साप्ताहिक कालम: भाई से शुरू हुई, कमाई पर पहुंची Gorakhpur News
कोरोना की दूसरी लहर ने पंचायती अखाड़े में बड़ा सन्नाटा खींच रखा है। हालांकि अखाड़े में दांव-पेच आजमाए जा रहे हैं लेकिन चित और पट का पता नहीं चल रहा है। वंशवाद बनाम संगठन का नारा लेकर चाय पार्टी करने वाले नेता अपना पत्ता खोल चुके हैं।
गोरखपुर, बृजेश दुबे। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. लाइनें पुरानी हैं, लेकिन इसका मिजाज हमेशा नया रहता है। कभी भी प्रयोग कर लीजिए, मौजूं ही रहेंगी। ताजा उदाहरण छोटी पढ़ाई वाले विभाग के मंत्रीजी के बड़े-बड़े चर्चे हैं। कमजोर आय वर्ग के प्रमाणपत्र पर भाई की नौकरी लगने से बात शुरू हुई थी। बात कागज से निकलकर फेसबुक पर आई, वहां से ट्विटर पर और अब देखिये, मंत्रीजी की कमाई पर आ गई। हालांकि भाई का प्रमाणपत्र कैसे बना, वह कितना कमाते थे, उनकी कार का क्या हुआ, जैसे सवालों के जवाब अभी आए ही नहीं और आभासी दुनिया में जमीनी हकीकत के पेपर भी घूमने लगे? अर्थशास्त्र के व्याख्याता से करोड़ों की जमीन लाखों में खरीदने का अर्थशास्त्र पूछा जाने लगा। आय की निगरानी करने के साथ कर जुटाने की जिम्मेदारी वाले विभाग तक बात पहुंचाई जा रही है। लोग चिंता में हंै, पता नहीं बात कितनी दूर तलक जाएगी।
भोज के बाद दक्षिणा मिलेगी
कोरोना की दूसरी लहर ने पंचायती अखाड़े में बड़ा सन्नाटा खींच रखा है। हालांकि अखाड़े में दांव-पेच आजमाए जा रहे हैं, लेकिन चित और पट का पता नहीं चल रहा है। वंशवाद बनाम संगठन का नारा लेकर चाय पार्टी करने वाले नेता अपना पत्ता खोल चुके हैं, लेकिन सामने वाले ने अपने पत्ते दबा रखे हैं। सुना है, विरासत में राजनीति पाने वाले खांटी खिलाड़ी ने सामने वाले के ही पत्ते फेंट दिए हैं। संगठन का नारा बुलंद करने वाले कुछ खिलाड़ियों के साथ पहले तूफान की पहली बारिश में चाय-पकौड़ी की पार्टी कर चुके हैं। चाय के साथ भरोसे की घुट्टी भी पिलाई गई है कि सभी का ध्यान रखा जाएगा और भरपूर रखा जाएगा। ये खिलाड़ी अब नए खिलाड़ियों को साथ ला रहे हैं। एक भोज का इंतजाम हो रहा है। जैसे ही कोरोना कफ्यरू हटेगा, भोज होगा। दूसरे खिलाड़ी पूछ रहे, खाने के बाद दक्षिणा मिलेगी क्या?।
छींटे अभी बाकी हैं
नए साल की पार्टी में अधीनस्थ के साथ प्रेम रस में सराबोर मिले दारोगा की वर्दी पर लगा धब्बा तो धुल गया लेकिन छींटे अभी बाकी हैं। दरअसल, दारोगा साहब अधीनस्थ के साथ न्यू ईयर पार्टी मनाते हुए पकड़े गए थे। मामला बड़का साहब तक पहुंचा तो दोनों की शादी कराने का फरमान मिला। जांच में दारोगा जी शादीशुदा और दो बच्चों के बाप निकले। इसपर साहब ने सजा के तौर पर दारोगा को जिले के पश्चिमी छोर पर भेज दिया तो अधीनस्थ को पूर्वी छोर। कुछ दिनों बाद बात दब सी गई और लोग भूल गए। चार दिन पहले दारोगा का तबादला गांव से शहर में हो गया। चौकी की जिम्मेदारी भी मिल गई तो महकमे में जुगाड़ की चर्चा आम हो गई। चर्चा पुराने किस्से संग ऊपर पहुंची तो पड़ताल में छींटे उभर आए। दारोगा को शहर में ही तैनात रखा गया है, लेकिन चौकी छिन गई है।
बुढ़ापा तो तुमको भी आएगा
स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों को जाने क्या सूझी कि उन्होंने महिला अस्पताल में बुजुर्गो के लिए बनाए गए टीकाकरण बूथ का स्थान बदल दिया। 45 पार के सभी लोगों के लिए बने इस बूथ पर पहले भूतल पर ही रजिस्ट्रेशन और वैक्सिनेशन होता था, अब पहली मंजिल पर हो रहा है। वह भी सबसे पिछले हिस्से में, जो पहले वाले बूथ से करीब 200 कदम दूर है। जिनके लिए दो डग भी भरना भारी है, विभाग ने उन्हें 200 कदम चढ़ने की दुश्वारी दे दी। गठिया पीड़ित एक बुजुर्ग महिला ने एक सहायक से कहा कि बेटा मैं चढ़ नहीं पाऊंगी, व्हील चेयर मिल जाएगी क्या। उन्हें न तो व्हील चेयर मिली, न वैक्सीन की व्यवस्था की गई। बुजुर्ग महिला निराश होकर वहां से लौट आईं। इसी प्रकार कई बुजुर्गो को निराश-परेशान होकर लौटना पड़ा। एक-दो बुजुर्गो ने युवक से कह ही दिया कि बेटा बुढ़ापा तो तुम्हें भी आएगा।