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उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देकर वर्ती श्रद्धालुओं ने खोला व्रत

जागरण संवाददाता हापुड़ छठ पूजा के चलते भक्तों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास रखने के बाद श्

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 07:21 PM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 07:21 PM (IST)
उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देकर वर्ती श्रद्धालुओं ने खोला व्रत
उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देकर वर्ती श्रद्धालुओं ने खोला व्रत

जागरण संवाददाता, हापुड़

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छठ पूजा के चलते भक्तों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास रखने के बाद शनिवार सुबह उगते सूरज को अ‌र्घ्य दिया। महिलाओं ने भगवान सूर्य देव की पूजा-अर्चना करने के बाद परिवार की उन्नति के लिए मन्नतें मांगी। कोरोना काल के चलते इस वर्ष श्रद्धालुओं ने घरों की छत पर ही बनाए गए अस्थायी कुंड में ही भरे पानी में खड़े होकर महिलाओं ने उगते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया।

छठ पूजा के अवसर पर शनिवार की सुबह श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देकर मनोकामनाएं मांगी। श्रद्धालुओं ने भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना करने के बाद व्रत खोला। चार दिन से जनपद में जगह-जगह छठ का महापर्व मनाया जा रहा था। जनपद के विभिन्न स्थानों पर शुक्रवार की शाम को श्रद्धालुओं ने डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया था। इसके बाद शनिवार की सुबह श्रद्धालुओं ने घरों की छत पर अस्थायी कुंड में भरे पानी में खड़े होकर भगवान सूर्यदेव को अ‌र्घ्य दिया। साथ ही छठ मैय्या से घर में सुख-शांति, स्मृद्धि, संतान सुख आदि की मनोकामना मांगी। इसके बाद एक-दूसरे को छठ पूजन की शुभकामनाएं देते हुए फल एवं प्रसाद का वितरण किया।

महिलाएं दो रात एवं एक दिन से निर्जला व्रत रखे हुई थीं। व्रतियों ने केले के पत्ते, शकरकंद, सिघाड़ा, सेब, अनार, मूली, लाल फूल, गन्ना समेत विभिन्न प्रकार के फल और हरी सब्जियों के साथ सूर्यदेव की वैदिक रीति रिवाज से पूजा अर्चना की। छठ पूजा का प्रारंभ 18 नवंबर को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हुआ था। 19 नवंबर को खरना था, उस दिन शाम को गुड़ वाला खीर खाकर लोगों ने निर्जला व्रत रखा था। 20 नवंबर को छठ वाले दिन शाम को डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया गया। फिर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्योदय के समय शनिवार सूर्य देव को अ‌र्घ्य दिया गया। व्रती लोगों ने संतान के दीर्घ और सुखी जीवन की कामना की। वहीं, जिनको संतान की चाह है, उन लोगों ने छठी मैया और सूर्य से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। ऐसा है छठी मैया का स्वरूप

पंडित जीनाथ पांडेय ने बताया कि ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा है। षष्ठी देवी बालकों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घ जीवन देती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा होती है। पुराणों में छठी मैया को मां कात्यायनी का स्वरूप माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान सूर्य की बहन छठी मैया हैं।

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छठ पूजा के यह हैं लाभ

जीनाथ पांडेय ने बताया कि छठी मैया की पूजा करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नियम पूर्वक व्रत करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है। उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि छठी मैया और सूर्य देव की पूजा से सैकड़ों यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूजा और व्रत से निसंतान लोगों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतानों की सर्व मंगलकामना के लिए भी छठ पूजा और व्रत को किया जाता है।


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