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आरटीआइ के तहत जानकारी न देना दंडनीय अपराध: आयुक्त

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी ना देना दंडनीय अपध हैं। भ्रामक और अपूर्ण सूचना देने वाले अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का एक्ट में प्रावधान हैं। यह जानकारी राज्य सूचना आयुक्त नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने शनिवार को जिला मुख्यालय सभागार में जनपद के जन सूचना अधिकारियों को प्रशिक्षण के दौरान दी। उन्होंने अधिकारियों को लंबित सूचनाओं को शीघ्र निस्तारण करने के भी आदेश दिए।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Jun 2019 08:08 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jun 2019 06:22 AM (IST)
आरटीआइ के तहत जानकारी न देना दंडनीय अपराध: आयुक्त
आरटीआइ के तहत जानकारी न देना दंडनीय अपराध: आयुक्त

जागरण संवाददाता, हापुड़ :

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सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी न देना दंडनीय अपराध है। भ्रामक और अपूर्ण सूचना देने वाले अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का एक्ट में प्रावधान हैं। यह जानकारी राज्य सूचना आयुक्त नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने शनिवार को जिला मुख्यालय सभागार में जनपद के जन सूचना अधिकारियों को प्रशिक्षण के दौरान दी। उन्होंने अधिकारियों को लंबित सूचनाओं को शीघ्र निस्तारण करने के भी आदेश दिए।

सूचना का अधिकार के तहत सूचनाओं को त्वरित गति देने के लिए शनिवार को जन सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपीलीय अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान राज्य सूचना आयुक्त नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि एक्ट के तहत सूचना देना जरूरी है। यदि कोई ऐसा नहीं करता है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। आयुक्त ने कहा कि अपूर्ण और भ्रामक जानकारी देना एक्ट की धारा 20 के तहत दंडनीय अपराध हैं। इसीलिए जन सूचना अधिकारी भ्रामक और अपूर्ण जानकारी देने से बचें। जानकारी ना देने का बहाना न ढूंढे। समयानुसार जानकारी देना जन सूचना अधिकारी का प्रमुख कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि राज्य सूचना आयोग का मुख्य उद्देश्य सूचना का अधिकार अधिनियम की विशेषताओं को बताना और अधिकारियों को कानून की परिधि में सूचना उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित करना है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2015 में सूचना का अधिकारी नियमावली लागू होने के पश्चात प्रार्थना पत्रों के निस्तारण में तेजी आई है। उन्होंने जन सूचना अधिकारियों को हिदायत दी कि वह अपने कार्यालय में प्रारूप 3 के तहत वर्णित आवेदन पत्र रजिस्टर जरूर बनाएं। आवेदन की प्राप्त रसीद, आवेदक को आवश्यक रूप से भेजें।

राज्य सूचना आयोग के रजिस्ट्रार जितेंद्र मिश्रा ने बताया कि सूचना अधिकार अधिनियम 12 अक्तूबर 2005 को लागू हुआ था। इस अधिनियम के अंतर्गत आवेदक द्वारा मांगी गई सूचनाओं को जानकारी जन सूचना अधिकारी द्वारा 30 दिन के भीतर आवेदक को प्रत्येक दशा दिया जाना है। उन्होंने कहा कि पांच सौ से अधिक शब्दों की मांगी गई सूचना अधिनियम के अंतर्गत अस्वीकार कर दी जाएगी। जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी कार्यालय में आवेदक द्वारा आवेदन प्रेषित कर मांगी गई सूचना जो विभाग से संबंधी नहीं है। वह सूचना संबंधी विभाग को पांच दिनों के अंदर वापस करके उसका विवरण निर्धारित प्रारूप पर रजिस्टर में अंकित किया जाएगा।

प्रशिक्षण शिविर में करीब 150 जन सूचना अधिकारियों ने हिस्सा लिया। जिसमें जनपद के सभी कार्यालयों के कार्यालय अध्यक्ष, विभागीय अपील अधिकारी, जन सूचना अधिकारी मौजूद रहे। प्रशिक्षण के उपरांत राज्य सूचना आयुक्त ने पत्रकारों को प्रशिक्षण संबंधी जानकारी दी। इस मौके पर राज्य सूचना आयोग के रजिस्ट्रार जितेंद्र कुमार मिश्रा, प्रशासनिक सुधार विभाग के मास्टर ट्रेनर डा. विपिन कुमार, अपर जिलाधिकारी जयनाथ यादव, उपजिलाधिकारी सदर सत्यप्रकाश सिंह, आदि अधिकारी मौजूद थे।

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एक्ट के तहत सूचना देना अनिवार्य

दैनिक जागरण द्वारा आयुक्त से जब पूछा कि सूचना का अधिकार अधिनियम भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बना था। लेकिन, कुछ लोग सूचना मांगने के बाद ब्लैकमेल करते है। अधिकारियों के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। इस पर आयुक्त ने कहा कि एक्ट के तहत आवेदक को जानकारी देना अनिवार्य है। आवेदक का क्या मकसद है यह जानकारी करना एक्ट में नहीं है। एक्ट का पालन करना जन सूचना अधिकारियों को कर्तव्य है।


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