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हाल बेहाल : मलाई काट ले गया दूसरा वाला Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कॉलम हाल बेहाल---

By Satish ShuklaEdited By: Published: Thu, 05 Mar 2020 11:00 PM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2020 11:00 PM (IST)
हाल बेहाल : मलाई काट ले गया दूसरा वाला Gorakhpur News
हाल बेहाल : मलाई काट ले गया दूसरा वाला Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। कहां सोचा था कि मलाई काटेंगे और हुआ यह कि अपनी मलाई ही दूसरे के पास चली गई। साफ-सफाई वाले महकमे में 95 सड़कों की स्वीकृति की खबर जैसे ही आम हुई, कुछ को छोड़ ज्यादातर के चेहरे खिल उठे। जनता तो बहुत खुश हुई, जिन मननीयों के इलाके में सड़कों और नालियों का तोहफा मिला, वह भी अपनी बहादुरी के किस्से सुनाते फिरते रहे। इनमें कुछ ऐसे भी लोग थे जो दिखाने के लिए सरकार की शान में कसीदे गढ़ रहे थे लेकिन उनके दिल रो रहे थे। रुलाई छूटे भी क्यों नहीं, आर्थिक धक्का जो लगा था। महकमे की इंजीनियङ्क्षरग करने वालों ने प्रिय ठीकेदारों की मदद से दिन-रात एक कर इस उम्मीद में बजट बनाया था कि ठीका मिलते ही मूल तो लौट ही आएगा, लाभ भी अनलिमिटेड मिल जाएगा। लेकिन हुआ यह कि सब मेहनत सफाई महकमे ने की और माल दूसरा वाला काट ले गया।

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बाऊ जी का सॉलिड डोज

विपक्षियों की हवा बाऊ जी ही निकालते हैं। चाहे कोई कितना बड़ा फूं-फां करने वाला क्यों न हो, बाऊ जी के सामने आते ही बबुआ बन जाता है। जैसे ही कोई शोरगुल करता बाऊ जी के सामने आता है, तो उसकी छवि रामायण के बाली जैसी हो जाती है। जैसे-जैसे शोरगुल करने वाले की छवि मोटे शीशे वाले चश्मे में उतरती जाती है, उसकी आवाज धीमी पड़ती जाती है। थोड़ी देर में बाऊ जी के पीछे चलने लगता है। हाल ही की बात है। विपक्ष वाले एक छोटे माननीय सड़क का बजट न मिलने से इतने नाराज हो गए कि मिनी संसद के बहिष्कार का ऐलान कर दिया। दूसरे विपक्ष वाले भी उनके हां में हां मिलाने लगे। लगा कि नेशनल न्यूज बनने जैसा मामला हो जाएगा। बाऊ जी को पता चला तो छोटे माननीय को तोपचे में लेते गए। बाहर निकले तो माननीय की हेकड़ी गायब हो चुकी थी।

हम भी हैं बदनामी के जिम्मेदार

साफ-सफाई वाले महकमे के छोटे माननीय खुद को पाक-साफ बताने का मौका नहीं गंवाते हैं। दो-चार लोग इकट्ठा हो गए तो यह बताने से नहीं हिचकते कि घर से ही लगाकर नेतागिरी हो रही है। महकमे में सबसे विशालकाय कद-काठी वाले एक छोटे माननीय हाजिर जवाबी और भयंकर वाले ठहाकों के लिए जाने जाते हैं। एक दिन बाऊ जी के सामने आते ही फट पड़े। बोले, 'मिलना-जुलना तो कुछ है नहीं, लेकिन बदनामी ऐसी करते हैं कि जैसे हमारे जितना कोई कमा ही नहीं रहा है। एक अन्य छोटे वाले माननीय भी दुखड़ा सुनाने लगे। बोले, 'जनता तो ऐसे व्यवहार करती है जैसे लगता है कि इलाके में जो काम हो रहा है, उसका पूरा बजट हमारी जेब में जा रहा है। एक सीनियर टाइप छोटे माननीय से रहा नहीं गया तो बोल पड़े, 'साहबों की जी हुजूरी करोगे तो यही होगा, इसके लिए हम भी कम जिम्मेदार नहीं हैं।

सवाल तो बड़ा है, उठाए कौन?

जब से सफाई महकमे में फौजी आए हैं, काम तेज होने लगा है। पॉलीथिन के अभियान से महकमे को फायदा भी होने लगा है। किलो के रेट पर जुर्माना लग रहा है और बिना जुर्माना जमा किए फौजी मुक्ति भी नहीं दे रहे हैं। फौजी दिन हो या रात अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से पूरी करने के लिए जूझ रहे हैं, पर महकमे के खिलाड़ी अब भी चाल चलने से चूक नहीं रहे हैं। कई दिन से मिल रहे इनपुट पर एक फौजी ने रेकी की और पॉलीथिन माफिया को फलमंडी से दबोचा लिया। कर्नल साहब थे नहीं। माल ज्यादा था तो उम्मीद थी कि जुर्माना भी ज्यादा ही लगेगा। सब तैयारी भी हो गई थी लेकिन यहीं खेल हो गया। चेन वाले साहब जैसे ही आए बाजी पलट गई। मामला इतने कम में निपटा कि जिसने सुना, गश खा गया। लेकिन चेन वाले साहब के डर से सवाल उठाए कौन?


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