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गोरखपुर से साप्‍ताहिक कालम बिंब प्रतिबिंब, आखिरी वक्त में क्या खाक मुसलमां होंगे

खुराक के इंतजाम के बिना ही हाथी जैसे बड़े जानवर को पालने की कहावत इन दिनों शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में चरितार्थ हो रही है। बीते दिनों कूड़ा से खाद बनाने वाली मशीन तो बाकायदा ढोल पीटकर बैठा दी गई लेकिन इसकी कोई योजना बनी ही नहीं।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Published: Thu, 17 Jun 2021 06:06 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jun 2021 06:06 PM (IST)
गोरखपुर से साप्‍ताहिक कालम बिंब प्रतिबिंब, आखिरी वक्त में क्या खाक मुसलमां होंगे
गोरखपुर विश्‍वविद्यालय के मुख्‍य द्वार का फाइल फोटो, जागरण।

गोरखपुर, डा. राकेश राय। शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में आए दिन हो रहा तकनीकी प्रयोग उन गुरुजी लोगों पर बेहद भारी पड़ रहा, जिनकी नौकरी का आखिरी वक्त चल रहा। नौकरी किसी तरह काटने के मूड में आ चुके उन गुरुजी लोगों के लिए आनलाइन क्लास और आनलाइन मीटिंग तो पहले ही सिरदर्द बनी हुई थी, बीते दिनों शुरू हुआ आनलाइन मूल्यांकन का प्रयोग उनके गले की हड्डी बन गया है। समझ में नहीं आ रहा कि वह नित नए प्रयोगों से कैसे पार पाएं, आखिरी वक्त में अपनी नौकरी कैसे चलाएं। पहले खुद को अपडेट करने की कोशिश की। यहां तक कि नई व्यवस्था में खुद को फिट बैठाने के लिए नाती-पोतों की शाॢगदी भी बर्दाश्त की, पर बात फिर भी नहीं बनी तो अब दिनरात व्यवस्था को कोसने का बीड़ा उठाए हुए हैं। कहते फिर रहे च्क्या जमाना आ गया है, अब विद्याॢथयों के साथ गुरुजी की भी परीक्षा हो रही।ज्

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हाथी के लिए खुराक का संकट

खुराक के इंतजाम के बिना ही हाथी जैसे बड़े जानवर को पालने की कहावत इन दिनों शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में चरितार्थ हो रही है। बीते दिनों कूड़ा से खाद बनाने वाली मशीन तो बाकायदा ढोल पीटकर बैठा दी गई लेकिन उसे खुराक कहां से मिलेगी, इसकी कोई योजना बनी ही नहीं। नतीजतन मशीन के सामने खुराक का संकट खड़ा हो गया है। एक घंटे में 100 किलो खाद बनाने वाली मशीन को 10 किलो खाद का कूड़ा भी नहीं मिल पा रहा। संचालन को लेकर उस जिम्मेदार के हाथ-पांव फूलने लगे हैं, जिसने यह सोचकर जिम्मेदारी अपने सर ली थी कि यह उपलब्धि उन्हेंं एक नई पहचान देगी, साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुडऩे की उनकी साध भी पूरी हो जाएगी। समस्या सामने आई तो जिम्मेदार खुराक के मुताबिक कूड़ा जुटाने में तो लग गए हैं लेकिन व्यवस्था की खामी को लेकर जिम्मेदारों की जमकर किरकिरी हो रही।

बुझौनी मत बुझाइए, साफ-साफ बताइए

जिले की सबसे बड़ी पंचायत का मुखिया तय करने की घड़ी आ गई है, सो अटकलों का बाजार गर्म है। चुनाव की तारीख तय होते हुए बीते दिन फूल वाली पार्टी के छुटभैया नेता इसे लेकर सक्रिय हो गए। पार्टी किस पर अपना दांव लगाएगी, कयास लगाने के लिए कुछ नेताजी लोग महफिल भी जमा लिए। एक साहब जातिगत समीकरण बैठाकर प्रत्याशी तय कर रहे थे, दूसरे धन-बल वाले प्रत्याशी को मजबूत दावेदार बता रहे थे। दोनों में गर्मागर्म बहस चल ही रही थी कि इस बहस को बेमतलब समझ रहे एक नेताजी ने हस्तक्षेप किया, च्झूठे सिर-फुटव्वल कर रहे हैं, प्रत्याशी फाइनल है, दिमाग लगाएंगे तो खुदे जान जाएंगे।ज् यह टिप्पणी बहस करने वाले नेताजी लोगों को तंज लगी। आवेश में बोले, च्बुझौनी का बुझा रहे हैं, एतना पता है तो साफ-साफ बता दीजिए।ज् उनकी आक्रामकता देख हस्तक्षेप करने वाले नेताजी ने मौन साधने में ही अपनी भलाई समझी।

बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले

फूल वाली पार्टी के संगठन का अनुशासन उसके कार्यकर्ताओं को पता है। इसके अहसास को जिंदा रखने के लिए पार्टी की ओर से क्लास भी लगाई जाती है। बावजूद इसके कुछ उत्साही नेता, यहां तक कि जनप्रतिनिधि भी इसे तोडऩे को कोशिश करते नजर आ जाते हैं। ऐसा ही एक वाकया बीते दिनों हुआ। संगठन के प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी की बैठक आयोजित थी। चूंकि बैठक कुछ चिन्हित लोगों के साथ ही होनी तय थी, इसलिए उसमें उसे ही जाने की अनुमति मिल रही थी, जो सूची का हिस्सा थे। संगठनात्मक नियमों की जानकारी होने के बावजूद कुछ जनप्रतिनिधि और बड़े पदाधिकारी नंबर बढ़ाने के लिए वहां पहुंच गए और बैठक में जाने की कोशिश करने लगे। काफी मशक्कत के बाद भी जब सफलता नहीं मिली तो उनका चेहरा उतर गया। यह देख वहां खड़े लोग यह तंज करने से बाज नहीं आए कि च्बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे हम निकलेज्।


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