का निर्माण कराया जा रहा है, जिससे भविष्य में लाभ भी मिलेगा। विदेश से नहीं आ रही रद्दी -
चामुण्डा पेपर मिल के स्वामी मनोज गुप्ता के अनुसार देश में अमेरिका, दुबई, यूरोप और कनाडा से सबसे अधिक रद्दी आती है। कोरोना काल के कारण हुए लाकडाउन के दौरान इन देशों में रद्दी एकत्र होनी कम हो गई, जबकि जो थोड़ी बहुत रद्दी इन देशों में एकत्र हुई, वहां की सरकार ने अपने यहां की फैक्ट्रियों में इसका प्रयोग किया। इस कारण जो रद्दी पहले 9 रुपये किलो में पेपर मिल को मिलती थी और दूसरी फैक्ट्रियों को 21 रुपये प्रति किलो दी जाती थी। अब इसमें बड़ा उछाल हुआ है। यह रद्दी अब 26 रुपये किलो में पेपर मिल को मिल रही है, जिस कारण अन्य फैक्ट्रियों को कागज तैयार कर 38 रुपये तक में बेचा जा रहा है। इस कारण दामों में वृद्धि हुई है। पूरे देश में इस प्रकार की नौबत आ गई है। केंद्र सरकार को इस ओर तत्काल कोई कड़ा कदम उठाना चाहिए, जिससे कि कागज के दामों में वृद्धि न हो, क्योंकि इससे कोरोगेटेड बाक्स, पैकेजिग कागज आदि बनाने वाली फैक्ट्रियां प्रभावित हो रही है। इसी प्रकार दाम बढ़ते रहे तो यह फैक्ट्रियां संचालित कर पानी मुश्किल हो जाएंगी। - सतीश कुमार बंसल, उद्यमी पेपर मिलें चीन को कागज देना बंद करके देश की फैक्ट्रियों को इसकी आपूर्ति करें। जब रद्दी के दाम कम हो जाएं तो फिर वह दूसरे देशों को कागज भेजें। इससे देश में हालात सामान्य हो जाएंगे। यहां कि फैक्ट्रियों को भी नुकसान न के बराबर होगा। एसोसिएशन का जो भी निर्णय होगा, आने वाले दिनों में उसका पालन एकजुटता के साथ करेंगे। - चेतन गोयल, उद्यमी