खरी-खरी : ताकि कायम रहे खुद की हनक Gorakhpur News
गोरखपुर से साप्ताहिक कालम में इस बार स्वास्थ्य विभाग पर फोकस करती रिपोर्ट लिखी गई है जिसमें मेडिकल कालेज जिला अस्पताल और एम्स के कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्य प्रणाली के बारे में जानकारी दी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से गजाधर द्विवेदी का साप्ताहिक कालम खरी-खरी।
गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। एक उत्कृष्ट चिकित्सा शिक्षा संस्थान के पैथोलाजी विभाग में हनक कायम रखने के लिए पिछले दिनों अजीबो-गरीब फैसला हुआ। इसी विभाग के अंतर्गत ब्लड बैंक संचालित होता है। कभी विभागाध्यक्ष व ब्लड बैंक प्रभारी में बहुत पटती थी, लेकिन आजकल 36 का आंकड़ा है। एक नियुक्ति के मामले में गत दिनों यह मतभेद खुलकर सामने आ गया। ब्लड बैंक में एनपी जेआर (नान पीजी जूनियर रेजीडेंट) की पोस्ट निकली थी। एक एमबीबीएस डाक्टर की नियुक्ति भी हो गई। नियमत: विभागाध्यक्ष के आदेश से उन्हें ज्वाइन कराना चाहिए था, लेकिन बिना उनके संज्ञान में लाए ब्लड बैंक प्रभारी ने चयनित डाक्टर को ज्वाइन करा दिया। डाक्टर ने काम भी शुरू कर दिया। यह बात पता चली तो विभागाध्यक्ष खफा हो गईं। प्रभारी को खरी-खरी सुनाते हुए अपनी हनक कायम रखने के लिए उन्होंने नियुक्ति का आदेश ही निरस्त कर दिया और नया आदेश बनाकर पुन: उसी डाक्टर को ज्वाइन करा दिया।
इलाज छोड़ ढो रहे फाइलों का बोझ
अभी जल्दी खुले नामी सरकारी अस्पताल में एक डाक्टर साहब दो बड़े साहबों की आपसी कलह के शिकार हो गए हैं। बड़े साहब ने अपने से छोटे साहब का अधिकार सीमित करने के लिए एक नया पद सृजित कर दिया। एक डाक्टर साहब को प्रशासक बना दिया और अपने से छोटे साहब के ज्यादातर अधिकार उन्हें सौंप दिए। अब छोटे साहब के पास कुछ खास जिम्मेदारी नहीं रह गई है। सबकुछ प्रशासक संभाल रहे हैं। बड़े साहब को अब ज्यादातर मामलों में छोटे साहब से बात नहीं करनी पड़ती है। वह तो अपने फैसले से खुश हैं और छोटे साहब खुश हैं कि वेतन कटना नहीं है और काम भी कम हो गया है। वहीं डाक्टर साहब फाइलों के बोझ से दब गए हैं। उन्होंने चिकित्सा शिक्षा में परास्नातक की डिग्री ली है। सोचकर आए थे कि मरीजों का इलाज करेंगे। अब इलाज छोड़ फाइलों का बोझ ढो रहे हैं।
मातहतों की खींचतान से व्यथित हैं साहब
शहर के सबसे सुविधा संपन्न सरकारी अस्पताल में एक विभाग के अध्यक्ष मातहतों की खींचतान से व्यथित हैं। किसी अ'छे कार्य के लिए जब भी उनका नाम सार्वजनिक होता है, मातहत जल-भुन जाते हैं। बखेड़ा खड़ा करने लगते हैं। उनकी बुराई करने के लिए हर समय नई-नई तरकीब सोचते रहते हैं, जबकि विभागाध्यक्ष को सिर्फ अपने काम से मतलब रहता है। उन्होंने प्रसूताओं के लिए अ'छी सुविधा और इलाज की व्यवस्था की है। कोरोना काल में जब ज्यादातर डाक्टर, जिनमें उनके मातहत भी शामिल हैं, महामारी से डरकर कोरोना वार्डों से अपनी ड्यूटी कटवा रहे थे। उस समय विभागाध्यक्ष ने बिना भयभीत हुए कोरोना पाजिटिव प्रसूताओं का भी रात में अस्पताल जाकर इमरजेंसी में आपरेशन किया। इसके लिए सरकार की ओर से उन्हें शक्ति मिशन के अंतर्गत सम्मानित भी किया गया। इस पुरस्कार की बात भी वह सार्वजनिक करने से डर रही हैं कि मातहत फिर खींचतान शुरू कर देंगे।
और बदल गए बाबू के तेवर
सेहत महकमे में जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले एक कर्मचारी ने पत्रावली तैयार करने वाले संबंधित बाबू को मिठाई खिलाई। मिठाई खाते समय बाबू ने बड़ी आत्मीयता दिखाई। आश्वस्त किया कि हम आपके काम नहीं आएंगे तो कौन आएगा? लेकिन जैसे-जैसे मिठाई का स्वाद फीका होता गया, बाबू के तेवर बदलते गए। कर्मचारी की सेवानिवृत्ति में कुछ दिन शेष रह गए और पत्रावली तैयार नहीं हो पाई। इसे लेकर ङ्क्षचतित कर्मचारी सप्ताह भर पहले बाबू के पास पहुंच गया। उसने बाबू से अपनी जरूरत बताते हुए शीघ्र पत्रावली तैयार करने का अनुरोध किया, लेकिन बाबू के बदले तेवर देख वह दंग रह गया। बाबू ने फटकारते हुए कहा, जाइए अपनी सीट पर बैठकर काम कीजिए। यहां नियम से काम होता है। इस पर कर्मचारी ने भी उसे खूब खरी-खरी सुनाई। भीड़ जुटने लगी, तो बाबू सकपकाया। धीरे से कहा कि आप अपनी सीट पर चलिए, मैं अभी कर देता हूं।