स्वाद व सुगंध का राजा है पूर्वांचल का 'गौरजीत', इसकी मिठास ऐसी की हर कोई करता है तारीफ- दाम मात्र 40 रुपये
स्वाद से भरपूर गौरजीत आम पूर्वांचल की शान है। ये आम इसलिए भी सबका पसंदीदा है की इसे पकाने के लिए किसी रसायन की आवश्यकता नहीं होती है। इसके प्लेवर को लेकर खाने के तरीके को लेकर महक को लेकर भी यह लाजवाब है।
गोरखपुर, जागरण टीम। फलों का राजा आम हर किसी की पहली पसंद होता है। हमारे देश में सैकड़ों प्रजाति के आम हैं, लेकिन गौरजीत की तो बात ही निराली है। अनूठा स्वाद, महक व मिठास के साथ यह चूस कर खाने वाला आम है। खाने के बाद हल्की डकार के साथ देर तक आपको आम खाने का आभास कराने वाला गौरजीत दुनियां का इकलौता ऐसा फल है, जिसकी कुनबे में एक अलग ही पहचान है। गौरजीत का एक अलग ही फ्लेवर है। दशहरी व चौसा काटकर खाए जाने वाले आम हैं, जबकि गौरजीत चूस कर खाया जाने वाला फल है। गोरखपुर के बागवान इसकी बिक्री करते हुए बड़े ही शान से कहते हैं कि वह आम भी क्या, जिसे चूस कर न खाया जा सके।
पत्तों के साथ होती है गौरजीत की बिक्री: गौरजीत को पकाने के लिए किसी दवा अथवा रसायन की आवश्यकता नहीं होती है। पूरब का सबसे पहले तैयार होने वाला आम है। जून के प्रथम सप्ताह से यह डालियों पर ही पकने लगता है। बागवान इसी लिए पत्तियों के साथ इसकी बिक्री करता है। आकर्षक पीले व हल्के लाल रंग का गोल आकार के चलते यह दूर से ही लोगों को भाता है। आम के ठेले व दुकान में इसका एक अलग ही जलवा देखने को मिलता है। पास जाने पर इसकी सुगंध लोगों को अपना दीवाना बना लेती है। स्वाद व मिठास की तो बात ही खास है।
बगीचे में ही हो जाता है गौरजीत का सौदा: गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज, संतकबीनगर, देवरिया, कुशीनगर जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर तैयार होने वाला गौरजीत का सौंदा तो बाग से ही हो जाता है। बाग मालिकों को इसकी बिक्री के परेशान नहीं होना पड़ता है। बाग से ही थोक से लेकर फुटकर विक्रेता बोली लगाकर इसकी खरीददारी कर लेते हैं। टोटल सस्पेंडेड सालिड्स (टीएसएस) से इसकी मिठास मापी जाती है। इसकी मिठास दशहरी के समकक्ष होती है।
बस्ती में विकसित हुआ गौरजीत: संयुक्त निदेशक उद्यान बस्ती डा. अतुल सिंह का कहना है कि गौरजीत का स्वाद अल्फांसों या हापुस की तरह है। कुछ मामलों में यह उससे भी बेहतर है। अल्फांसों की कीमत दो सौ रुपये किलो होती हैं, जबकि गौरजीत मात्र चालीस रुपये में लोगों की पहुंच में होता है। इसकी उत्पत्ति गौरखपुर के किसी गांव से है। वर्ष 1958 में उत्तर प्रदेश में बस्ती व सहारनपुर दो आम शोध केंद्र थे। अब यह शोध केंद्र भारत सरकार के पास चले गए हैं। बस्ती में अब कोई आम शोध केंद्र नहीं है। वर्ष 1958 से ही गौरजीत को बस्ती शोध केंद्र पर संकलित किया गया और उससे पौधे विकसित किए गए। इससे यह अब बस्ती के नाम से जाना जाने लगा।
ऐसे पड़ा गौरतीज नाम: गौरजीत के विषय में तमाम कहानियां प्रचलित है। यह भी कहा जाता है कि पहले इसका कोई नाम नहीं था। अंग्रेजों के समय में एक प्रतियोगिता हुई। उसमें इसे भी रखा गया। प्रतियोगिता में शामिल करने के लिए अंग्रेजों ने इसे गंवार नाम दिया था। बाद में प्रतियोगिता में प्रतियोगिता में इसे पहला स्थान मिला और यह गौरजीत हो गया।
कम समय में गौरजीत में आने लगते हैं फल: गौरजीत बेहद कम समय में तैयार होने वाला पौधा है। इसका पौधा पहले ही साल से फल देने लगता है, लेकिन उस समय डालियां कमजोर होती हैं। इस लिए फल लेने के लिए कम से कम तीन वर्ष का समय रखा जाता है। तीन वर्ष बाद इसमें करीब 30 से 40 किलो फल आने लगते हैं। उस समय से लोग थोड़ा-थोड़ा फल इससे लेते हैं।
इसलिए भी है गौरजीत का दबदबा: गौरजीत के दबदबे की एक और वजह है। पूर्वांचल में बारिश बहुत होती है। लगातार बारिश से आम में वह स्वाद नहीं रह जाता है, जो शुरुआती दिनों में रहता है। गौरजीत को छोड़कर पूर्वांचल में जितने भी आम हैं, वह देर से तैयार होने वाले हैं। दशहरी, कपुरी, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, मल्लिका सभी प्रजातियां देर से तैयार होने वाली हैं। जब तक यह प्रजातियां तैयार होती है, तब तक बाग से आधे से अधिक गौरजीत की बिक्री हो चुकी होती है। सबसे पहले बिक्री के चलते बाग मालिकों को इसकी अच्छी कीमत भी मिल जाती है। बाग में जब तक अन्य आम तैयार होते हैं, उस समय बारिश भी चरम पर होती है। इसके चलते आम में कीड़े लगने शुरू हो जाते हैं। उसकी मिठास कम हो जाती है। इसके चलते भी गौरजीत का दबदबा कायम रहता है।
गोरखपुर व सिद्धार्थनगर में चल रही जीआइ की तैयारी: गौरतीज की अभी जीआइ नहीं हुई है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमान खेड़ा के वैज्ञानिकों द्वारा गोरखपुर व सिद्धार्थनगर में इसकी जीआइ(जियोग्राफिकल इंडेक्स) के संस्थान को भेजी जा चुकी है। जल्द ही इसकी जीआइ मिलने की उम्मीद है। अभी इसका क्लस्टर नहीं है। क्लस्टर तैयार होने के बाद इसे विदेशों में भी निर्यात किया जाएगा।
प्रदेश के बाहर भी भेजे जा रहे हैं गौरजीत के पौधे: बस्ती से पंजाब, हिमाचल, बिहार, आंध्रप्रदेश, जम्मू, महाराष्ट्रा सहित कई प्रदेशों को गौरजीत बेचता है। इस लिए प्रदेश के बाहर भी अब गौरजीत के बाग तैयार हो रहे हैं। प्रतिवर्ष गोरखपुर-बस्ती मंडल से प्रतिवर्ष 10 से 15 हजार गौरजीत के पौधे लगाए जा रहे हैं। गोरखपुर-बस्ती मंडल में करीब 15 से 20 हजार हेक्टयेर आम के बाग हैं। इसमें करीब 10 प्रतिशत गौरजीत के पौधे होंगे।
यहां हैं गौरजीत के बड़े बाग: पूर्वांचल के अधिकांश जिलों में गौरजीत के बाग हैं, लेकिन इसके सबसे बड़े बाग सिद्धार्थनगर व गोरखपुर जिले में हैं। गोरखपुर में कैंपियरगंज, भटहट, सहजनवां, पिपराइच विकास खंड में गौरजीत के बड़े बाग हैं। सिद्धार्थनगर में शोहरतगढ़, नौगढ़, बर्डपुर, बांसी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर इसके बाग हैं।