Move to Jagran APP

दो मासूम बेटियों की देखरेख मां को सौंप दायित्वों का निर्वहन कर रहीं डीएम

जिलाधिकारी दिव्या मित्तल की दो बेटियां पांच वर्षीय अद्विका व ढाई वर्षीय अव्याना हैं। मां को पहली चिता अपने बच्चों की ही होती है उन्हें भी है। जिले के सबसे बड़े अधिकारी के पद पर तैनाती होने से कर्तव्य पालन भी अहम कार्य है। महामारी के दौर में सामंजस्य बैठाने के लिए उन्होंने अपनी मां और बहन को बुला लिया है। ये उनकी बेटियों की देखरेख कर रही हैं। वह सुबह से देर रात तक आक्सीजन की उपलब्धता साप्ताहिक बंदी का पालन करवाने अस्पतालों में जरूरी सामग्री और दवाओं की उपलब्धता आदि सुनिश्चित कराने के लिए सक्रिय रहती हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 May 2021 10:34 PM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 10:39 PM (IST)
दो मासूम बेटियों की देखरेख मां को सौंप दायित्वों का निर्वहन  कर रहीं डीएम
दो मासूम बेटियों की देखरेख मां को सौंप दायित्वों का निर्वहन कर रहीं डीएम

संतकबीर नगर: कोई चलता पद चिह्नों पर कोई पद चिह्न बनाता है। जिलाधिकारी दिव्या मित्तल इसी कड़ी का हिस्सा बनकर कार्य कर रही हैं। अपनी दो मासूम बेटियों की देखरेख अपनी मां को सौंपकर वह खुद कोरोना से लोगों की जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। खुद की परवाह किए बिना ही वह हर दिन कोरोना अस्पताल में पहुंचकर मरीजों का हालचाल भी पूछती हैं।

loksabha election banner

जिलाधिकारी दिव्या मित्तल की दो बेटियां पांच वर्षीय अद्विका व ढाई वर्षीय अव्याना हैं। मां को पहली चिता अपने बच्चों की ही होती है, उन्हें भी है। जिले के सबसे बड़े अधिकारी के पद पर तैनाती होने से कर्तव्य पालन भी अहम कार्य है। महामारी के दौर में सामंजस्य बैठाने के लिए उन्होंने अपनी मां और बहन को बुला लिया है। ये उनकी बेटियों की देखरेख कर रही हैं। वह सुबह से देर रात तक आक्सीजन की उपलब्धता, साप्ताहिक बंदी का पालन करवाने, अस्पतालों में जरूरी सामग्री और दवाओं की उपलब्धता आदि सुनिश्चित कराने के लिए सक्रिय रहती हैं। नाश्ता घर में, भोजन कार्यालय में

जिलाधिकारी दिव्या मित्तल बताती हैं कि सुबह बच्चों के साथ नाश्ते के बाद वह क्षेत्र में निकलती हैं। दोपहर में यदि समय से कार्यालय पहुंचीं तो भोजन वहीं होता है, देर हुआ तो फिर ऐसे ही दिन कटता है। रात का भोजन घर में करती हैं। बचाव का रखती हैं पूरा ध्यान

जिलाधिकारी ने बताया कि रात को घर वापस आने पर स्नान करने व सैनिटाइजर लगाने के बाद ही बच्चों के पास जाती हैं। वह प्रयास करती हैं कि बच्चे उनके पास कम समय ही रहें। उन्हें अपनी चिंता नहीं, बच्चों की फिक्र अधिक रहती है। पूरा जिला उनके भरोसे है, इसलिए पहली जिम्मेदारी आमजन की है। बच्चों से दूरी पर कचोटता है दिल दिव्या मित्तल कहती हैं कि अपने बच्चों से दूर रहने से दिल तो कचोटता ही है। जब ध्यान कोरोना के शिकार बने परिवार के बच्चों पर आता है तो उनका दर्द बहुत कम महसूस होता है। उनके प्रयासों से किसी की जान बच जाय, यही उनके जीवन का लक्ष्य है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.