नाकाफी साबित हो रहे सुधार के उपाय, जल संकट बरकरार
जागरण संवाददाता, हमीरपुर : जल संकट से उबरने को जहां जागरूकता गोष्ठियों के साथ करोड़ो
जागरण संवाददाता, हमीरपुर : जल संकट से उबरने को जहां जागरूकता गोष्ठियों के साथ करोड़ों रुपये खर्च किए गए। लेकिन स्थित में सुधार तनिक मात्र भी नहीं दिखाई दिया। बल्कि दिन प्रतिदिन स्थिति बिगड़ती ही चली गई। इसका प्रमुख कारण समस्या के प्रति लोगों का उदासीन होना व जिम्मेदारों द्वारा दी गई जिम्मेदारी का ठीक ढंग से निर्वहन न करना है। पुराने जल स्त्रोतों को बचाए रखने में लोगों द्वारा कम रुचि रखना भी इस संकट का एक कारण है। इसका उदाहरण जिले के निष्प्रयोज्य पड़े 3058 कुएं हैं। जो कभी पेयजल का प्रमुख साधन थे।
पुराने समय में आबादी के हिसाब से कम संसाधन होने के बाद भी पेयजल का इतना संकट नहीं था जितना मौजूदा में दिखाई पड़ रहा है। तब लोग कुओं से पीने का पानी लेते थे। धीरे धीरे सुविधाएं बढ़ी तो पुराने संसाधनों की ओर से लोगों ने मुंह मोड़ लिया। वह पाइप पेयजल योजना व हैंडपंपों के भरोसे हो गया। जबकि बरसात के पानी को संचित कर साल भर लोगों की प्यास बुझाने वाले कुएं अपने अस्तित्व को लेकर जूझने लगे। आज स्थिति यह है कि ज्यादातर कुएं या तो बराबर कर दिए गए या फिर साफ सफाई के अभाव में उनमें कीचड़ के सिवाय पानी ही नहीं है। मौजूदा में जिले में कुल 4021 कुएं हैं जिनमें मात्र 963 कुएं ही प्रयोग की स्थिति में है। जबकि 3058 कुएं निष्प्रयोज्य पड़े हैं। जो जर्जर हो धंसकने के कगार पर है। यही हाल तालाबों का है। जो मौजूदा में अतिक्रमण की चपेट में है। प्रशासन द्वारा इन्हें अतिक्रमण मुक्त कराने का ढिंढोरा पीट दिया जाता है बाद में स्थिति जस की तस बनी रहती है। ऐसा ही हाल मुख्यालय स्थित जेल तालाब का है जो मौजूदा में सिकुड़कर एक छोटे से गड्ढे में तब्दील हो गया है। जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 1424 तालाब है। जिनमें विभाग द्वारा 412 तालाब खाली पड़े होने का दावा किया जा रहा है। गर्मी का मौसम आने पर शासन प्रशासन को पुराने संसाधनों की याद आती है और उन पर योजनाएं बनाई जाती है। साथ ही जागरूकता गोष्ठियों का आयोजन कर इतिश्री कर ली जाती है। मौसम निकलते ही इन्हें फिर भुला दिया जाता है। इसी कारण लगातार भूगर्भ जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। जिसे ठीक करने के लिए शासन स्तर से करोड़ों रुपये का बजट जारी होने के बाद भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।