कालम : अवैध पर वैध की सरकारी मुहर Gorakhpur News
गोरखपुर से साप्ताहिक कालम में इस बार जिला प्रशासन और गोरखपुर विकास प्राधिकरण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। नियमित दिनचर्या और अधिकारियों एवं कर्मचारियों के कार्य व्यवहार पर यह रिपोर्ट आधिारित है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से गोरखपुर से उमेश पाठक का साप्ताहिक कालम-कसौटी...
उमेश पाठक, गोरखपुर। यूं तो विभाग का मूल काम अनियोजित विकास को रोकना है। पर, आजकल अवैध निर्माण में इस विभाग की मिलीभगत जरूर उजागर हो जाती है। ताल-पोखरों की जमीन पर किसी भी दशा में निर्माण मान्य नहीं है। लेकिन एक ताल और एक पोखरे के किनारे अवैध तरीके से हुए निर्माण को रोकने जब एक सरकारी विभाग की टीम पहुंची तो वहां के नागरिक शहरी क्षेत्र में विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग से जारी वैधता प्रमाण पत्र लेकर आ गए। उनका कहना है? कि जब वे सही नहीं हैं तो उस विभाग ने उन्हें निर्माण की अनुमति कैसे दी और शहरी क्षेत्र में साफ-सफाई का जिम्मा संभालने वाला विभाग वहां जलनिकासी की व्यवस्था क्यों कर रहा है? बार-बार एक सरकारी विभाग का वैधता प्रमाण पत्र देख अतिक्रमण हटाने वाले साहब भी सकते में हैं और उन्हें फिर विभागीय जिम्मेदारों पर कार्रवाई के लिए लिखना पड़ा है।
हाथ काले हुए, कुछ हाथ भी न आया
जिले के 34 गांवों को मलाईदार माना जा रहा है। इन्हीं में एक गांव शहर के उत्तरी सीमा में स्थित एक ब्लाक में भी स्थित है। विकास के लिए यहां करोड़ों की मलाई आयी तो जिम्मेदारों के मुंह में पानी आना भी लाजमी था। बिना किसी को भनक लगे चुपचाप मलाई का कुछ हिस्सा निकाल लिया गया। डील थी कि आधा-आधा खाएंगे। पर, बगल के ब्लाक में एक जिम्मेदार की नासमझी ने इस गांव में भी मलाई निकालने की पोल खोल दी। मामला बड़े साहबों की नजर में भी आ गया। जांच शुरू हो गई तो आधे-आधे की डील पर भी संकट गहरा गया। जिसके हिस्से मलाई आयी वह पूरा खाने की फिराक में है। उसकी बेईमानी की शिकायत लेकर दूसरा पार्टनर इधर-उधर का चक्कर लगा रहा है। ब्लाक में चर्चा है कि दूसरे पार्टनर के हाथ भी काले हो गए और कुछ हाथ भी न आया।
सिफारिश भारी पड़ेगी या जिद
जिले के उत्तरी सीमा के आखिरी ब्लाक के दो गांवों में पंचायती राज से जुड़े दो-दो साहब पहुंच गए हैं। दरअसल इन दो गांवों में से एक में भारी-भरकम धनराशि विकास के लिए मिली है। ग्रामीणों की कला के कारण चर्चा में रहने वाला यह गांव अब दूसरे कारणों से चर्चा में है। यहां विभाग की ओर से तैनात साहब की वहां के भूतपूर्व जनप्रतिनिधि से नहीं बनी तो उनका स्थानांतरण कर दिया गया। जिम्मेदारी अस्थायी रूप से एक दूसरे साहब को दी गई। अस्थायी वाले साहब भी खूब प्रभावशाली हैं सो सिफारिश के बूते स्थायी हो लिए। वित्तीय अधिकार भी मिल गया। पर वहां से हटाए गए साहब जिद्दी निकले, वह भी पंचायत भवन पर कुर्सी रखकर बैठने लगे हैं। अब एक साहब वित्तीय काम देख रहे हैं तो दूसरे जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे काम। अब देखना यह होगा कि सिफारिश भारी पड़ती है या जिद।
वही साहब हैं वही ठीकेदार भी
काम की गुणवत्ता को लेकर इस साहब को शायद किसी और पर विश्वास नहीं है। तभी तो वही साहब भी हैं और ठीकेदार भी। बात हो रही है शहर के उत्तरी सीमा में स्थित एक ब्लाक की। यहां जिम्मेदार पद पर कार्यरत साहब की विशेष कृपा एक फर्म पर रहती है। चर्चा है कि साहब इस फर्म के अ²श्य साझीदार हैं। फर्म को कितना काम मिला, कितना नहीं, इसका पूरा हिसाब उनके पास रहता है। हाल ही में गलत भुगतान के कारण चर्चा में आए एक गांव में भी उसी फर्म को भुगतान किया गया। चर्चा है कि ब्लाक के तकरीबन 88 फीसद गांवों में विकास कार्यों के लिए साहब खुद पर ही भरोसा, करते हैं और अपनी विश्वसनीय फर्म को ही काम दिलाते हैं। उनका इतिहास भी कुछ कम नहीं। इससे पहले जिस ब्लाक पर थे, वहां भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमा भी था उनपर। फिलहाल स्टे पर हैं।