Move to Jagran APP

बिंब प्रतिबिंब - परिक्रमा में बहुत ताकत है भाई Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से राकेश राय का साप्‍ताहिक कॉलम-बिंब प्रतिबिंब...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 09:09 AM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 02:05 PM (IST)
बिंब प्रतिबिंब - परिक्रमा में बहुत ताकत है भाई Gorakhpur News
बिंब प्रतिबिंब - परिक्रमा में बहुत ताकत है भाई Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन।  लंबे इंतजार के बाद बीते दिनों देश के सबसे शक्तिशाली दल की जिला और महानगर टीम की घोषणा हुई। जाहिर तौर पर कुछ की मेहनत रंग लानी थी, तो कुछ की उम्मीदों पर पानी फिरना था। जो जगह पाने में सफल हुए, उनमें से कुछ ने अपने आकाओं की चरण रज ली, तो कुछ ने इसे संगठन के प्रति समर्पण का इनाम बताकर खुद की पीठ थपथपाई। लेकिन जो टीम में जगह पाने में असफल रहे, उनका सिर्फ एक ही रोना था, काश! हमारा भी दल में कोई सरपरस्त होता। कुछ बड़े पदाधिकारी जब असफल कार्यकर्ताओं को दूसरी टीमों में समायोजन की घुट्टी पिलाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश करने लगे तो एक कार्यकर्ता के दिल का दर्द जुबां पर आ गया। बोले, परिक्रमा में बहुत ताकत है भाई। जब तक यह ताकत नहीं आएगी, किसी भी टीम में समायोजन की बात सोचना भी खुद को धोखा देने जैसा है।

loksabha election banner

फिर सत्ताधारी होने का क्या फायदा

देश के सबसे बड़े दल के स्थानीय नेताओं का एक दर्द इन दिनों शाश्वत हो गया है। सत्ता में होने के बाद भी उसका सुख न मिलने का दर्द। सभी की एक ही शिकायत रहती है, जब अफसर हमारी सुनते ही नहीं तो फिर सत्ताधारी दल में होने का क्या फायदा? कार्यकर्ताओं की आपस में मुलाकात के दौरान तो यह दर्द उभर आता ही है, छोटी-बड़ी बैठकों में भी इसे लेकर आए दिन कुछ कार्यकर्ता मुखर हो जाते हैं। इस दर्द से पीडि़त कार्यकर्ताओं का गुस्सा तब सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, जब बड़े पदाधिकारी उन्हें यह कहकर सांत्वना देने की कोशिश करते हैं कि आप देश के सबसे बड़े दल के नेता हैं, इसलिए आपकी सोच भी बड़ी होनी चाहिए। नाराज कार्यकर्ता सामने तो कुछ बोल नहीं पाते, लेकिन बाद में यह कहते हुए दिख जाते हैं कि सोच बड़ी करके क्या करेंगे जब कोई पूछेगा ही नहीं।

खिड़की जो बंद नहीं होती

विरासतों को सुरक्षित रखने का दावा करने वाला विभाग इन दिनों खुद की सुरक्षा लिए जूझ रहा है। उसके परिसर से सटे मकानों की खुली खिड़कियां सुरक्षा के लिए न केवल चुनौती बनी हैं, बल्कि समस्या भी। वर्तमान में विभाग की कमान संभाल रहे अफसर ने जब इसे लेकर सख्ती शुरू की तो कुछ लोगों ने अपने मकानों की खिड़कियां बंद कर लीं, लेकिन कुछ आज भी विरासत परिसर को सरकारी संपत्ति समझकर खिड़की न बंद करने की जिद पर अड़े हैं। उनके लिए सरकारी नियम और कानून सब बेमानी हैं। नियम-कानून पर उनकी जिद कुछ इस तरह भारी है कि वह शहर के विकास का जिम्मा उठा रहे उस विभाग के अफसरों की नोटिस की भी अनदेखी कर रहे हैं, जिसने उन्हें बसाया है। हद तो तब हो गई जब बीते दिनों वह अपनी बेसिर-पैर की जिद को मनवाने के लिए शहर के जनप्रतिनिधि के दरवाजे तक पहुंच गए।

हंसतीं त, के सुनत साहब!

प्रदेश के मुखिया जब भी शहर में होते हैं, तो लोगों से सीधे मिलकर उनका दुख-दर्द दूर करने के लिए दरबार लगाना नहीं भूलते। हर बार दरबार तक पहुंचकर अपनी बात कहने के लिए तरह-तरह की पैंतरेबाजी देखने को मिलती है। बीते दिनों जनता दरबार में पैंतरेबाजी का ऐसा ही एक दृश्य देखने को मिला। एक महिला जोर-जोर से रोते हुए पहुंची और कतार में खड़े लोगों से पहले दरबार में जाने की जिद करने लगी। पुलिस वालों ने रोका तो रोना और तेज हो गया। पुलिस को दया आ गई और उन्होंने कतार तोड़कर उसे दरबार में भेज दिया। दरबार खत्म होने के बाद जब एक पुलिस वाले ने उसी महिला को जोर-जोर से हंसते देखा तो उससे रहा न गया। सवाल के लहजे में पूछा! बड़ी जल्दी दुख दूर हो गया? इसपर महिला का जवाब सुन सिपाही अवाक रह गया। बोली, ओहे समय हंसती त, के सुनत साहब!


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.