साप्ताहिक कालम चाैपाल, नीबू-मिर्ची से भी नहीं बचा कच्ची का किला Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार पुलिस विभाग और उसकी कार्य प्रणाली पर फोकस किया गया है। पुलिस और अपराधियों पर आधारित यह कालम पठनीय है। कृपया आप भी पढ़ें गोरखपुर से जीतेंद्र पांडेय का साप्ताहिक कालम चौपाल---
गोरखपुर, जितेंद्र पाण्डेय। करैली चाची के दारू के धंधे को आज तक किसी की नजर नहीं लगी थी। गांव-गांव में चर्चा थी लाकडाउन के दौरान भी चाची के दरवाजे से कोई खाली नहीं लौटा। उसकी वजह है कि चाची घर के बरामदे में ही एक नीबू और चार मिर्ची लटकाकती है, लेकिन इस बार नीबू-मिर्ची भी उनके क'ची के कारोबार को नहीं बचा पाई। पुलिस चुनाव की तैयारियों में व्यस्त थी। इसी दौरान प्रयागराज में शराब के चलते कई जानें चली गईं। सभी को चेतावनी दी गई कि इस बार क'ची शराब को लेकर कोई लापरवाही नहीं चाहिए। बड़े साहब ने तो सीधे सीधे सीओ को इसके जिम्मेदार ठहरा दिया कि वह लिखकर देंगे कि उनके इलाके में नहीं बिकती क'ची। फिर ढूंढ-ढूंढ कर क'ची का कारोबार खत्म किया गया। दबिश देने गए सिपाही ने चाची की भ_ी तो तोड़ी ही। दरवाजे पर टंगी नीबू-मिर्ची भी तोड़कर लेते गए।
दौर नया, हिट होने का फार्मूला पुराना
1990-2000 तक साहब का दौर रहा है कि साइकिल से थाने पहुंचने का। पैदल पुलिस चौकी पहुंचने का। साहब दो दिन में ही लोगों के दिल दिमाग में छा जाते थे। पिछले कुछ दिनों से यह दौर फिर लौटा है। पिछले कप्तान आए और साइकिल से जिले में घूमे। फिर किसी ने उनके साइकिल की हवा निकाल दी और वह होम जिम से होते हुए ट्रैक पर लौटे। बाद में जोन वाले साहब आये तो जगह-जगह पैदल घूमने लगे। फिर जनपद वाले साहब बाइक से घूमने लगे। अपने चंदू चाचा तो इसी में परेशान हैं कि साहब यहां क्राइम कंट्रोल करने के लिए आते हैं कि साइकिल, बाइक की सैर करने। अब तो दुनिया भर के ऐप आ गए हैं कि चौराहे पर खड़े कांस्टेबल की मुस्तैदी जानने के लिए, लेकिन अपने साहब अभी 80 के दशक में ही हैं। दौर नया, लेकिन हिट होने का फार्मूला पुराना।
भरोसे में ग'चा खा गया थाना
उत्तरी हिस्से के थाने में पुलिस कर्मी पिछले पांच माह से मधुमक्खी के छत्ते की रखवाली कर रहे थे। एक दिन उन्हें शहद निकालने वाला दिखा। भाव-ताव करने पर वह एक चौथाई हिस्से पर शहद निकालने को तैयार हो गया। छत्ते से कुल एक किलो शहद निकला। इसे 22 पुलिस कर्मियों के बीच कैसे वितरित किया जाये, यह कठिन सवाल था। इसी दौरान दारोगा जी की निगाह शहद वाले की बाल्टी की तरफ गई। वह बोले इसमें भी शहद है। बोला कि अभी बगल वाले गांव से वह 250 रुपये किलो के भाव से खरीदा हूं। उसने बताया कि शहद निकाली भी उसी ने हैं। थोड़ी सी शहद चखा भी दी। एक दूसरे के काम आने के मंत्र के चलते दो सौ रुपये किलो के भाव से आठ किलो शहद की खरीददारी हो गई। पुलिस कर्मी शहद खा रहे हैं या चीनी, यह पता नहीं चल पा रहा है।
गब्बर से महंगे हो गए बदमाश, फिर भी पकड़ से बाहर
चंदू चाचा माह भर से परेशान है। अब बच्चे भी उनसे शोले का डायलाग नहीं सुनते। अभी माह भर पूर्व तक वह ब'चों को- अरे ओ सांभा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर, सुनाकर मनोरंजन करते थे। लेकिन अब ब'चों को भी उनकी बातों में कोई रुचि नहीं रह गई है। वह कहते हैं कि यहां बदमाश, गब्बर से भी महंगे हैं और चाचा को अभी गब्बर की ही पड़ी है। राघवेंद्र पर तीन साल पहले से ही एक लाख रुपये का इनाम है। सन्नी व युवराज पर एक-एक लाख रुपये का इनाम है। जल्द ही पंजाब के सतनाम व राजवीर भी लखपति हो जाएंगे। ब'चों का कहना है जब एक लाख वाले बदमाशों को ही कोई नहीं पूछ रहा है तो इसमें भला गब्बर को कौन पूछेगा। चाचा असमंजस में हैं कि मुख्य विलेन किसे बनाएं। राघवेंद्र तीन वर्ष से वांटेड है तो सन्नी तीन माह से।