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बिंब-प्रतिबिंब...और बदल गए मातहतों के सुर Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से डॉ. राकेश राय का साप्ताहिक कालम बिंब-प्रतिबिंब...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 05:07 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 05:07 PM (IST)
बिंब-प्रतिबिंब...और बदल गए मातहतों के सुर Gorakhpur News
बिंब-प्रतिबिंब...और बदल गए मातहतों के सुर Gorakhpur News

डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। सत्ता बदलते ही लोगों के चेहरे कैसे बदलते हैं, इसकी बानगी तकनीकी शिक्षा के सबसे बड़े मंदिर में इन दिनों खूब देखने को मिल रही। बीते दिनों मंदिर के नए आला हाकिम ने कुर्सी संभाली। कुर्सी संभालते ही उन्होंने पठन-पाठन और परीक्षा का प्रारूप तय करने के लिए औपचारिक बैठक बुला ली। बैठक में हाकिम को छोड़कर सभी चेहरे पुराने थे। सो पूरी उम्मीद थी कि पुराने हाकिम की ओर से तय किए गए प्रारूप पर ही औपचारिकता की मुहर लग जाएगी। पर हुआ इसके उलट। नए हाकिम ने पुराने परीक्षा प्रारूप को बदलकर नए प्रारूप का प्रस्ताव रख दिया। मजे की बात यह रही कि कल तक जो लोग पुराने प्रारूप की तारीफ में कसीदे पढ़ा करते थे, उन्हें बदलने में तनिक भी देर नहीं लगी। उन्होंने न केवल नए प्रस्ताव की बेहतरी का राग अलापना शुरू कर दिया बल्कि पुराने प्रस्ताव की कमियां बताने में भी नहीं चूके।

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नहीं पच रही नेताजी की तेजी

फूल वाली पार्टी के एक नेताजी अपने अति उत्साह की वजह से आजकल किसी के आंखों की किरकिरी तो किसी के लिए मजाक का पात्र बने हुए हैं। बिना किसी औपचारिक पद वाले इन नेताजी की खासियत यह है कि उनकी निष्ठा कुर्सी के प्रति है। जो कुर्सी पर बैठा है, वही उनका आराध्य है। अपनी इस प्रवृत्ति को ही वह नेतागिरी का गुण मानते हैं। पार्टी के एक स्थानीय मुखिया से उनकी नजदीकी इन दिनों चर्चा का विषय इसलिए हो गई है क्योंकि कुछ समय पहले उसी पद पर बैठे एक नेता के भी वह इसी तरह खास हुआ करते थे। पाला उन्होंने सिर्फ इसलिए बदल दिया क्योंकि पुराने मुखिया ने अपना पद गवां कर उनका आराध्य बनने का हक खो दिया। स्थिति यह है कि उत्साही नेताजी आज पुराने मुखिया से मिलना तो दूर उनकी ओर रुख भी नहीं करते जबकि नए मुखिया का साया बन गए हैं।

निगेटिव का मतलब कोरोना विजेता नहीं

कोरोना जांच को लेकर इधर बीच लोग काफी सतर्क हो गए हैं। स्वत:स्फूर्त चेतना से लोगों ने अपनी जांच करानी शुरू कर दी है। लेकिन सतर्कता भरे इस कदम के बाद एक नए तरीके की लापरवाही देखने में आ रही। जो लोग जांच में निगेटिव मिल रहे, वह यह मान ले रहे कि उन्होंने कोरोना से जंग जीत ली। बीते दिनों सत्ताधारी दल के एक नेताजी इसी गलतफहमी में कोरोना निगेटिव होने के बाद बिना मास्क के ही घूमने लगे। पूछने पर बड़े आत्मविश्वास से बोले, अरे भाई! हम कोरोना निगेटिव हैं। निगेटिव हैं तो क्या पॉजिटिव होने की सारी आशंका समाप्त हो गई? यह सवाल जब एक सीनियर साथी नेता ने उनसे किया तो उनका सारा आत्मविश्वास डगमगा गया। वह सवाल सिर्फ उन लापरवाह नेताजी के लिए नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए था, जो कोरोना निगेटिव होने के बाद खुद को विजेता मानकर लापरवाही बरतने लग रहे।

आइटी कार्यकर्ता कहलाने का बढ़ा क्रेज

सोशल मीडिया के दौर में फूल वाली पार्टी में आइटी कार्यकर्ताओं की पूछ तो पहले ही बढ़ गई थी, कोरोना काल में इसका क्रेज भी बढ़ गया है। कल तक हाशिये पर रहने वाले आइटी कार्यकर्ता अब हर बड़े नेता की जरूरत हैं। बेहतर आइटी कार्यकर्ताओं को खुद से जोडऩे की बड़े नेताओं में होड़ दिखने लगी है। बीते दिनों पार्टी की ऑनलाइन गतिविधियों में यह खूब देखने को मिला। बड़े से बड़े नेता ऑनलाइन सक्रियता में खुद को कायम रहने के लिए आइटी कार्यकर्ताओं पर निर्भर दिखे। पार्टी कार्यालय में  उनके लिए किया गया खास इंतजाम भी क्रेज की वजह है। जो कार्यकर्ता पार्टी गतिविधियों में हमेशा पीछे की पंक्ति में खड़े नजर आते थे, उनके लिए कार्यालय में बाकायदा स्थान निर्धारित हो गया है। नतीजतन अब आइटी कार्यकताओं की सूची में नाम दर्ज कराने और इससे जुड़े पदों को हासिल करने की होड़ भी देखी जा रही है।  


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