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आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़े हापुड़ के कदम, गढ़ के चटाई की डिमांड देश के कई राज्यों में

चटाई बनाने वाले कारीगरों ने बताया कि इन दिनों विभिन्न राज्यो में नए आलू की खुदाई होने के साथ साथ केले और मटर की तुड़ाई चल रही हैं जिसके कारण चटाई की मांग भी बढ़ गई है ।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 14 Feb 2021 01:31 PM (IST)Updated: Sun, 14 Feb 2021 01:31 PM (IST)
आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़े हापुड़ के कदम, गढ़ के चटाई की डिमांड देश के कई राज्यों में
देश के कई राज्यों में बढ़ी हापुड़ के चटाई की डिमांड

गढ़मुक्तेश्वर (हापुड़) [प्रिंस शर्मा]। कोरोना संकट काल में आत्मनिर्भर भारत की ओर गढ़ क्षेत्र बढ़ रहा है। कोरोना के कारण बेरोजगार हुए हुनरमंदों ने रोजगार के साधन तलाश लिए हैं। पुश्तैनी कार्यों को दोबारा से शुरू कर दिया है। जिनमें मुख्य कार्य चटाई का है। सैकड़ों परिवार चटाई के कार्य से जुड़े जीविका चला रहे हैं। प्रतिदिन लाखों की कीमत की चटाई तैयार होकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहर के अलावा दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में सप्लाई हो रही हैं। सर्दी के मौसम में भी चटाई का कारोबार दिन प्रति दिन तेजी से पटरी पर लौट रहा है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान की बानगी गढ़ क्षेत्र में देखने को मिलती है। कामधंधे की तलाश में अपनों का साथ छाेड़कर बाहर राज्यों में नौकरी करने गए कामगार कोरोना संकट काल में घर लौट आए थे। धीरे-धीरे हालात सुधरें तो कामधंधे की दोबारा से चिंता सताने लगी। ऐसे में इन कामगारों ने अपने पुश्तैनी चटाई बनाने के कार्य को अपना लिया और अब इसी कार्य के चलते अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे है।

बता दें कि प्राचीन गंगा मंदिर के नीचे बसे सैकड़ों परिवार हस्तशिल्प कारीगरी से जुड़ी चटाई बनाने की अद्भुत कला को पुश्तैनी ढंग में सैकड़ों वर्षों से करते आ रहे हैं। मोहल्ला चटाई वाला में रहने वाले लोग भूमिहीन हैं, जो इधर- उधर नौकरी करने की बजाए चटाई बनाकर अपने परिवारों की जीविका चला रहे हैं। गढ़ क्षेत्र से निर्मित चटाई की सप्लाई पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली समेत प्रदेश स्तर पर है।

इन चटाई का उपयोग मुख्य रूप से आलू की खुदाई, आम और कटहल की फसल को पाले से बचाने, कोल्ड स्टोर, धार्मिक मेलों के दौरान जमीन पर बिछाने से लेकर अस्थाई शौचालय बनाने समेत विभिन्न कामों में किया जाता है। लगभग 12 घंटे में चार कारीगार एक दिन में दस से 15 चटाई तक तैयार कर लेते हैं।

रोजाना 300 से 400 रुपये तक कमा लेते हैं कारीगर

एक कारीगर प्रतिदिन 300 से 400 रुपये तक कमा लेता है। चटाई बनाने वाले ऋषिपाल सिंह, देवेंद्र कुमार, अशोक कुमार, अनिल कुमार, सुमित कुमार ने बताया कि इन दिनों विभिन्न राज्यो में नए आलू की खुदाई होने के साथ साथ केले और मटर की तुड़ाई चल रही हैं, जिसके कारण चटाई की मांग भी बढ़ गई है ।

पहले एक दिन में 10 से 12 चटाई बनाई जाती थी लेकिन अब इसकी संख्या बढ़कर 20 से 25 हो गई है। बड़े स्तर पर आर्डर मिले हुए हैं इसको पूरा किया जा रह है।

सरकारी स्तर से नहीं प्रोत्साहन

आत्मनिर्भर भारत की ओर गढ़ क्षेत्र के बढ़ते कदमों को सरकारी सहारे की जरूरत है। पुश्तैनी इस कार्य को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर सहयोग मिल जाएगा तो हुनरमंद अपने हुनर का और बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे और चटाई का कारोबार आत्मनिर्भर भारत की ओर मील का पत्थर साबित हो सकता है। 

कारीगर बताते हैं कि आज तक सरकार की किसी भी योजना के अंतर्गत उन्हें लाभ नहीं मिला है। सरकारी अमले को इस तरफ ध्यान देना चाहिए


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