गांगेय क्षेत्र में भी लगातार गिर रहा भूजल स्तर, सिचाई का संकट
अप्रैल के दूसरे सप्ताह में आसमान से आग बरसने लगी है। दिन का अधिकतम तापमान 39 डिग्री को पार कर गया है। जून के महीने में गर्मी भंयकर होगी। इससे धरती की कोख सूख रही है। हालात यह है कि इन दिनों में प्यास बुझाने के लिए भूजल की मदद की आस भी
श्वेतांक, हापुड़ : जनपद में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है। क्षेत्र को खुशहाली और संपन्नता देने वाली गंगा की गोद भी आज सूख गई है। आलम यह है कि जनपद के तीन विकास खंड अब डार्क जोन घोषित हो चुके हैं। ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले दिनों में पानी का संकट और भी गहरा जाएगा। गर्मी की शुरुआत होते ही फसलों की सिचाई के लिए लगाए गए नलकूप हांफने लगे हैं। पर्यारवरणविद् इस हालात को लेकर चिंतित हैं और इस समस्या का जनक किसानों को ही मान रहे हैं।
अप्रैल के दूसरे सप्ताह में दिन का अधिकतम तापमान 39 डिग्री को पार कर गया है। जून में गर्मी भंयकर होने की संभावना जताई जा रही है। जानकारों का मानना है कि पानी के अत्यधिक दोहन के कारण धरती की कोख सूख रही है और ऐसे हालात बन रहे हैं। इस कारण से ही तापमान में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बता दें कि बीते एक दशक में भूजल की उपलब्धता 12 मीटर से खिसककर 40 मीटर तक नीचे पहुंच गई है, जबकि सिचाई के लिए लगाए गए नलकूपों के आंकड़े और भी भयावह हैं। श्यामपुर निवासी किसान नरेंद्र सहवाग ने बताया कि उनके गांव के बराबर से काली नदी निकलती है। इसके बावजूद सिचाई करने के लिए लगाए जाने वाले नलकूपों के लिए लगभग 80 फीट की गहराई तक बोरिग कराना पड़ता है। -तेजी से बढ़ रहा पानी का दोहन
सिखे़का के किसान लल्लू सिंह त्यागी बताते हैं कि गंगा नदी के इतने निकट होने के बावजूद उनके गांव में पानी की किल्लत है। गर्मी अधिक पड़ेगी तो भूजल स्तर और कम होगा और नलकूप पानी देना बंद कर देंगे। पर्यारवरणविद् अब्बास अली कहते हैं कि किसान इस समस्या के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं। इस समय गांवों में पानी का दोहन सबसे अधिक मात्रा में हो रहा है। किसान घरों में पानी की दैनिक आवश्यकता के लिए भी सबमर्सिबल पंप का प्रयोग कर रहे हैं। इससे पानी की बर्बादी हो रही है। गंगा के खादर में जल दोहन से दोहरी मार
जनपद से दो नदी और दो बड़ी नहर गुजरती हैं। इसके बावजूद इस क्षेत्र में जल का संकट यहां की बड़ी समस्या बन गया है। गंगा नदी के खादर में किसान खेती के लिए इंजन लगाकर जल का दोहन कर रहे हैं। इससे भूजल स्तर में गिरावट के साथ कार्बन उत्सर्जन भी हो रहा है, जो फसलों के साथ मानव जीवन को भी हानि पहुंचा रहा है। इसी के साथ खेतों में रासायनिक खाद भी पानी के साथ धरती में जाकर भूजल प्रदूषित कर रहे हैं। -काली नदी और औद्योगिक इकाई बना अभिशाप
जनपद में भूजल स्तर गिर रहा है इसके पीछे मुख्य कारण काली नदी और यहां पर संचालित औद्योगिक इकाइयां हैं। इन औद्योगिक इकाइयों और काली नदी ने पानी में नाइट्रेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, सीसा, सिलेनियम और यूरेनियम जैसे हानिकारक तत्व घोल दिए। इससे पानी पीने लायक नहीं बचा। पेयजल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए मजबूर ग्रामीणों ने सबमर्सिबल पंपों को और नीचे उतार कर जल का दोहन शुरू किया।
-------------
-केवल कागजी कसरत रही आदर्श तालाब योजना :
प्रदेश सरकार ने आदर्श तालाब योजना के माध्यम जनपद के करीब 198 तालाबों के सुंदरीकरण कराने और उनमें पानी भरने के निर्देश दिए थे, लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस रहे। तालाब कागजों में हरे भरे हो गए, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है। हापुड़ जनपद में प्रशासन ने छोटे-बड़े करीब 938 तालाब चिह्नित किए थे। धरती की प्यास बुझाने के लिए इन तालाबों को पानी से भरना था। अधिकांश तालाब अब भी सूखे पड़े हैं ,जबकि बहुत से तालाब तो केवल कागज पर ही विकसित हो पाए हैं। क्या बोले पर्यावरणविद्
गांवों में भूजल दोहन पिछले दस वर्षों में कई गुना बढ़ा है। भूजल स्तर गिरने से रोकने के लिए किसानों को सिचाई करने के लिए ड्रिप सिस्टम लगाने होंगे। इससे पानी की बचत होगी। प्रशासन को भी गंभीरता से इस समस्या का निस्तारण करने के लिए कार्य करना चाहिए। सभी जलाशयों और तालाबों को पानी से लबालब करें। पानी का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाए, तभी इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है।
- कृष्णकांत हूण, पर्यावरणविद्