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यहां 30 किलोमीटर लंबे ट्रैक पर 36 वर्ष से ट्रेन का इंतजार

सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के लक्ष्मीपुर रेंज में 1924 में स्थापित ट्राम वे परियोजना फिर से चालू होने का इंतजार कर रही है। 1982 में इसे घाटे का सौदा बता वन विभाग ने बंद कर दिया था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 10:23 AM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 12:07 PM (IST)
यहां 30 किलोमीटर लंबे ट्रैक पर 36 वर्ष से ट्रेन का इंतजार
यहां 30 किलोमीटर लंबे ट्रैक पर 36 वर्ष से ट्रेन का इंतजार

गोरखपुर/महराजगंज, विश्वदीपक त्रिपाठी। सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के लक्ष्मीपुर रेंज में 1924 में स्थापित ट्राम वे परियोजना फिर से चालू होने का इंतजार कर रही है। 1982 में इसे घाटे का सौदा बता वन विभाग ने बंद कर दिया। धीरे-धीरे इसका पुर्जा-पुर्जा बिखर गया। विगत 36 साल पूर्व अतीत के पन्ने में दर्ज यह परियोजना सियासी मुद्दा के रूप में आज भी जिंदा है। इसके जीर्णोद्धार की बात होती है लेकिन इसे अमलीजामा तक नहीं मिल पाता है। इसके चालू होने से पर्यटन को बढ़ावा मिलता। उपेक्षा का आलम यह है कि 30 किमी लंबा ट्रैक जगह-जगह उखड़ चुका है। कभी गुलजार रहने वाले रेलवे स्टेशनों पर अब सन्नाटा पसरा है।

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लकड़ी ढोने के लिए शुरू हुआ था संचलन

1920 के आस- पास सोहगीबरवा के घने जंगल को काट कर लकडिय़ों को देश के विभिन्न हिस्सों में निर्माण कार्य के लिए ले जाया जाता था। जंगल से लकड़ी लाने के लिए ट्रामवे का उपयोग ब्रिटिश शासन काल में शुरू हुआ। उस समय महज 35243 रुपये की लागत से निर्मित यह परियोजना लक्ष्मीपुर से 24 टांगिया नर्सरी में स्थित ट्राम वे चौराहे तक 30 किमी का सफर तय करती थी। इंजन  के लिए ईंधन लकड़ी जला कर पैदा किया जाता था।

लकड़ी के 17 पुलों से होकर गुजरती थी ट्रेन

रेल लाइन निर्माण के समय रास्ते में पडऩे वाले नदी नालों पर लकड़ी के 17 पुल बनाए गए थे। इसके साथ ही टेढ़ीघाट, बलुहिया, हथियहवां,  गुलरिहा व प्यास को साइडिंग के रूप में विकसित किया गया था। यहां से लकडिय़ों की लदान होती थी। इसके संचलन के लिए चालक, मिस्त्री सहित दो दर्जन से अधिक कर्मचारी रखे गए थे। 1967-68 तक यह परियोजना लाभकारी रही। 1974-1980 के बीच परियोजना 775473 रुपये के घाटे में चली गई। जिसके चलते 1982 में संचलन पूरी तरह बंद कर दिया गया।

दार्जिलिंग व कोच्चि के रेल अफसर तलाश कर चुके हैं संभावनाएं

ट्राम वे को पुन: जीवित करने के लिए वन विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। वर्ष 2018 में दार्जिलिंग व कोच्चि स्थित रेल फैक्ट्री के अधिकारियों ने एकमा से 24 टांगिया नर्सरी तक रेलवे ट्रैक का दो बार निरीक्षण किया। रेल दौड़ाने की संभावना तलाशी। उनके द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक ट्राम वे को पुन: शुरू करने में 50 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। पर्यटन व वन विभाग रेल संचलन चालू करने का प्रस्ताव शासन को भेज रखा है।

पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है परियोजना

ट्राम वे के संचलन से जिले के पर्यटन व्यवसाय को नया जीवन मिलेगा। वन विभाग की ओर से लगातार प्रयास किया जा रहा है। 16 किमी की दूरी तक जगह-जगह पिकनिक स्पाट, पार्क आदि बनाने की योजना है। ईको टूरिज्म (पर्यावरण के साथ पर्यटन) के लिए सोहगीबरवा जंगल पर्यटकों को लुभाता है। ऐसे में ट्राम वे यहां के पर्यटन व्यवसाय को विकसित करने में मददगार साबित होगा।

ट्राम वे का संचलन महराजगंज सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश में पर्यटन के विकास में महत्वपूर्ण कदम होगा। वन विभाग अपने स्तर से परियोजना को धरातल पर लाने के लिए प्रयास कर रहा है। - मनीष सिंह,  -डीएफओ, सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग, महराजगंज


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