मुसाफिर हूं यारों : प्लेटफार्म पर जाना है, 11 सौ लगेंगे Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कालम-मुसाफिर हूं यारों...
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। कायदे-कानून को मानना हमारी फितरत में ही नहीं। नियमों की धज्जियां उड़ाना शान-ओ-शौकत में आता है। अगर कहीं मान भी गए, तो अपनी तौहीन लगती है। आज संकट की घड़ी में कोरोना वायरस तेजी के साथ घरों में घुस रहा है। इसके बाद भी लोग फेस मास्क नहीं लगा रहे। जहां रोक रहेगी, वहां जरूर जाएंगे। डंडा ठंडा पडऩे लगा तो पुलिस ने जुर्माना काटना शुरू कर दिया। पिछले सप्ताह गोरखधाम के एक यात्री को छोडऩे के लिए घर के दो लोग स्टेशन पहुंच गए। मना करने के बावजूद वे प्लेटफार्म पर जाने की कोशिश करने लगे। तब सुरक्षा कर्मी ने कहा, वहां जाने के लिए 11 सौ रुपये देने पड़ेंगे। इतना सुनते ही सारा प्रेम किनारे हो गया। दोनों ने यात्री को बैग पकड़ाया और वहीं से वापस हो लिए। युक्ति काम आई। सवाल यह है कि कब तक जुर्माने से लोगों को डराते रहेंगे। आखिर, लोग कब संभलेंगे।
बेरोजगारों के भाग्य से टूटा छींका
लोग कहते हैं, इस कलियुग में खोजने पर भगवान मिल जाएंगे, लेकिन सरकारी नौकरी नहीं। बात में दम भी है। महंगी डिग्री लेने के बाद महज तीन माह की नौकरी के लिए पूर्वांचल के लगभग 100 प्रशिक्षित बेरोजगार ऊपर वाले से रेलवे अस्पताल में मरीजों के बढऩे की दुआ कर रहे हैं। कोरोना के मरीज बढ़ें, तो उन्हें भी सेवा का अवसर मिले। लेकिन, बिना मांगे रेलवे की नौकरी मिल जाए, तो क्या कहने। रेलवे की एक गलती से करीब 428 नौजवानों की ङ्क्षजदगी संवर गई है। लोको पायलट के 428 पद पर वाराणसी मंडल ने 856 अभ्यर्थियों की सूची जारी कर दी। मंडल की यह गलती रेलवे को उगलते बन रही न निगलते। खैर, रेलवे ने नियुक्ति की तैयारी शुरू कर दी है। बेरोजगारों के लिए तो यह बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने के समान है। बेरोजगार अब कहने लगे हैं कि रेलवे बार-बार ऐसी गलती करता रहे।
हम घर के फेंके हुए हैं क्या
दफ्तरों में काम-काज को लेकर कर्मचारियों के बीच रस्साकशी जगजाहिर है। सामने वाला कितनी बार टेबल से उठा। बगल वाले ने फाइल निकाली की नहीं। शाम को बॉस को रिपोर्ट भी देनी होती है। इधर, अ²श्य शत्रु ने इस खींचतान को और बढ़ा दिया है। अगर, किसी कर्मी की ड्यूटी फ्रंट पर लग गई, तो बगल वाले टेबल या दफ्तर के कर्मी की खैर नहीं। आजकल रेलवे स्टेशन पर तैनात रेलकर्मी अपनी कम बल्कि सहयोगियों को लेकर ज्यादा फिक्रमंद हैं। बातचीत में एक कर्मी के दिल की पीड़ा सामने आ ही गई। बोल पड़े, हम लोग घर के फेंके हुए हैं क्या? हमारे भी बाल-ब'चे हैं। हम ही क्यों कोरोना से मरें। अधिकारियों ने गोरखपुर में आरक्षण टिकट काउंटर खोल दिया है, लेकिन यहीं का दूसरा और अगल-बगल के स्टेशनों के काउंटर व दफ्तर उन्हें नहीं दिख रहे। वहां के कर्मचारी सिर्फ हाजिरी लगाते हैं और पूरा वेतन उठाते हैं।
धोबी पछाड़ से भी बड़ा ऑनलाइन दांव
रेलवे अपने कर्मचारियों को ई-ऑफिस के माध्यम से ऑनलाइन कार्य में दक्ष बना रहा है। दफ्तरों में जोरों पर काम चल रहा है। हालचाल पूछने पर कर्मचारियों के मुंह से सिर्फ ई-आफिस ही निकल रहा। हालांकि, इसको लेकर युवा कर्मी बेहद खुश हैं। लेकिन 50 पार कर चुके कर्मियों और खिलाडिय़ों के लिए यह व्यवस्था सिरदर्द बन गई है। ट्रेङ्क्षनग लेकर दफ्तर पहुंचे एक कर्मी के मन की टीस बाहर निकल ही गई। बोले, अब यह उम्र है कंप्यूटर सीखने की। दाल-भात का कौर थोड़े न है, मुंह खोला और गपक लिया। अरे भाई, सीखने के लिए थोड़ा वक्त दो। बातचीत के क्रम में एक सीनियर खिलाड़ी हाथ में फाइल लिए पहुंच गए। उनसे भी नहीं रहा गया। बोले, देखो साहब कुश्ती लड़ा लो, पदक ले लो, लेकिन ई-ऑफिस-अॅफिस मत खेलो। दांव-पेच सीखने में तो वर्षों लग जाते हैं। यह ऑनलाइन वाला दांव तो धोबी पछाड़ से भी बड़ा है।