साप्ताहिक कालम बतकही, कमाई बंद तो लड़ाई शुरू Gorakhpur News
गोरखपुर के साप्ताहिक कालम में इस बार पुलिस विभाग पर पूरी खबर लिखी गई है। पुलिस विभाग के अधिकारियों और पुलिस जवानों की दिनचर्या पर फोकस करती विशेष रिपोर्ट है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से सतीश कुमार पांडेय का साप्ताहिक कालम बतकही---
गोरखपुर, सतीश कुमार पांडेय। थानों पर कारखास रहे सिपाहियों का तबादला जबसे यातायात विभाग में हुआ है, वहां लड़ाई का माहौल है। कभी ये कारखास अपने थानों पर थानेदारों की आंख, कान, नाक और मुंह हुआ करते थे। इनपर थानेदार की आर्थक व्यवस्था का सारा दारोमदार था। थानों पर तैनाती के दौरान इन्होंने कभी वीआइपी, मुल्जिम या पोस्टमार्टम कराने वाली ड्यूटी नहीं की। साहब का हमसाया बन व्यवस्था चलाते रहे। यातायात विभाग में आने के बाद सबकुछ बदल गया है। आॢथक व्यवस्था में कटौती के साथ ही मेहनत में भी इजाफा हुआ है। यह बात इन कारखासों को नागवार गुजर रही है, जिस कारण ये आये दिन किसी न किसी से उलझ जा रहे हैं। ताकि, आला अधिकारी नाराज होकर इन्हेंं यातायात विभाग से वापस कर दें। थानों की आॢथक व्यवस्था संभालने वाले हाथों में शहर की यातायात व्यवस्था कितनी प्रभावी रहेगी। यह यातायात विभाग के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है।
थानेदार बनने को दिन गिन रहा जुगाड़ू दारोगा
अधिकारियों को अपनी ताकत का अहसास कराने वाले जुगाड़ू दारोगा का तबादला गैरजनपद हो गया है। अपनी रसूख की वजह से आज भी वह चौकी प्रभारी बना बैठा है। उसकी इच्छा है कि थानेदार बन जाए। इसके लिए उसने पैरोकारों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं। उनसे कह रहा है कि चार थानेदार अंडर ट्रांसफर हैं, जल्द ही हट जाएंगे। उनके जाते ही किसी थाने का प्रभार दिलवाने की सिफारिश कप्तान से कर दीजिए। यह कोई मुश्किल काम नहीं होगा, क्योंकि अंडर ट्रांसफर तीन थानेदार दारोगा ही हैं, उनकी जगह मुझे भेजना है। पैरोकार ने आश्वासन भी दे दिया है कि अंडर ट्रांसफर लोगों के रिलीव होते ही थानेदार बनने का सपना पूरा हो जाएगा। इससे जुगाड़ू दारोगा की खुशी का ठिकाना नहीं है। जानने वालों से कह रहा है कि बस दिन गिन रहा हूं, किसी भी दिन लिस्ट जारी हो सकती है, जिसमें उसका नाम जरूर होगा।
हटा दो सर्वोत्तम बल का टैग
पंचायत चुनाव के दौरान शुरू हुई हिंसा बाद तक जारी रही। प्रत्याशी और समर्थक प्रतिद्वंदी से लड़ते रहे, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। चुनाव बाद परिणाम आया तो राजनीतिक दावपेंच से उपजे गुस्से का शिकार पुलिस को होना पड़ा। रिटॄनग अफसर ने उपविजेता रहे बिरादरी के दो नेताओं को विजेता घोषित कर दिया, जिसको लेकर बवाल हुआ। पुलिस चौकी जला दी गई, प्रभारी का सिर फट गया। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सर्वोत्तम बल की टुकड़ी भेजी गयी। पुलिसकॢमयों को लगा कि भीड़ नियंत्रित करने वाली फोर्स स्थिति संभाल लेगी, लेकिन टुकड़ी के जवान स्थिति विपरीत देख भाग निकले। आपाधापी में उनकी गाड़ी मौके पर छूट गई, जिसे भीड़ ने जला डाला। मौके पर पहुंचे एक पुलिस अधिकारी ने सर्वोत्तम बल का नेतृत्व कर रहे दारोगा को जमकर खरी-खरी सुनाई। चेतावनी भरे लहजे में कहा, सर्वोत्तम बल किसी काम का नहीं है। यह टैग अब हटा दो।
गालीबाज दारोगा
दक्षिणी क्षेत्र के थाने पर तैनात दारोगा की कार्यप्रणाली से लोग बेहाल हैं। थाने में आने वाला पीडि़त है या आरोपित, यह जाने बिना दारोगा अपशब्द के साथ बात शुरू करता है। किसी ने प्रतिकार किया तो उसे शारीरिक दंड मिलता है। बड़े साहब केवल बड़े मामले देखते हैं। मारपीट और शिकायती प्रार्थना पत्र की जांच व निस्तारण की जिम्मेदारी उन्होंने बिरादरी के गालीबाज दारोगा को दे रखी है। बड़े साहब का करीबी होने की वजह से दारोगा की कोई शिकायत भी नहीं कर पाता है। जिसने कोशिश की गुस्से का शिकार बना। बेलघाट थाने में तैनाती के दौरान इसी तरह के कृत्य पर कप्तान ने दारोगा का हटाया था, लेकिन प्रभाव से उसने अपनी पोस्टिंग बगल के थाने में करा ली। दक्षिणी क्षेत्र से दारोगा के मोह की दो वजह हैं। एक तो खुलेआम मनमानी और दूसरी बगल के रेंज में घर है, जहां कभी भी हो आते हैं।