कसौटी : हर सांचे में फिट नेताजी Gorakhpur News
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उमेश पाठक, गोरखपुर। नीले निशान के साथ जनसेवा का दावा करने वाली पार्टी की क्रियाशीलता जब भी चर्चा में आती है, तो माना जाता है कि कोई बदलाव हुआ होगा। बदलाव भी इस तेजी से किए जाते हैं, मानो रिकार्ड बनाने के लिए कोई दौड़ प्रतियोगिता हो रही हो। पार्टी के सुप्रीम पावर ने एक बार फिर 'मजबूती के लिए संगठनात्मक फेरबदल किया है। पार्टी के छोटे नेता हर बार की तरह अबकी भी इस बात को लेकर परेशान हैं कि संगठन में बदला क्या है? वही पुराने नाम जो पहले से लीड करते आए हैं, इस बार भी अगली कतार में हैं। कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि दो-तीन नेता तो हर बार सांचे में फिट बैठ जाते हैं। बस उनका पदनाम बदलता है। कार्यक्षेत्र छोटा-बड़ा होता रहता है। सबसे खास बात यह है कि पार्टी में जिसका सार्वजनिक रूप से विरोध हुआ, वह फिर से महत्वपूर्ण पद पर विराजमान हो गया है।
ये उफान का दौर नहीं है
आठ साल से सत्ता से दूर खड़ी पार्टी के एक 'प्रभावशाली नेताजी इन दिनों निजी जीवन में व्यस्त हैं। कुछ वर्ष पहले तक तेजी से उभरने वाले यह नेता अब राजनीतिक गतिविधियों से दूरी बनाकर चल रहे हैं। एक समय था जब उनका काफिला गुजरता था, तो पार्टी के खांटी कार्यकर्ताओं का सीना गर्व से फूल जाता था। कार्यक्रम स्थल पर उनके आगे-पीछे चलने वालों की भीड़ लगी रहती थी। मंच पर पहुंचते तो संचालनकर्ता भी भव्यता के साथ उनका परिचय कराना नहीं भूलता था। कुर्सी भी सबसे प्रमुख पदाधिकारी के बगल लगती थी। दो बार इंतजार के बाद भी जब पार्टी का वनवास खत्म नहीं हुआ, तो कोरोना काल से पहले ही नेताजी ने खुद को 'क्वारंटाइन कर लिया। नेताजी की गतिविधियां देख उनके मुंहलगे कार्यकर्ता से रहा नहीं गया, तो उसने इस बेरुखी का कारण पूछ लिया। जवाब में नेताजी ने कहा 'ये उफान का दौर नहीं है।
कोरोना से पहले नेताजी क्वारंटाइन
शहर में सुनियोजित विकास की जिम्मेदारी निभाने वाले विभाग की वेबसाइट देखने के बाद कार्यालय में आने वाला व्यक्ति संशय में पड़ जाता है। एक बड़े साहब के कमरे के बाहर लगा बोर्ड देख सोचने लगता है कि यहां दूसरा नाम क्यों लिखा है? दरअसल उसका संशय में पडऩा कहीं से गलत नहीं है। डिजिटलीकरण की ओर अग्रसर विभाग में योजनाओं के लिए आवेदन, संशोधन से लेकर लगभग सभी काम वेबसाइट के जरिये ही हो रहे हैं। कोई जिज्ञासु व्यक्ति जब वेबसाइट पर विभाग के सांगठनिक ढांचे पर नजर डालता है, तो उसे तीन साहबों के नाम दिखाई देते हैं। इनमें से दो साहब के विभागीय कक्ष के बाहर तो वेबसाइट वाला ही नाम लिखा है, लेकिन बड़े साहब का नाम देखकर संशय हो जाता है। वेबसाइट पर कुछ नाम है और विभागीय कक्ष के बाहर कुछ और। इस डिजिटल युग में साहब के नाम का अंतर चर्चा में है।
'स्वतंत्रता का लाभ उठाने की बेचैनी
उद्योगों को प्लेटफार्म देने वाले विभाग में कई नियम दो महीने बाद बदल जाएंगे। ऐसे ही एक नियम के तहत भूखंडों की 'स्वतंत्रता भी छिन जाएगी। विभाग के संचालन की दिशा तय करने वाली बैठक में नए नियम पर मुहर लग चुकी है। उत्पादन शुरू करने के नाम पर लिए गए भूखंड को कुछ लाभार्थी प्रवृत्ति वाले एक हाथ से दूसरे हाथ तक पहुंचाते रहते हैं। बदले में 'लाभ के भागी बनते हैं, लेकिन विभाग ने ऐसे 'लाभार्थियों की इच्छा पर कुठाराघात करते हुए नियम ही बदल दिया है। एक सितंबर से कोई भी भूखंड तब तक दूसरे हाथ में नहीं दिया जा सकता जब तक वहां उत्पादन शुरू करने के लिए ढांचा न तैयार हो जाए। जैसे ही नियम चर्चा में आया है, भूखंडों की 'स्वतंत्रता के शेष दिनों का लाभ उठाने को लेकर लाभार्थियों की बेचैनी बढ़ गई है और ग्राहक तलाशने का सिलसिला तेज हो गया है।