दो जून की रोटी के लिए धूप में तपते मजदूर
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संवाद सहयोगी, राठ : मजदूरी मिलती है तो घर का चूल्हा जलता है, मजदूरी न मिली तो मायूस घर लौट आते हैं और जो बीते दिन की रूखी-सूखी रहती है, उसी से काम चला लेते हैं। रानी गेट पड़ाव पर लगने वाली मजदूरों की मंडी में कोई नेता और ना ही समाजसेवी मजदूरों को दिलासा देने नहीं आते।
उम्मीद का दीया लेकर काम पर निकले कई मजदूरों को मजदूरी न मिली तो बैरंग लौटना पड़ता है। पढ़ा-लिखा बसंत काम ना मिलने पर मजदूरी कर अपना परिवार पालता है। कुसुम भी मजदूरी के लिए सुबह से रानी गेट पड़ाव पर बैठ जाती है। न जाने कितने ऐसे मजदूर हैं जो परिवार के भरण पोषण के खातिर सुबह 8 बजे घर से इस आस में निकलते हैं कि शाम तक ढाई तीन सौ रुपये शाम आ जाएंगे। मजदूरी की मिलने की उम्मीद उस समय धूमिल हो जाती है जब सैकड़ों की संख्या में आने वाले मजदूरों को काम नहीं मिलता। गरीब लोग मजदूरी की आस में रानी गेट पर आते हैं। उमरिया गांव के बसंत कुशवाहा ने बताया कि वह राजमिस्त्री है, क्योंकि बीए पास करने के बाद पढ़ाई का कोई लाभ नहीं मिला। ना ही नौकरी मिल सकी। दर-दर भटकने के बाद यह काम मजबूरी में करना पड़ रहा है। अनारकली बताती है कि परिवार का भरण-पोषण मुश्किल से हो रहा है। कोरोना काल में मजदूरों के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। मजदूरों के लिए आज तक किसी न नही सोचा। बैठने के स्थान की व्यवस्था नहीं है। काम न मिलने पर मजदूरों ने विधायक और अधिकारियों को कई बार काम न मिलने की शिकायत की परन्तु किसी न मजदूरों के हित की बात नहीं की। स्यावरी गांव से ज्ञान देवी पैदल आती हैं। नौहाई गांव के देवेंद्र मजदूरी करने किराया लगाकर आते हैं। श्याम सिंह टिकरिया गांव, मदन साहू गल्हिया, भगवान दास धनौरी जैसे तमाम मजदूर अपने अपने गांव से साइकिल से आते हैं। मजदूरी ही इनका काम है, काम मिलता है तो घर का चूल्हा जलता है।