विदेशी नहीं, देसी नस्ल साहीवाल और गिर के सीमेन की बढ़ी मांग, जानिए इनकी खासियत
देश के गोपालकों ने देशी नस्ल साहिवाल और गिर के वीर्य की मांग बढ़ा दी है। इनके वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से किसान बछिया पैदा कर रहे हैं।
हापुड़ [गौरव भारद्वाज]। गाय के दूध को सेहत की कुंजी मानने वालों के लिए अच्छी खबर है। जर्सी, हॉलिस्टीन, ब्राउन स्विस आदि विदेशी नस्ल की गायों को पालने वाले किसानों का रुझान अब देसी नस्ल की गायों की ओर बढ़ रहा है। यह हम नहीं बल्कि क्षेत्र के गांव विगास स्थित नवनिर्मित अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र के आंकड़े बोल रहे हैं। देश के गोपालकों ने देशी नस्ल साहिवाल और गिर के वीर्य की मांग बढ़ा दी है। इनके वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से किसान बछिया पैदा कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण पालने में आसानी और दूध की पौष्टिकता को बताया जा रहा है।
गाय की देशी नस्लों को दिया जाता है बढ़ावा
पिछले वर्ष क्षेत्र के गांव विकास में उत्तर प्रदेश पशुधन विकास विभाग ने अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र का लगभग एक अरब रुपये की लागत से निर्माण कराया। इस लैब में विभिन्न नस्लों के 171 बैल और भैंसे मौजूद हैं। जिनके वीर्य से 92 प्रतिशत बछिया पैदा होती हैं। इसे अमेरिका की कंपनी जीनस ब्रीडिंग इंडिया लिमिटेड के सहयोग से बनाया गया है। इस प्रदेश स्तरीय वीर्य उत्पादन केंद्र का निर्माण पिछले वर्ष अक्टूबर माह में पूरा हो चुका है। केंद्र पर 27 हजार 500 इकाई वीर्य का उत्पादन प्रतिमाह हो रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य गाय की देशी नस्लों को बढ़ावा देकर दुग्ध के क्षेत्र में श्वेत क्रांति लाना है।
विदेशी नस्ल के सांडों के वीर्य की मांग न के बराबर
उत्पादन केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ. वीर सिंह ने बताया कि केंद्र पर अक्टूबर 2019 से वीर्य का उत्पादन किया जा रहा है। इसमें देशी गाय की पांच नस्ल और तीन विदेशी नस्ल के सांडों का वीर्य उत्पादन किया जा रहा है। देशभर में गोपालक विदेशी नस्ल के सांडों के वीर्य की मांग न के बराबर है। वर्तमान में देशी नस्ल के सांड साहिवाल और गिर के वीर्य की मांग बढ़ गई है। 27 हजार 500 इकाई वीर्य में से 70 फीसदी इकाइ वीर्य साहिवाल नस्ल का उत्पादन किया जा रहा है। जबकि 10 से 15 फीसदी में गिर नस्ल का वीर्य उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान में साहिवाल नस्ल के 17 सांड उत्पादन कर रहे हैं। जबकि दो सांड गिर नस्ल के हैं। जिनकी संख्या और बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
ये है खासियत
पशु चिकित्सक के अनुसार देशी नस्ल की गाय कम दूध देती है, लेकिन वही सबसे पौष्टिक होता है। वहीं विदेशी नस्ल की गाय दूध तो अधिक देती हैं लेकिन इसमें पौष्टिकता कम होती है।
-साहीवाल प्रजाति
साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना दो हजार से तीन हजार लीटर तक दूध देती हैं, जिसकी वजह से ये दुग्ध व्यवासायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।
- गिर प्रजाति
गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रूप से इन्हीं गायों का पाला जाता है।
-केंद्र पर देसी और विदेशी नस्ल
उत्पादन केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ. वीर सिंह ने बताया कि अति हिमीकृत वीर्य उत्पदन केंद्र में साहिवाल, गिर, हरियाणा, थारपारकर और गंगा तीरी देसी नस्ल हैं। इसके अलावा विदेशी में एचएफ, जर्सी और शंकर मिश्रित नस्ल के सांड हैं। देसी नस्लों के वीर्य को अति हिमीकृत केंद्र पर उत्पादन किया जा रहा है। जिससे उनके द्वारा 92 प्रतिशत बछिया पैदा होंगी। जबकि विदेशी नस्लों के वीर्य का साधारण तरीके से उत्पादन किया जा रहा है।
देसी गायों की नस्ल
साहीवाल (पंजाब), हरियाणा (हरियाणा), गिर (गुजरात), लाल सिंधी (उत्तराखंड), मालवी (मालवा, मध्यप्रदेश), देवनी (मराठवाड़ा महाराष्ट्र), लाल कंधारी (बीड़, महाराष्ट्र) राठी (राजस्थान), नागौरी (राजस्थान), खिल्लारी (महाराष्ट्र), वेचुर (केरल), थारपरकर (राजस्थान), अंगोल (आन्ध्र प्रदेश), कांकरेज (गुजरात) जैसी देसी गायों के नस्ल संरक्षण पर अनुसंधान चल रहा है।