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फ्लैश बैक : तब चवन्नी-अठन्नी के चंदे से चुनाव जीता, अब लाखों भी कम पड़ते हैैं

UP Vidhan Sabha Chunav 2022 पूर्व विधायक 108 वर्षीय श्रीनारायण ऊर्फ भुलई भाई राजनीत‍ि की वर्तमान द‍िशा को लेकर च‍िंंत‍ित हैं। भुलई भाई यह कहने से भी गुरेज नहीं करते कि अब राजनीति राजनीतिक मूल्यों की नहीं सत्ता प्राप्ति की राह पर चल पड़ी है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 06:30 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 06:30 AM (IST)
फ्लैश बैक : तब चवन्नी-अठन्नी के चंदे से चुनाव जीता, अब लाखों भी कम पड़ते हैैं
UP Vidhan Sabha Chunav 2022: 108 वर्षीय पूर्व व‍िधायक श्रीनारायण ऊर्फ भुलई भाई। - जागरण

गोरखपुर। राजनीति के तमाम उतार चढ़ाव और उसके बदलते रंग देखने वाले पूर्व विधायक 108 वर्षीय श्रीनारायण ऊर्फ भुलई भाई के अनुसार आज की राजनीति में धन को अधिक महत्व मिल रहा है। विचार और व्यक्तित्व, शुचिता और भरोसे का संकट है। आजादी के आंदोलन के प्रमुख पड़ाव से वर्तमान तक को देखने वाले भुलई भाई यह कहने से भी गुरेज नहीं करते कि अब राजनीति, राजनीतिक मूल्यों की नहीं, सत्ता प्राप्ति की राह पर चल पड़ी है। राजनीति में शुचिता और भरोसे पर संकट खड़ा हुआ है। प्रस्तुत है दैन‍िक जागरण के संवाददाता अजय कुमार शुक्ल की उनसे हुई बातचीत के अंश।

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प्रश्‍न : जब आप चुनाव लड़ते थे, तब और अब की राजनीति में क्या बदलाव आया है ?

उत्‍तर : बहुत कुछ। प्रचार से लेकर भाव तक, सब बदल गया। पहले राजनीति में सेवा का भाव होता था, अब सत्ता का प्रभाव है। पहले जनता प्रचार करती थी, अब नेता करते हैं। मतदाता ही घर-घर से पांच पैसे, 10 पैसे, चवन्नी-अठन्नी के रूप में चंदा जुटाते और स्वयं प्रचार करते। मैंने सात चुनाव लड़े और मेरा एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। दो बार चुनाव भी जीता। अब ऐसे उदाहरण कहां मिलते हैैं।

प्रश्‍न : यह बदलाव आया क्यों है ?

उत्‍तर : प्रचार में बदलाव तो समय और संसाधन के अनुसार हुआ है, लेकिन राजनीति में बदलाव नीति और नीयत में अंतर को लेकर हुआ है। पहले मुद्देे की राजनीति होती थी, अब राजनीति ही मुद्दा बन गई है। राजनीति में धन का चलन इस बदलाव का एक बड़ा कारण है, हमारे समय में व्यक्ति और व्यक्तित्व प्रभावी होता था, धन नहीं। सही तो यह है कि पहले जन नेता होते थे, अब राजनेता होते हैं।

प्रश्‍न : वर्तमान समय में व्यक्ति और व्यक्तित्व नहीं हैं क्या ?

उत्‍तर :वर्तमान राजनीति में तलाश करने पर चंद व्यक्ति और व्यक्तित्व ही मिलेंगे। पहले हर दल में ऐसे नेता होते थे। अब अभाव सा होता जा रहा है, क्योंकि राजनीति की दिशा ही बदलती जा रही है। पहले जाति धर्म, बड़े-छोटे की बात नहीं होती थी। अब यह राजनीति के नियामक बनते जा रहे हैं। चौधरी चरण सिंह किसी दल के नहीं किसानों के और सर्व समाज के नेता था। लोहिया देश के नेता थे। वर्तमान में मोदी-योगी हैैं। वैचारिक अंतर था, लेकिन चिंता समाज और राष्ट्र की होती थी। अब मुझे ही देख लीजिए सामान्य परिवार से आया और सभी ने हाथो-हाथ लिया।

प्रश्‍न : समाजवाद को आप किस रूप में देखते हैं

उत्‍तर : हमारे समय में समाजवाद का मतलब समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान था। अब इसे सियासत का विषय बनाकर रख दिया गया है। यह किसी एक दल या व्यक्ति मात्र का विचार नहीं हो सकता। यह समग्र समाज के विकास की बात है। इसको खांचे में नहीं बांटा जा सकता, लेकिन बांटा जा रहा है।

प्रश्‍न : आप भाजपा में हैं तो क्या यहां समाजवाद है

उत्‍तर : बिल्कुल है। हां, पुराने समय की बात करेंगे तो कुछ बदलाव जरूर आया है, हर जगह। भाजपा समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान की बात करती है। देखिए, आप इसको सियासत या किसी दल से मत जोडि़ए। यह विचार है। जहां भी समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान की बात होगी, वहां समाजवाद खड़ा मिलेगा। आप चाहे दीनदयाल उपाध्याय की बात करिए या फिर लोहिया की। यह पेटेंट का विषय ही नहीं है।

प्रश्‍न : राजनीति में शुचिता और भरोसा लौटेगा कैसे ?

उत्‍तर : भरोसा पाने के लिए जनप्रतिनिधि को सेवक की भूमिका में होना होगा। सत्ता को सुख का नहीं सेवा का माध्यम समझना होगा। दलों में वैचारिक भेद हो मनभेद न हो तो विश्वास का भी संकट नहीं रहेगा। हम लोग के समय चुनाव प्रचार के दौरान दूसरे दल के लोग भी मिलते थे, तो साथ बैठकर चाय-पानी कर लेते थे। परिणाम के बाद दूसरे दलों के नेता आते थे तो मिलते थे, क्षेत्र के विषय में बात करते थे। हमें सोच के इसी धरातल पर आना होगा।

परिचय एक नजर

कुशीनगरके रामकोला (पूर्व में देवरिया जिला) विकास खंड के गांव पगार छपरा में एक नवंबर 1914 को जन्म हुआ। 1953 में जन संघ से जुड़कर जनसेवा शुरू की। इस बीच डिप्टी बीएसए हुए और देवरिया के बनकटा ब्लाक में तैनाती हुई। 1959 में देवरिया जिले के सिधुआं विधानसभा क्षेत्र से निर्दल चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे। 1967 में नेबुआ नौरंगिया विधानसभा से लड़े तो भी दूसरे स्थान पर रहे। 1969 में भी यही परिणाम रहा। 1974 में जनसंघ ने नेबुआ नौरंगिया विधानसभा से ही चुनाव में उतारा और जीते। 1977 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। 2002 में फिर चुनाव लड़े थे, लेकिन सफलता नहीं मिली।


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