मुसाफिर हूं यारों : खिलाड़ी सतर्क, हारेगा प्रतिद्वंद्वी कोरोना Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कॉलम-मुसाफिर हूं यारों...
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। दरख्तों पर चिडिय़ों की चहचहाहट सुन मन भी चहकने लगा। सूखी पत्तियों को उड़ाते मोटरसाइकिल के पहिए सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम गेट पर अनायास ठहर गए। गेट पर ताला देख दिल बैठ गया। जहां दिनभर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी पसीना बहाते थे, वहां सन्नाटा था। निगाहें स्पोट्र्स अफसर और अंतरराष्ट्रीय कुश्ती कोच चंद्र विजय सिंह को तलाशने लगीं, लेकिन चेतना हावी हो गई। याद आया, वह तो घर पर रहते हुए युवाओं को फिट रहने के आनलाइन टिप्स दे रहे हैं। यूपी जूनियर क्रिकेट टीम के कोच रंजीत यादव रेल कारखाने में सुरक्षा उपकरण तैयार करने में जुटे हैं। स्टेडियम के समस्त कोच और खिलाड़ी प्रतिद्वंद्वियों से नहीं बल्कि कोविड-19 से दो-दो हाथ करने में जुटे हैं। दिमाग में उधेड़बुन चल ही रही थी कि कोमल पत्तियों के बीच से कोयल की मधुर आवाज कानों तक पहुंची। नई ऊर्जा और उम्मीद के साथ गाड़ी के पहिए बढ़ चले।
ई-ऑफिस की तैयारी और फाइलों का पहाड़
लॉकडाउन में रेलकर्मी घर बैठे मालगाडिय़ां संचालित कर रहे हैं। देश में एक से दूसरे छोर तक समय से आवश्यक सामग्री पहुंच रही है। पिछले माह पूर्वोत्तर रेलवे के लगभग 50 हजार खातों में वेतन भेज दिया। पेंशन भी बना डाला। मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर पर किसी तरह काम चलता रहा, लेकिन जैसे ही दफ्तर खुला फाइलों का पहाड़ सामने खड़ा हो गया। 20 अप्रैल से रेलकर्मी दफ्तर तो पहुंच रहे हैं, लेकिन 400 से 500 पन्ने वाली फाइलें देख उनके माथे पर बल पड़ जा रहे हैं। बातचीत में एक रेलकर्मी की पीड़ा बाहर आई। मास्क हटाते हुए बोले, आसमान से कोरोना रूपी महामारी बरस रही है, नीचे एक नई मुसीबत खड़ी हो गई है। फाइलों के एक-एक पन्ने को स्कैन कर ई-ऑफिस पोर्टल में अटैच करना है। बोर्ड ने लॉकडाउन के दौरान ई-ऑफिस तैयार कर लेने का फरमान जारी कर दिया है। अधिकारी भी डंडा चलाने लगे हैं।
पार्सल ट्रेनों में सलून वाली यात्रा
सरकार की पहल पर 20 अप्रैल से सरकारी दफ्तर खुलने लगे हैं। नियमानुसार 33 फीसद कर्मचारी कार्यालय पहुंच रहे हैं। कम संख्या के बाद भी कर्मचारी दिख रहे हैं, लेकिन साहब लोग नजर नहीं आ रहे। मजे की बात यह है कि कर्मचारी भी अपने साहब को नहीं देख पा रहे। यह सही भी है, कोरोना वायरस तो किसी को पहचानता नहीं। यांत्रिक कारखाने के एक जिम्मेदार अधिकारी आजकल खूब चर्चा में हैं। लॉकडाउन शुरू होते ही वह अपने घर चले गए। मातहतों ने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार कार्य पूरा कर लिया, लेकिन साहब को शाबाशी देना भी नसीब नहीं हुआ। खैर कुछ उत्साही अधिकारियों ने यह धर्म निभा लिया। वहीं कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं, जो आमदिनों में सलून में चलते थे, लेकिन अब पार्सल स्पेशल ट्रेनों में भी यात्रा कर ले रहे हैं। एक रेलकर्मी बताने लगे, हमारे साहब तो पार्सल ट्रेन से ही लखनऊ निकल जाते हैं।
एक तरफ बंदी, दूसरे रेलवे की पाबंदी
इसे कोरोना का डर कहें या रेलवे की छूट, लॉकडाउन से पहले के आर्डर का माल पार्सल ट्रेनों से काफी पहले स्टेशन पहुंच गया, लेकिन आज तक व्यापारी उसे देखने नहीं गए। इतना ही नहीं पार्सल ट्रेनों से माल मंगाने का क्रम जारी है। कोई मास्क मंगा रहा तो कोई सैनिटाइजर। कुछ व्यापारी कपड़े मंगा रहे तो कुछ खिलौने, लेकिन सब रेलवे के भरोसे। अब रेलवे है कि सामान सहेजने में जुटा है। पार्सल घर फुल हो गया तो बाहर ही सामान रखकर उसे सुरक्षित किया जा रहा है। मौसम खराब है, नुकसान हुआ तो भरपाई कौन करेगा। इसके चलते रेलवे ने सामान रखने की समय सीमा पर फिर से पाबंदी लगा दी है। इस पर बातचीत में एक व्यवसाई की टीस सामने आ गई। बोले, एक तो कोई गाड़ी मालिक तैयार नहीं हो रहा। गोदाम पहले से भरे हैं। दुकान से कुछ बिके तो जुगाड़ कर सामान मंगाया जाए।