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खरी-खरी : मिठाई खिलाने वाले मजे में

इस बार के साप्‍ताहिक कॉलम में स्‍वास्‍थ्‍य विभाग और डाक्‍टर एवं कर्मचारियों की कार्य प्रणाली पर फोकस किया गया है। उनकी दिनचर्या के बारे में जानकारी दी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से गजाधर द्विवेदी का साप्‍ताहिक कालम खरी-खरी

By Satish ShuklaEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 02:49 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 05:34 PM (IST)
खरी-खरी : मिठाई खिलाने वाले मजे में
बाबा राघव दास मेडिकल कालेज भवन का फाइल फोटो।

गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। आधी आबादी की स्वास्थ्य सुरक्षा का दावा करने वाले सबसे बड़े सरकारी अस्तपाल में कुछ गड़बड़ चल रहा है। उन नर्सों की ही लेबर रूम या ओटी में ड्यूटी लग रही है, जो साहब को मिठाई खिलाती हैं। अन्य नर्सों को आठ घंटे वार्डों में मेहनत करनी पड़ती है। लेबर रूम व ओटी में कुछ ही देर के लिए या कभी-कभी काम करना पड़ता है। ज्यादातर काम के घंटे आराम में कटते हैं। बच्‍चे पैदा होने पर उन्हें मिठाई के साथ कुछ सेवा शुल्क भी मिल जाता है, इसलिए हर नर्स यही चाहती है कि उसकी ड्यूटी इन दोनों स्थानों पर लगे। फिलहाल अकेले मिठाई खाने वाली नर्सों को साहब ने चिह्नित कर लिया है, इसलिए उनकी ड्यूटी वार्डों में ही लग रही है। जो नर्सें मिठाई बांटकर खाती हैं, मतलब ड्यूटी लगाने वाले साहब को भी देती हैं। उनपर कृपा बरस रही हैं। इसे लेकर नर्सों में असंतोष है।

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शिक्षक पसीना-पसीना, दलालों की चांदी

अभी हाल में जिले में लगभग साढ़े पांच सौ परिषदीय शिक्षक नियुक्त किए गए हैं। नवनियुक्त शिक्षक पिछले दिनों मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने के लिए सीएमओ कार्यालय पहुंचे। अचानक भीड़ बढऩे से सीएमओ कार्यालय में अफरा-तफरी मची थी। भीड़ ज्यादा और कर्मचारी कम थे। ऐसे में सर्टिफिकेट बनाने में विलंब होना स्वाभाविक था। शिक्षक पसीना-पसीना हो रहे थे, लेकिन दलालों की चांदी थी। शिक्षकों को भीड़ से बचाने के लिए दलालों ने दो सौ रुपये प्रति सर्टिफिकेट का रेट खोल रखा था। शुरुआत में कुछ शिक्षकों ने भीड़ से बचने के लिए ऐसा किया। उनके सर्टिफिकेट शाम तक बन गए। इसके बाद दलालों का धंधा चटक गया। विभाग के एक कर्मचारी की मिलीभगत से उन्होंने जमकर कमाई की। जो शिक्षक लाइन लगाकर दिनभर धूप में परेशान रहे, उनका सर्टिफिकेट तीन दिन बाद मिला। दलालों ने सर्टिफिकेट बनाने वाले एक कर्मचारी को भी मिठाई खिलाई, लेकिन अन्य कर्मचारी मुफ्त में पसीना-पसीना हुए।

निकम्मों की अब खैर नहीं

जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के बड़े साहब ने लगभग 15 दिन पहले कार्यभार ग्रहण किया। कुछ निकम्मे किस्म के कर्मचारी शुरू से ही साहब के आगे-पीछे लगे रहे, ताकि काम न करना पड़े और साहब का खास बनकर मलाई भी काटते रहे, लेकिन साहब ठहरे काम पसंद आदमी। अभी तक सभी को देख रहे थे। इस बीच उन्होंने निकम्मों की पहचान कर ली। अब उन्होंने काम शुरू कर दिया है। उन्होंने कर्मठ कर्मचारियों को आगे करने की तैयारी शुरू कर दी है, ताकि व्यवस्था बेहतर हो और मरीजों को अ'छी सुविधा मिल सके। निकम्मों को ऐसी जगह लगाने की तैयारी चल रही है, जहां काम के प्रति केवल उन्हीं की जवाबदेही हो। ऐसे में काम करना उनकी मजबूरी बन जाएगी। वे परेशान हैं। कोई जुगाड़ काम नहीं कर रहा है। लंबे समय से बिना काम के मलाई काट रहे थे और काम करने वालों का मजाक उड़ाते थे।

मेडिसिन के खांचे से बाहर हुए साहब

शहर के उत्कृष्ट चिकित्सा शिक्षा संस्थान में कोविड के 200 व 300 बेड के दो अस्पताल चल रहे हैं। 200 बेड अस्पताल को सभी विभाग मिलकर संचालित कर रहे हैं। 300 बेड की जिम्मेदारी अकेले मेडिसिन विभाग की है। इस विभाग में 15 डाक्टर हैं। इनमें एक डाक्टर को विभाग ने अपनी टीम से बाहर कर दिया है, जबकि विभाग के मुखिया और बाहर किए गए डाक्टर इलाहाबाद में एक ही कालेज से साथ पढ़े हैं। जानकार बताते हैं कि दोनों में 36 का आंकड़ा है। हालांकि टीम से बाहर किए गए डाक्टर कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते अ'छे जानकार हो गए हैं। बावजूद इसके उन्हें विभाग की टीम में जगह नहीं मिल सकी। उन्हें इसका दुख तो है ही, साथ ही अपनों से अलग होने की चिंता भी सता रही है। इस बीच उन्हें निराश देख कालेज के मुखिया ने उनको 200 बेड अस्पताल की जिम्मेदारी सौंप दी है।


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