खरी-खरी : पति हो तो 'साहब जैसा Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर गजाधर द्विवेदी का साप्ताहिक कालम- खरी-खरी...
गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। आधी आबादी की स्वास्थ्य सुरक्षा का दावा करने वाले एक बड़े सरकारी अस्पताल में एक सफेद कोट वाले साहब हैं। साहब ब'चों का इलाज करते हैं तो उनकी पत्नी उसी अस्पताल में 'बड़े साहबÓ हैं। इन दिनों अस्पताल में साहब और बडे साहब के खूब चर्चे हैं। घर की साझी जिम्मेदारी का फार्मूला अस्पताल में भी चल रहा है। साहब ब'चों का इलाज छोड़कर सुबह से लेकर शाम तक बड़े साहब (पत्नी) के कमरे में बैठे रहते हैं। उनका जो भी बोझ है, उसे साहब ने उठा लिया है। अपना मूल काम छोड़कर अस्पताल की पूरी व्यवस्था की देखरेख में लग गए हैं। कर्मचारियों के कामों का हिसाब-किताब भी वही करते हैं। कौन कर्मचारी समय से नहीं आया, किसने कितना काम किया, पूछताछ वही कर रहे हैं। पत्नी बड़े साहब की कुर्सी पर बैठी चुपचाप देखती रहती हैं। महिला कर्मचारी कहने लगी हैं, भगवान सबको साहब जैसा ही पति दें।
आपको मानसिक कोरोना है
एक सज्जन को शरीर में दर्द था। उन्हें भ्रम हो गया कि कोरोना है। आनन-फानन सबसे बड़े सरकारी अस्पताल गए। पर्ची काउंटर पर पूछा गया कि बीमारी क्या है। उन्होंने बताया कोरोना। कर्मचारी ने पर्ची पर कोविड-19 लिखकर दे दिया। सीधे ओपीडी में मेडिसिन के डॉक्टर के पास पहुंचे। जांच-पड़ताल की गई। कोरोना के कोई लक्षण नहीं मिले। डॉक्टर ने कहा कि आपको मानसिक कोरोना है। इस तरह के कोरोना की जांच नहीं कराई जाती। उन्होंने पर्ची पर दर्द की एक दवा लिख दी। वह दवा लेने कई मेडिकल स्टोर पर गए, स्टोर वालों ने पर्ची पर दूर से ही कोविड-19 देखा तो हाथ खड़े कर लिए। सज्जन परेशान, न तो कोरोना जांच हुई और न ही दवा मिली। अब घूम-घूमकर कह रहे हैं 'यहां पूरी व्यवस्था ध्वस्त है। आम आदमी की तो कोई सुनने वाला नहीं है। मानसिक कोरोना की जांच नहीं होती तो क्या दवा भी नहीं मिलती।
सब करना, जांच मत कराना
सेहत महकमे के एक बड़े साहब ने सफेद कोट वाले साहबों के साथ मीटिंग की। समझाते हुए कई हिदायतें दीं। मसलन, यदि तबीयत खराब हो जाए, खतरनाक बीमारी के लक्षण भी नजर आएं तो दवा लेकर खा लेना। घर में खुद को अलग-थलग कर लेना। परिवार के सदस्यों से दूरी बनाकर रखना। सारे बचाव करना लेकिन जांच मत कराना। चौंकते हुए सफेद कोट वाले साहबों ने पूछा कि ऐसा क्यों? इस पर साहब ने खतरनाक बीमारी वाले वार्डों में व्यवस्था की पोल खोल डाली। बताया, वार्डों में कोई सफाईकर्मी जाता नहीं है, इसलिए बाथरूम बहुत गंदे हैं। समय से भोजन-पानी मिलना नहीं है। जो मिलेगा, वह आपको पसंद नहीं आएगा। चाय केवल सुबह मिलेगी, कभी गुनगुनी तो कभी एकदम पानी जैसी। ङ्क्षभडी की सब्जी भी मसालेदार मिलती है। इसलिए पहले से सावधान कर रहा हूं। आप खुद समझदार हैं। जानते हैं कि किस लक्षण में कौन सी दवा खानी है।
काश! साहब समझ पाते मरीज का दर्द
कोरोना वार्ड में एक मरीज भर्ती है। उसे सेहत महकमे के बड़े साहब का मोबाइल नंबर कहीं से मिल गया है। गनीमत है कि साहब को फोन नहीं करता, नहीं तो लगातार ऊपर के लोगों का फोन अटेंड कर रहे साहब को बड़ी मुसीबत हो जाती। परेशान मरीज उन्हें वाट्सएप करता है। रोज एक ही सवाल 'क्या आप गारंटी दे सकते हैं कि मैं ठीक हो जाऊंगा?Ó मरीज की मनोदशा समझने की बजाय साहब को हंसी आ जाती है। मातहतों को मैसेज दिखाते हैं और मरीज का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं, कोरोना से दिमाग हिल गया होगा।Ó काश! लगातार हो रही मौतों के बीच मरीज की मानसिक स्थिति को साहब समझ पाते। मातहत साहब के सामने तो कुछ नहीं बोल पा रहे लेकिन पीठ पीछे उनकी संवेदनहीनता की कहानी बयां करते हैं। साहब को भले न समझ आए लेकिन ऐसे परेशान मरीजों के लिए वाकई जरूरत है काउंसिङ्क्षलग की।