Move to Jagran APP

गंगा से आता है नक्का कुआं में जल

गढ़ गंगा नगरी के नक्का कुआ मुक्तेश्वरा मंदिर की भी अनूठी मान्यता है। कार्तिक गंगा स्नान के लिए आने वाले अधिकांश श्रद्धालु मंदिर में एक दिन पहले से ही डेरा डाल लेते हैं। मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाया जाता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 09:50 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 09:50 PM (IST)
गंगा से आता है नक्का कुआं में जल
गंगा से आता है नक्का कुआं में जल

संवाद सहयोगी, गढ़मुक्तेश्वर

loksabha election banner

गंगा नगरी के नक्का कुआं मुक्तेश्वरा मंदिर की अनूठी मान्यता है। कार्तिक गंगा स्नान के लिए आने वाले अधिकांश श्रद्धालु मंदिर में मुख्य स्नान से एक दिन पहले ही डेरा डाल लेते हैं। मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाया जाता है।

तीर्थ गंगा नगरी गढ़मुक्तेश्वर में वैसे तो बहुत से धार्मिक स्थल और मंदिर हैं, विशेष मान्यताएं होने के कारण श्रद्धालु इन स्थानों के दर्शन करते हैं। गंगा मेला मार्ग पर स्थित नक्का कुआं मुक्तेश्वरा मंदिर है, जिसमें हर वर्ष कार्तिक गंगा मेले पर आने वाले अधिकांश श्रद्धालु रात को अवश्य पड़ाव डालकर मन्नत मांगते हैं।

मंदिर के पुजारी बाबा महेश गिरी ने बताया कि पूर्वज बताते हैं कि भगवान परशुराम ने कार्तिक गंगा स्नान के दौरान यहां पांच स्थानों पर शिव¨लग स्थापित किए थे। भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिव¨लग मुक्तेश्वरा महादेव नक्का कुआं के प्रांगण में तथा दूसरा नुहुश कूप के निकट जंगल में स्थित है, जो आज झारखंडेश्वर महादेव के नाम से दर्शनीय है। तीसरा शिव¨लग गांव कल्याणपुर के निकट स्थापित महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। चौथा शिव¨लग दत्तियाना में लाल मंदिर और पांचवां पुरा महादेव मेरठ में स्थापित है। राजा नुहुश जो किसी श्रापवश गिरगिट की योनि में आ गए थे, धर्मराज युधिष्ठर के कहने पर यहीं पर पाप मुक्त हुए थे। उन्होंने यहां यज्ञ कराया। यज्ञशाला के निकट मुक्तेश्वरा महादेव मंदिर के प्रांगण में एक बावड़ी बनवाई थी, जिसमें पतित पावनी गंगा का जल स्वत: ही आ जाता है। यही बावड़ी नुहुश कूप के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिसको गढ़ में नक्का कुआं कहते हैं। महाभारत काल से ही परंपरागत कार्तिक मास में लगने वाले इस विशाल मेले का प्रबंधन जिला परिषद करती है। दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु कलुश विनाशनी, पाप हारिणी, अमृतमयी गंगा में स्नान करके आपको पापों से मुक्त बनाते हैं। मेला आरंभ होने से पूर्व श्रद्धालुओं की भैंसा बुग्गी, ट्रैक्टर-ट्राली तथा अन्य वाहनों से पहुंचना शुरू हो जाते हैं, जो एक रात को अवश्य रूप से मुक्तेश्वरा मंदिर में रुक कर जाते हैं।

मुक्तेश्वरा महादेव मंदिर में स्थित नक्का कुआं की गहराई कितनी है इसका अनुमान इस आधुनिक दौर में भी नहीं लग पाया है। अनहोनी घटनाओं से बचाव के लिए कुएं में लोहे का जाल डाला हुआ था। धार्मिक आस्था के चलते श्रद्धालुओं द्वारा फूल सहित विभिन्न प्रकार की सामग्री चढ़ाई जाती है, जिससे कुएं का पानी प्रदूषित हो रहा है।

प्राचीन काल में खांड का सामान ले जा रहे एक व्यापारी ने अपनी गाड़ी को मंदिर के पास रोक लिया था। जहां पानी पीने के लिए बैल गाड़ी समेत बावड़ी में गिर गए थे। इनके शव एक सप्ताह बाद गाड़ी समेत गंगा में तैरते हुए बरामद हुए थे। तभी इस बात की जानकारी हुई कि इस बावड़ी में गंगा से ही जल आ रहा है। यहीं कारण है कि इस बावड़ी का जल स्तर भी गंगा के जलस्तर के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.