कितना बदनसीब है जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कु-ए-यार में.. Gorakhpur News
गोरखपुर में शिया समुदाय का शहर में अपना कोई कब्रिस्तान नहीं है। मजबूरी में लोग गीता प्रेस रोड स्थित आगा साहेबान के खानदानी कब्रिस्तान में अनुमति लेकर शवों को दफनाते हैं। वह कब्रिस्तान भी सालों पहले भर चुका है।
गोरखपुर, जेएनएन। 'कितना बदनसीब है जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कु-ए-यार में'। शायर और आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर जब अपने वतन से काेसों दूर रंगून में कैदी बनकर रह रहे थे, तब उन्होंने इस पक्तियों के जरिये अपनी बेबसी को बयां किया था। कुछ ऐसा ही हाल शहर में रह रहे शिया समुदाय का है। उन्हें 27 सालों से कब्रिस्तान की जमीन का इंतजार है, जहां मरने के बाद वह इत्मिनान से सो सकें।
शवों के दफनाने के लिए शिया समुदाय के पास नहीं है कब्रिस्तान
करीब दो हजार आबादी वाले शिया समुदाय का शहर में अपना कोई कब्रिस्तान नहीं है। मजबूरी में लोग गीता प्रेस रोड स्थित आगा साहेबान के खानदानी कब्रिस्तान में अनुमति लेकर शवों को दफनाते हैं। वह कब्रिस्तान भी सालों पहले भर चुका है। वर्षों से लोग कब्रिस्तान की जमीन के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। 30 जनवरी 1993 काे नगर महापालिका (अब नगर निगम) सदन की बैठक में शिया समुदाय को कब्रिस्तान और ताजियों को दफनाने के लिए नजूल की जमीन देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था। 27 साल बाद भी यह प्रस्ताव फाइलों में धूल फांक रहा है।
30 जनवरी 1993 काे नगर महापालिका ने जमीन देने का प्रस्ताव किया था पास
वर्ष 2000 में कब्रिस्तान के लिए फिर से कवायद शुरू की गई। इस बार जिला प्रशासन आगे आया और शहर के बाहर जमीन मुहैया कराने की बात कही, लेकिन शिया कांफ्रेंस ने दूरी का हवाला देते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया। कांफ्रेंस बसंतपुर, बहादुरशाह जफर कालोनी, बहरामपुर और असुरन के आसपास जमीन चाहता था। 2008 में गोरखपुर के दौरे पर आए तत्कालीन अल्पसंख्यक एवं वक्फ मंत्री शहजील इस्लाम अंसारी ने जमीन मुहैया कराने का आश्वासन दिया, लेकिन वह भी आश्वासन तक ही सीमित रहा। शिया कांफ्रेंस लगातार इस मुद्दे को उठा रहा था, लेकिन जिलाध्यक्ष डा. नफीस अहमद रिजवी के अचानक निधन होने से मामला ठप पड़ गया। इसके बाद शिया फेडरेशन ने नगर निगम, प्रशासन और शासन से जमीन उपलब्ध कराने की की मांग की।
कब्रिस्तान के लिए जमीन की बहुत जरूरत है। अब तक जहां दफनाया जाता है वह जगह पूरी तरह भर चुकी है। शासन-प्रशासन से कई बार इस समस्या से अवगत कराया जा चुका है, लेकिन अब सकारात्मक जवाब नहीं मिला। - एजाज रिजवी, अध्यक्ष शिया फेडरेशन।