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परिसर से : नए शासन में बढ़ी गुरुजी की पूछ Gorakhpur News

प्राथमिक स्‍कूल से लेकर दीनदयाल उपाध्‍याय गोरखपुर विश्‍वविद्यालय में शिक्षकों एवं अन्‍य के कार्य व्‍यवहार पर आधारित रिपोर्ट को हर सप्‍ताह पढ़ सकते हैं। इसमें तमाम ऐसी सामग्री मिलेगी जो अच्‍छा लगेगा। पढ़ें गोरखपुर से प्रभात पाठक का साप्‍ताहिक कॉलम परिसर से---

By Satish ShuklaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 05:26 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 05:26 PM (IST)
परिसर से : नए शासन में बढ़ी गुरुजी की पूछ Gorakhpur News
दीनदयाल उपाध्‍याय गोरखपुर ि‍विश्‍वविद्यालय की प्रतीकात्‍मक फाइल तस्‍वीर

प्रभात कुमार पाठक, गोरखपुर। शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में नेपथ्य से बाहर आए एक गुरुजी इस समय चर्चा में हैं। लंबे समय तक समकक्षों के निशाने पर होने के चलते कभी कारण बताने तक को मजबूर गुरुजी अब उद्यमिता बढ़ाने के बहाने फिर से सक्रिय हो गए हैं। पुराने शासनकाल में उपेक्षित रहे गुरुजी को नए शासन में बड़े साहब ने कार्यालय समेत कई सुविधाएं मुहैया करा दी हैं। सुविधाओं के साथ मिले टास्क के अनुसार प्रदर्शन कर उन्हें खुद को साबित करना होगा। साहब की मेहरबानी से खुश गुरुजी अब काम के साथ-साथ उन लोगों पर भी निशाना साधने की जुगत में हैं, जिन्होंने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था। अचानक गुरुजी का रुतबा बढऩे की चर्चा परिसर में इस समय सबकी जुबान पर है। एक दिन एक गुरुजी किसी से उनके बारे में बात कर रहे थे, तभी दूसरे गुरुजी ने कहा कि आज समय उनका है, कल फिर हमारा होगा।

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किताबें ढोने का पैसा ढूंढ रहे गुरुजी

कोरोनाकाल में प्राइमरी स्कूलों के बच्‍चों को किताबें उपलब्ध कराने के लिए ऊपर से नीचे तक के अधिकारियों ने काफी प्रयास किए। जब शासन स्तर से जिलों को किताबें मुहैया कराई गईं, तो सवाल उठा कि यह ब'चों तक कैसे पहुंचेंगी? काफी विचार के बाद जिला मुख्यालय से स्कूलों तक किताबें पहुंचाने के लिए सरकार ने परिवहन व्यय भी उपलब्ध करा दिया। ब्लाक के साहब को स्कूलों तक किताबें पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली। गुरुजी को लगा कि इस बार किताबें ढोने से उनका ङ्क्षपड छूट जाएगा। उन्हें क्या पता था कि जिसे लेकर वह इतने खुश हैं वह खुशी लंबे समय तक नहीं टिकने वाली। गुरुजी इंतजार करते रहे, लेकिन किताबें स्कूल तक नहीं पहुंचीं। तब अपनी नौकरी बचाने के लिए गुरुजी खुद स्कूल तक किताबें ढोने के लिए निकल पड़े। जब एक से दो हुए, तो चर्चा करने लगे कि आखिर कहां गया किताबें ढोने के लिए आया पैसा।

कमियों पर पर्दा डालने में जुटे गुरुजी

इन दिनों शिक्षा के छोटे मंदिर में तैनाती गुरुजी की परेशानी बढ़ गई है। अब तक कोरोना के नाम पर आराम फरमा रहे थे। कभी मन किया, तो स्कूल चले गए, नहीं तो कोई पूछने वाला भी नहीं था। जैसे ही शासन से बड़े हाकिम के दौरे की तिथि मुकर्रर हुई, गुरुजी पर तो जैसे मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। मनमुताबिक नौकरी करने वाले गुरुजी का नियमित स्कूल जाना मजबूरी बन गई। इधर विभाग के छोटे साहब ने भी कमियों को दूर करने के साथ ही नियमित स्कूलों का निरीक्षण भी शुरू कर दिया। पहले से बड़े साहब के दौरे की सूचना से परेशान गुरुजी अब निरीक्षण की मार से बेजार हो गए हैं। आखिरकार अपनी पीड़ा बताएं तो किससे। जिले के दौरे के समय बड़े साहब के कोपभाजन का शिकार न हो जाएं, इसलिए इन दिनों गुरुजी अपने स्कूल में जाकर कमियों पर पर्दा डालने में जुट गए हैं।

पढ़ाई के बाद अब ऑनलाइन प्रैक्टिकल

कोरोना की मार झेल रहे स्कूल अब ब'चों को पढ़ाई के साथ-साथ ऑनलाइन प्रैक्टिकल कराने पर जोर दे रहे हैं। पढ़ाई पर कोरोना का असर न पड़े, इसे देखते हुए ब'चे और अभिभावक भी उनके सुझावों पर अमल कर रहे हैं, ताकि स्कूल खुलने पर उनकी तैयारी पूरी रहे। सीबीएसई ने तो जैसे ऑनलाइन लैब की व्यवस्था कर छात्रों की मुंहमांगी मुराद पूरी कर दी है। कोरोना के कारण स्कूलों में प्रैक्टिकल से वंचित छात्र अब ऑनलाइन लैब के जरिए प्रैक्टिकल की बारीकियां सीख रहे हैं। हालांकि ब'चों के अंदर अभी भी अपने हाथ से प्रैक्टिकल करने की चाहत उछाल मार रही है। उन्हें ऐसा लग रहा है कि जब तक वे खुद से प्रैक्टिकल नहीं कर लेते, उनकी पढ़ाई अधूरी है। यह सब जो उन्हें दिख रहा है, वह काला जादू के समान है, जबकि बोर्ड ऑनलाइन प्रैक्टिकल से अभिभावकों को संतुष्ट कर खुद अपनी पीठ थपथपा रहा है।


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