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मनरेगा से बहेगी मनोरमा की अविरल धारा, यह है इसका महात्म्य

त्रेताकाल की पौराणिक नदी मनोरमा की अब सफाई होगी। यह 115 किलोमीटर की लंबाई में है। इसकी सफाई के लिए 100 दिन की कार्ययोजना बनाई गई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 06:02 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 06:02 AM (IST)
मनरेगा से बहेगी मनोरमा की अविरल धारा, यह है इसका महात्म्य
मनरेगा से बहेगी मनोरमा की अविरल धारा, यह है इसका महात्म्य

गोरखपुर, जेएनएन। प्रदेश के नौ नदियों के जीर्णोद्धार में त्रेताकाल की पौराणिक नदी मनोरमा भी शामिल है। प्रशासन ने इस नदी के अविरल प्रवाह के लिए वृहद कार्ययोजना तैयार कर ली है। बस्ती जनपद में 115 किमी लंबाई में फैली मनोरमा को मनरेगा अब पावन बनाएगी। इसके लिए 32 करोड़ रुपये शासकीय मद से खर्च होंगे। इसमें मनोरमा की सिल्ट सफाई और नदी के एक किलोमीटर के दायरे में स्थित तालाब और पोखरों का भी पुनरोद्धार किया जाएगा। ताकि नदी के जलस्तर में गिरावट न आए। अब यदि मनवर का कल-कल करता हुआ स्वच्छ स्वरूप तैयार हुआ तो मुनि वशिष्ठ की धरा की इस धरोहर को बचाने में कामयाबी मिलेगी। इसके मुख्य किरदार बनेंगे जिलाधिकारी डा. राजशेखर और उनकी प्रशासनिक टीम। डीएम डा. राजशेखर प्रशासनिक टीम के साथ-साथ, तहसील, ब्लाक, स्कूल, ग्राम प्रधान, ग्राम सचिव, लेखपाल, आंगनबाड़ी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं मनोरमा तट के ग्रामीणों तक का समन्वय बना डाला है।

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एक सौ दिन का चलेगा अभियान

नदी को पुराना स्वरूप लौटाने के लिए अभियान छिड़ने जा रहा है। है तो सबकुछ सरकारी लेकिन डीएम ने इसे जनसरोकार से सीधे जोड़ दिया है। शासन का धन तो व्यय होगा ही, मनवर की आबोहवा में रहने वाले लोग इसके शुद्धीकरण में आगे आएंगे। यह 100 दिन का अभियान होगा। जिलाधिकारी के संयोजन में पहले दिन मनोरमा तट पर 115 किलोमीटर लंबाई में मानव श्रृंखला बनेगी। बच्चे, जवान, बुजुर्ग, अधिकारी, कर्मचारी, मजदूर सभी नदी की सफाई से जुड़ेंगे। नदी साफ होगी तो तटीय गांवों के श्रमिकों को 100 दिन का रोजगार भी मिलेगा। यह सारी तैयारी लगभग पूरी है। इसी माह जिलाधिकारी की यह अभिनव पहल धरातल पर उतरेगी। सबकुछ ठीक रहा तो वह दिन दूर नहीं जब नदी की निर्मल जल जन-जन को अभि¨सचित करेगा।

प्रशासन ने आयोजित कराई वृहद कार्यशाला

मनोरमा के पुनरोद्धार के लिए बस्ती जिला प्रशासन की ओर से शहर के होटल में वृहद कार्यशाला आयोजित की गई। मनोरमा तट के किनारे बसे बस्ती सदर एवं हर्रैया तहसील के 91 ग्राम पंचायतों के प्रधान, जागरूक नागरिक, शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, लेखपाल, सचिव, सफाई कर्मी, बीडीओ से लेकर तहसील एवं जिला स्तरीय अधिकारी हिस्सा लिए। कार्यशाला में नदी काया को पवित्र करने के लिए संकल्प लिया गया।

नदी की दशा के लिए हम भी कम जिम्मेदार नहीं

जिलाधिकारी ने कहा कि यदि मनवर के अस्तित्व पर संकट है तो इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। नदी के उद्धार का कार्य सिर्फ सरकारी नहीं है। यह एक जन अभियान है। इसमें सभी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। प्रत्येक नागरिक नदी की सफाई का नेतृत्व खुद करें। प्रशासन ने तीन ¨बदुओं पर कार्ययोजना तैयार की है। पहला सरकारी योजना, दूसरा ¨सचाई विभाग का सहयोग और तीसरा जन सहभागिता। जिस दिन नदी को हम स्वच्छ कर ले गए उसी दिन हम सभी का लक्ष्य पूरा होगा। शीघ्र ही अभियान की तिथि घोषित की जाएगी। ग्राम प्रधानों एवं महिला सहकर्मियों ने भी नदी की सफाई में हर स्तर से जुटने का भरोसा दिलाया।

संचालक प्रधानाचार्य योगेश शुक्ल ने लोगों को मनोरमा के संरक्षण का संकल्प दिलाया। सीडीओ अर¨वद कुमार पांडेय, परियोजना निदेशक आरपी ¨सह, एसडीएम सदर श्रीप्रकाश शुक्ल, एसडीएम हर्रैया एसपी शुक्ल, बीडीओ हर्रैया जितेंद्र ¨सह, डीआइओएस बृजभूषण मौर्य, उपायुक्त श्रम एवं रोजगार इंद्रपाल ¨सह, बृजेंद्र मिश्र, राजेश श्रीवास्तव, प्रधान राम केवल निषाद, संगीता वर्मा, उमेश ¨सह मौजूद रहे।

यह है मनोरमा नदी का इतिहास

¨कवदंतियों के अनुसार त्रेताकाल में बस्ती के मख धाम मखौड़ा में अयोध्या नरेश राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ कराने से पहले गोंडा जनपद के तिर्रेताल में उद्यालक ऋषि के आश्रम पहुंचे थे। उन्होंने ऋषि से मखौड़ा में सदानीर पहुंचाने का अनुरोध किया। ऋषि उद्यालक ने अपनी कनिष्ठका अंगुली से एक रेखा खींची और धारा प्रवाहित होने लगी। राजा दशरथ इसे लेकर मख धाम पहुंचे। इसी से नदी का नाम मनोरमा पड़ा। यह नदी बस्ती जनपद के हर्रैया तहसील से होते हुए सदर तहसील के लालगंज में आकर कुआनो में मिल गई। इस संगम तट को मोक्षेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। इसी नदी के तट पर कप्तानगंज क्षेत्र में पंडूल घाट भी है। मान्यता है यहां अज्ञातवास के दौरान पांडव प्रवास किए थे। तभी इसका नाम पंडूल घाट पड़ा।


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